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कृष्ण बलराम और सुभद्रा की जगन्नाथ धाम में मूर्ति

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 पुरी के जगन्नाथ धाम मंदिर में भगवान कृष्ण बलराम और सुभद्रा की जैसी छवि विराजमान हैं उसके पीछे एक बहुत ही सुन्दर कथा है । भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम थे और सुभद्रा उनकी छोटी बहन थी। कहते हैं भगवान कृष्ण की लीला को तो देवताओं के लिए भी समझना मुश्किल था तो हम तो साधारण मनुष्य है।    एक बार अपने शयनकक्ष में केशव रात में सोते हुए नींद में राधे राधे नाम जपने लगे । जब रूक्मिणी जी ने सुना तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। यह बात उन्होंने अन्य रानियों तथा माता रोहिणी को बताई तथा उनसे गोपियों के साथ हुई रासलीला के बारे में बताने की इच्छा जताई।  माता रोहिणी ने पहले तो बात टालनी चाही परंतु रुक्मिणी जी के हठ करने पर बताने के लिए तैयार हो गई। उससे पहले उन्होंने कहा कि यह एक रहस्यमय लीला है तो सबसे पहले सुभद्रा को बाहर पहरे पर बिठा दो ताकि कोई और यह कथा न सुन सके । उसी समय भगवान माधव और भैया बलराम वहां आ पहुंचे। सुभद्रा ने उन्हें उचित कारण बता कर वहां दरवाजे पर रोक लिया परन्तु कमरे के बाहर भी कृष्ण और गोपियों की रहस्यमई रासलीला की कथा सुनाई दे रही थी। कथा सुनने से माधव, बलराम भैया और ...

हरतालिका तीज व्रत कथा 2020 /Hartalika teej vrat katha 2020

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                     Hartalika Teej Vrat Katha हरतालिका तीज को   तीज भी कहते हैं । यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया हस्त नक्षत्र के दिन होता है ।।  इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करतींं है । तीज का त्यौहार विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल , बिहार , झारखंड , और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है । तीज का त्यौहार करवा-चौथ से कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवा-चौथ में रात को चांद देखकर व्रत खोलने का नियम है वही दूसरी ओर तीज में पूरे दिन निर्जला व्रत रख कर अगले दिन पूजन के बाद ही व्रत खोलने का नियम है ।  इस व्रत से जुड़ी मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी  केे समान ही सूखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती है । सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने सुहाग को अखंड बनाने के लिए तथा अविवाहित युवतीयां मनचाहा वर पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं । माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ के लिए सर्वप्रथम हरतालिका तीज का व्रत रखा था । स्त्रीयां इस दिन सोलह श्रृंगार करके गौरी-शंकर और भगवान गणे...

वट सावित्री व्रत 2020 / vat savitri vrat

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                    Vat savitri puja विवाहित स्त्रीयां अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैै । सावित्री व्रत कथा के अनुसार वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री के पति के शरीर में प्राण वापस आएं थेे , उनके सास-ससुर के आंखो की ज्योति और छिना हुआ राज्य वापस मिल गया । पुराणों के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा , विष्णु और महेश तीनों का वास होता है । वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा , व्रत , कथा आदि सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है । भगवान बुद्ध को भी इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी अतः वट वृक्ष को ज्ञान , निर्वान व दीर्घायु की प्रतीक माना जाता है । देवी सावित्री को भारतीय संस्कृति में एक आदर्श नारीत्व व सौभाग्य पतिव्रता के लिए आदर्श चरित्र माना गया है । सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है । वट वृक्ष का पूजन और सावित्री सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ । पढ़े :-  सावित्री और सत्यवान इस दिन महिलाएं विधि - विधान के साथ पूजा - अर्च...

कथा शनि देव की / Katha Shani Dev ki

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                    Shani Dev ki katha शास्त्रों के अनुसार कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्य देव की पत्नी छाया के कठोर तपस्या से ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि देव का जन्म हुआ । छाया ने भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की थी । तेज धूप और गर्मी के कारण शनि देव का वर्ण काला पड़ गया परंतु इस तप ने उन्हें असीम ताकत प्रदान किया । एक बार कि बात है जब भगवान सूर्य अपनी पत्नी छाया से मिलने गए तो शनि देव अपनी माता के गर्भ में थे और अपने पिता का तेज नहीं सह सकें और अपनी आँखे बंद कर ली ।भगवान सूर्य ने जब अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि उनका होने वाला पुत्र काला है जो उनका नहीं हो सकता । सूर्य ने छाया से अपना यह संदेह व्यक्त भी कर दिया । इस कारण शनि देव के मन में अपने पिता के प्रति शत्रु भाव पैदा हो गया । शनि के जन्म के पश्चात भी उनके पिता ने कभी उनके साथ पुत्र वत व्यवहार नहीं किया । बड़े होने के पश्चात शनि देव ने भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की और जब भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर वरदान मागने के लिए कहा तो शनि देव ने कहा कि उनके पिता सूर्य ने हमेशा उनकी म...

मोहिनी एकादशी व्रत कथा / Mohini ekadashi vrat katha

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            कथानुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को लेकर युद्ध छिड़ गया । उस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया । जिसे देखकर असुर मोहित हो गए और अमृत कलश से उनका ध्यान हट गया । सभी देवताओं ने अमृत पान किया और अमर हो गए । जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया वह तिथि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी । यही कारण है कि इस तिथि को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है । इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा की जाती है । भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था मोहिनी एकादशी का महत्व  कथा के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे माधव वैशाख शुक्ल एकादशी की कथा और पूजन विधि के बारे में कृपया बताएं । कृष्ण ने कहा कि यह कथा जो मै आपको बताने जा रहा हूँ वह गुरु वशिष्ठ ने प्रभु श्रीराम को बताया था । एक बार श्रीराम ने ऋषि वशिष्ठ से पूछा कि हे गुरुदेव किसी ऐसे व्रत के बारे मे बताइए जिससे समस्त दुखो और पापों का नाश हो जाए । तब ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि हे राम मोहिनी एकादशी का व्रत कर...

रावण ने बंदी क्यों बनाया शनि देव को

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                  रावण ज्योतिषी शास्त्र का ज्ञाता था । जब रावण की महारानी मंदोदरी गर्भवती थी तो वह चाहता था कि उसका होने वाला  पुत्र दीर्घायु और सर्वशक्तिमान हो । वह चाहता था कि उसका होने वाला पुत्र ऐसे नक्षत्रों में पैदा हो जिससे वह दीर्घायु और महा-पराक्रमी हो जाए । इसके लिए रावण ने सभी ग्रह नक्षत्रों  को यह आदेश दिया कि जब उसका पुत्र मेघनाद पैदा होने  वाला हो तो शुभ और सर्वश्रेष्ठ स्थितियों में रहे । चूंकि सभी रावण से डरते थे अतः सभी ग्रह नक्षत्र डर के मारे रावण की इच्छानुसार उच्च स्थित में विराजमान हो गए परंतु शनि देव  को रावण की यह बात पसंद नहीं आई ।  शनि देव आयु की रक्षा करने वाले है , परंतु रावण जानता था कि सभी उसकी बात मानते हैं परंतु शनि देव उससे जरा भी  नहीं डरते और वह उसकी बात कदापि नहीं मानेंगे ।  अतः रावण ने बल का प्रयोग कर शनि देव को ऐसी स्थिति में रखा जिससे कि उसके पुत्र की आयु लंबी हो सके । उस समय तो रावण ने जैसे चाहा शनि देव को ...

जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

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                               जगन्नाथ मंदिर को हिन्दू धर्म मेंं चारों धाम में से एक माना गया है । यहां हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा निकाली जाती है जो सिर्फ देश में नहीं विश्व भर में अति प्रसिद्ध हैं । जगन्नाथ पुरी को मुख्यतः पुरी नाम से जाना जाता है । रथयात्रा की धूम दस दिनों तक चलती है और इस समय पूरे देश से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं । भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है जिनकी महिमा का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी किया गया है । जगन्नाथ रथयात्रा में श्रीकृष्ण , बलराम और उनकी बहन सुभद्रा का रथ होता है । जो इस रथयात्रा में शामिल होकर रथ को खींचते हैं उन्हें सौ यज्ञों के बराबर का पुण्य मिलता है । हिन्दू धर्म में जगन्नाथ रथयात्रा का बहुत महत्व है । मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ के रथ को निकालकर प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता है जहाँ भगवान जगन्नाथ आराम करते हैं । गुंडिचा माता मंदिर में भारी तैयारीयां होती हैं । इस यात्रा को पू...

आठ पौराणिक मनुष्य जो आज भी जीवित है / Hindu mythology 8 immortal people

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                        जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है , गीता मे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही उपदेश दिया था कि आत्मा तो अजर-अमर है और यह एक निश्चित समय के लिए शरीर धारण करती है । शरीर नश्वर है , परंतु हिन्दू पुराणों के अनुसार माता के गर्भ से जन्म लेने वाले आठ ऐसे व्यक्ति हैं जो चिरंजीवी है । इनकी मृत्यु आज तक नही हुई है । ऐसा माना जाता है कि ऐ आठों किसी नियम, वचन या श्राप से बंधे हुए है और दिव्य शक्तियों से युक्त एक दिव्य आत्मा है । हिन्दू धर्म के अनुसार वे आठ जीवित अजर अमर महामानव है । इन आठ महामानवों के नाम इस प्रकार है - द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा , दैत्यराज राजा बलि , महर्षि वेदव्यास , अंजनी पुत्र हनुमान , कृपाचार्य , भगवान परशुराम , विभीषण और ऋषि मार्कंडेय । मान्यता के अनुसार जो भी व्यक्ति सुबह-सुबह इन आठों महामानवों का नाम स्मरण करते हैं उसके सारे रोग बीमारी खत्म हो जाती है और वह मनुष्य सौ वर्षों तक जीता है । हनुमान जी - श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी ने जब माता ...

परशुराम जयंती पर जाने भगवान परशुराम की जीवन कथा / Parsuram

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                      Bhagwan Parsuram भगवान परशुराम  का जन्म अक्षय तृतीया  को हुआ था इसलिए अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है । वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में उच्च ग्रहों से युक्त मिथुन राशि में माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का जन्म हुआ । परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है और उनका जन्म त्रेता युग ( रामायण काल) में हुआ था । पुराणों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि के द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ के वरदान स्वरुप रेणुका के गर्भ से मध्य प्रदेश के इंदौर जिला मे ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ । पितामह भृगु द्वारा संपन्न नामकरण संस्कार के फलस्वरूप उनका नाम राम पड़ा । वे जमदग्नि के पुत्र होने के कारण जामदग्नय और शंकर जी द्वारा प्रदत परशु धारण किये रहने के कारण परशुराम कहलाए । आरंभिक शिक्षा उन्हें ऋषि विश्वामित्र और ऋषि ऋचीक के आश्रम में प्राप्त हुई । तदनन्तर कैलाश गिरि...

कब है अक्षय तृतीया जाने पौराणिक कथा

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                          Akshay Tiritya 2020 वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अधिष्ठात्री देवी माता गौरी है । उनकी साक्षी मे किया गया धर्म-कर्म दान अक्षय हो जाता है , इसलिए इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है । अक्षय तृतीया से समस्त मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते है । अक्षय तृतीया का पौराणिक कथाओं में वर्णन :- महाभारत काल में जब पांडवो को तेरह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास मिला था तभी एक बार उनकी कुटिया में दुर्वासा ऋषि पधारें । उस समय द्रौपदी से जितना भी हुआ उसने ऋषि का बड़ी श्रद्धा और प्रेम से स्वागत सत्कार किया जिससे दुर्वासा ऋषि बहुत प्रसन्न भी हुए । दुर्वासा ऋषि ने उस समय द्रौपदी को एक अक्षय पात्र दिया । साथ ही द्रौपदी को बताया कि आज अक्षय तृतीया है , अतः आज के दिन जो भी धरती पर श्री हरी विष्णु की विधि - विधान से पूजा - अर्चना करेगा तथा उनको चने का सत्तू, गुड़ मौसमी फल , वस्त्र , जल से भरा घड़ा तथा दक्षिणा के साथ श्री विष्णु के निमित्त दान करेगा , उसके घर का भण्डार सदैव...

वाल्मीकि रामायण

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                    Valmiki writing Ramayana वाल्मीकि रामायण संस्कृत साहित्य का एक आरंभिक महाकाव्य है  जो संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छंदो मे रचित है । इसमें श्रीराम के चरित्र का उत्तम एवं वृहद वर्णन काव्य रूप में उपस्थित हुआ है । महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण इसे वाल्मीकि रामायण कहा जाता है । वर्तमान में राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रंथ है वे सब वाल्मीकि रामायण पर ही आधारित है । वाल्मीकि रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि भी माना जाता है । यह महाकाव्य भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आयामों को प्रतिबिंबित करने वाला होने के कारण साहित्य में अक्षय निधि है । काव्यगुणों की दृष्टि से वाल्मीकि रामायण अद्वितीय महाकाव्य है । यह महाकाव्य संस्कृत काव्यों की परिभाषा का आधार है । यह अन्य रचनाकारों के लिए पथ-प्रदर्शक ग्रंथ रहे है ।  यह महाकाव्य वाल्मीकि जी की पूर्णत मौलिक कृति है । रामायण की कथावस्तु राम के चारों ओर ताना बाना बुनती है । राम इस महाकाव्य के नायक है । ईश्वरीय विशिष्टत...

विजयादशमी / vijayadasmi

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 Hindu mythology >vijayadasmi >2018>October 19 विजयादशमी  को शक्ति पूजा का पर्व माना गया है क्योंकि इस दिन माँ दुर्गा ने नौ रात्रि और दस दिनों के युद्ध के बाद राक्षस महिषासुर (भैंस असुर) का वध किया था और फिर इसी दिन प्रभु श्रीराम  ने लंका के राजा रावण का भी संहार किया था ।                  Mahisasurmardini विजयादशमी  का त्योहार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को पूरे देश में दशहरा के नाम पर माना जाता है । दोनों ही मान्यताओं के अनुसार यह विजय का दिवस है और इसलिए भारतीय संस्कृति में यह मान्यता सदियों से चली आ रही है कि इस दिन जो भी नया काम शुरू करो उसमें सफलता अवश्य मिलेगी।                        Lord Rama पुराने समय में राजा-महाराज इस दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा वर्ष में एक बार किया करते थे । विजय की प्रार्थना कर रण-विजय के लिए निकलते थे ।                 ...

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा / Jivitputrika varath ki katha

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Jivitputrika varath katha in hindi:-                         किसी समय की बात है, नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ एक नगर था। नर्मदा के पश्चिम दिशा की ओर एक भयानक शमशान घाट  हुआ करता था  । इसी शमशान घाट के एक विशाल पाकड के वृक्ष में एक चील और एक सियारिन रहा करते थे।  दोनों में सगी बहनों सी मित्रता हुआ करती थी। एक बार कि बात है चील और सियारिन के मन में सामान्य औरतों की तरह अपने संतानों के लिए उपवास रखने की इच्छा जागी।  नियमानुसार चील और सियारिन दोनों ने जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत  रखा ।                     संयोगवश उसी दिन नगर के एक व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसे उसी शमशान में जलाने के लिए लाया गया । वह रात बहुत ही भयंकर थी। चारों ओर भयानक आंधी तूफान चल रही थी और भयानक बिजली कड़क रही थी ।    अब सियारिन तो थी दिन भर की भूखी प्यासी उससे मुर्दा देखकर नहीं रहा गया और बस उसका व्रत टूट गया लेकिन दूसरी तरफ़ चील ने नियमानुसार बडी श्रद्ध...

नवदुर्गा / Navdurga

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शारदीय नवरात्र की शुरुआत आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा  को कलश स्थापना के साथ ही होती है। इन नौ दिनों में माँ  आदिशक्ति देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।  मान्यता के अनुसार नवरात्रि के पावन रात्रि में माँ आदि शक्ति  साल में एक बार अपने मायके आती हैं और विजयादशमी के  शुभ अवसर पर उनकी पूजा-अर्चना के बाद विदाई की जाती  है । इसी मान्यता के अनुसार हमारे यहां शादीशुदा लडकियों  को विजयादशमी के शुभ दिन में ससुराल भेजे जाने की प्रथा  चलती आ रही है । नवरात्रि के ऐ नौ रात बहुत पावन माने  जाते हैं । माँ के सभी भक्त इन नौ दिनों में उपवास रखकर  माता की उपासना करते हैं । पहले दिन से ही कलश स्थापना  के साथ ही देवी के पहले स्वरूप "माता शैलपुत्री " की पूजा  के साथ ही नवरात्रि की शुरुआत होती है।   माँ शैलपुत्री -   नवरात्रि के पहले दिन माँ आदि शक्ति के रूप शैलपुत्री की  उपासना की जाती है। इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर  में उन...