राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 27 / Stories of Raja Vikramaditya
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ सत्ताईसवीं पुतली की कहानी सत्ताईसवीं पुतली मलयवती नेे अपनी कहानी सुनाई - एक बार राजा विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि इन्द्र के समान कोई राजा नहीं है । यह सुनकर राजा विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और उन्हें साथ लेकर इन्द्रपुरी पहुंचा । इन्द्र ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा । राजा ने कहा - आपके दर्शन के लिए आया हूँ। इन्द्र ने प्रसन्न होकर उसे अपना मुकुट और विमान दिया और कहा - जो भी तुम्हारे सिंहासन को बुरी नजर से देखेगा , वह अंधा हो जाएगा । राजा वहां से अपने नगर लौट आया ........ पुतली कहानी सुना रही थी कि इतने में राजा भोज सिंहासन पर पैर रखकर खड़ा हो गया । खड़ा होते ही वह अंधा हो गया और उसके पैर वही चिपक गए। उसने पैर हटाने चाहे पर न हटे । इस पर सारी पुतलियाँ खिलखिला कर हंसने लगी । राजा भोज बहुत पछताया । उसने पुतलियों से पूछा - मुझे बताओ अब मैं क्या करू ? उन्होंने कहा - विक्रमादित्य का नाम लो तब भला होगा । राजा भोज ने जैसे ही विक्रमादित्य का नाम लिया उसे दिखने लगा और पैर भी उखड़ गया । पुतली बोली - हे राजन् । मैं इसलिए तुमसे कहती हूँ इस सिंह