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वेताल पच्चीसी - पच्चीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - पच्चीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  योगी राजा और मुर्दे को देखकर बहुत खुश हुआ ।  बोला - हे राजन् , तुमने यह कठिन काम करके मेरे पर बहुत उपकार किया है । तुम सचमुच सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो । इतना कहकर उसने मुर्दे को राजा के कंधे से उतारा और उसे स्नान कराकर फूलों की मालाओं से सजाकर रख दिया । फिर मंत्र-बल से वेताल का आह्वान करके उसकी पूजा की । पूजा के बाद उसने राजा से कहा - हे राजन् , तुम शीश झुका कर इसे प्रणाम करो ।  राजा को वेताल की बात याद आई ।  उसने कहा - मैं राजा हूँ , मैंने कभी किसी के सामने सिर नही झुकाया । आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिये ।  योगी ने जैसे ही सिर झुकाया , राजा ने तलवार से उसका सिर काट डाला । वेताल बड़ा खुश हुआ ।  बोला - राजन् , यह योगी विद्याधरो का स्वामी बनना चाहता था । अब तुम बनोगे । मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है । तुम जो चाहों सो मांग लो । राजा ने कहा - अगर आप मुझसे खुश है तो मेरी प्रार्थना हैं कि आपने जो चौबीस कहानियाँ सुनायी वे और पच्चीसवीं यह , सारे संसार में प्रसिद्ध हो जाए और लोग इन्हें आदर से पढें ।  वेताल ने कहा - ऐसा ही होगा । ये कथ

वेताल पच्चीसी - चौबीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - चौबीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  किसी नगर में मांडलिक नामक राजा राज्य करता था । उसकी पत्नी का नाम चंडवती था । वह मालव देश के राजा की लड़की थी । उसके लावण्य वती नाम की एक कन्या थी । जब वह विवाह योग्य हुई तो राजा के बंधु-बांधवों ने उसका राज्य छीन लिया और उसे देश-निकला दे दिया । राजा रानी और कन्या को लेकर मालव देश के लिए चल दिया।  रात को वे वन में ठहरे । पहले दिन चलकर वे भीलों की नगरी में पहुंचे । राजा ने रानी और बेटी से कहा कि तुम दोनों वन में छिप जाओं नही तो भील तुम्हें परेशान करेंगे । वे दोनों वन में चलीं गई। इसके बाद भीलों ने राजा पर हमला किया , पर अंत में वह मारा गया । भील चले गए ।    उनके जाने पर रानी और राजकुमारी वन से बाहर निकली और राजा को मरा देखकर बड़ी दुखी हुई । वे दोनों शोक करतीं हुई एक तालाब के किनारे पहुंची । उसी समय वहां चंडसिंह नामक साहूकार अपने पुत्र के साथ घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए उधर आया  । दो स्त्रियों के पैरों के निशान देखकर साहूकार अपने पुत्र से बोला - अगर ये स्त्रियाँ मिल जाए तो जिससे चाहे उससे विवाह कर लेना ।  लड़के ने कहा - छोटे पैर

वेताल पच्चीसी - तेईसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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    वेताल पच्चीसी - तेईसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  कलिंग देश में शोभावती नामक नगर था । उसमें राजा प्रद्युम्न राज करता था । उसी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था , जिसके देवसोम नाम का एक बड़ा ही योग्य पुत्र था । जब देवसोम सोलह बरस का हुआ और सारी विद्या सीख चुका तो दुर्भाग्यवश उसकी मृत्यु हो गई । बूढ़े माँ-बाप बहुत दुखी हुए । चारों ओर शोक छा गया । जब लोग उसे लेकर शमशान पहुंचे तो रोने-पीटने की आवाज सुनकर एक योगी अपनी कुटिया से निकला । पहले तो वह खूब जोर से रोया , फिर खूब हँसा , फिर योग बल से अपना शरीर छोडक़र उस लडक़े के शरीर में घुस गया । लडक़ा उठ खड़ा हुआ । उसे देख सभी बड़े खुश हुए ।  वह लडक़ा वहीँ तपस्या करने लगा ।  इतना कहकर वेताल बोला - राजन् , यह बताओं कि योगी पहले क्यों रोया , फिर क्यों हंसा ? राजा ने कहा - इसमें क्या बात है , वह रोया इसलिए कि जिस शरीर को उसके माता-पिता ने पाला और जिससे उसने बहुत सी शिक्षाएं प्राप्त की उसे छोड़ रहा है । हंसा इसलिए कि वह नये शरीर में प्रवेश कर और अधिक सिद्धियों को प्राप्त करेगा ।  राजा का यह जवाब सुनकर वेताल फिर से पेड़ पर जा लटका । राजा जाकर उसे

वेताल पच्चीसी - बाईसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - बाईसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था । उसके नगर में एक ब्राह्मण था जिसके चार बेटे थे । लड़को के सयाने होने पर ब्राह्मण मर गया और ब्राह्मणी उसके साथ सती हो गई । उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया । वे चारों भाई नाना के यहाँ चले गए परंतु कुछ समय पश्चात वहां भी उनके साथ बुरा बर्ताव होने लगा । तब सबने मिलकर सोचा कि उन्हें कोई विद्या सीखनी चाहिए । चारों भाई चार दिशाओं में चले गए ।  कुछ समय बाद वे विद्या सीखकर मिले ।  एक ने कहा कि मैंने ऐसी विद्या सीखी है कि मरे हुए आदमी की हड्डियों पर भी मांस चढ़ा सकता हूँ । दूसरे ने कहा मैं खाल और बाल पैदा कर सकता हूँ । तीसरे ने कहा कि मैं उसके सारे अंग बना सकता हूँ ।  चौथे ने कहा कि मैं उसमें जान डाल सकता हूँ ।  फिर वे अपनी विद्या की परीक्षा लेने के लिए जंगल में गए।  वहां उन्हें एक मरे शेर की हड्डियां मिली । उन्होंने उसे बिना पहचाने ही उठा लिया । एक ने मांस डाला , एक ने खाल और बाल , तीसरे ने सारे अंग बनाए और चौथे ने उसमें प्राण डाल दिया । शेर जीवित हो उठा और सबको खा गया ।  यह कथा सुनाकर वेताल ने

वेताल पच्चीसी - इक्कीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - इक्कीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  विशाला नामक नगरी में पदमनाभ नाम का राजा राज्य करता था । उसी नगर में अर्थदत्त नाम का एक साहूकार रहता था । उसके अनंगमंजरी नाम की एक कन्या थी । उसका विवाह उसने एक धनी साहूकार के लड़के मणिवर्मा के साथ किया था । मणिवर्मा पत्नी को बहुत चाहता था , लेकिन वह उसे नही चाहती थी । एक बार मणिवर्मा कही गया । उसके पीछे अनंगमंजरी की राजपुरोहित के लड़के कमलाकर पर नजर पड़ी और वह उसे चाहने लगी । अनंगमंजरी ने महल के बाग में जाकर चण्डीदेवी को प्रणाम कर कहा - यदि मुझे इस जन्म में कमलाकर पति रूप में न मिला तो अगले जन्म में वह मुझे पति रूप में मिले ।  यह कहकर वह अशोक के पेड़ से दुपट्टे की फांसी बनाकर मरने को तैयार हो गई । तभी उसकी सखी आ गई और उसे यह वचन देकर ले गई कि कमलाकर से मिला देगी।  दासी सबेरे कमलाकर के यहाँ गयी और दोनों के बगीचे में मिलने का प्रबंध कर आयी । कमलाकर आया और उसने अनंगमंजरी को देखा । वह बेताब होकर मिलने के लिए दौड़ा । मारे खुशी के अनंगमंजरी के ह्रदय की गति रूक गई और वह वहीं मर गई । उसे मरा देखकर कमलाकर का भी ह्रदय फट गया और वह भी मर

वेताल पच्चीसी - बीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - बीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  चित्रकूट नगर में एक राजा रहता था । एक दिन वह जंगल में शिकार खेलने गया । घूमते-घूमते वह रास्ता भूल गया और अकेला रह गया । थक कर वह पेड़ की छाया में लेटा कि उसे एक ऋषि कन्या दिखाई दी । उसे देखकर राजा उसपर मोहित हो गया । थोड़ी देर में ऋषि स्वयं आ गए ।  ऋषि ने पूछा तुम यहाँ कैसे आए हो ? राजा ने कहा कि मैं शिकार खेलने के लिए आया था ।  ऋषि बोले - बेटा , तुम क्यों जीवों को मारकर पाप कमाते हो ?  राजा ने वादा किया कि मैं अब कभी शिकार नही खेलूगां । खुश होकर ऋषि ने कहा - तुम्हे जो मांगना है , मांग लो । राजा ने ऋषि कन्या मांग ली और ऋषि ने खुश होकर दोनों का विवाह कर दिया । राजा जब उसे लेकर चला तो रास्ते में एक भयंकर राक्षस मिला ।  वह बोला - मैं तुम्हारी रानी को खाऊंगा । अगर चाहते हो कि वह बच जाए तो सात दिन के भीतर एक ऐसे ब्राह्मण-पुत्र का बलिदान करो , जो अपनी इच्छा से अपने को दे और उसे मारते समय उसके माता-पिता उसके हाथ-पैर पकड़े ।  डर के मारे राजा ने उसकी बात मान ली । वह अपने नगर को लौटा और दीवान को सब हाल कह सुनाया ।  दीवान ने कहा - आप परेशान

वेताल पच्चीसी - उन्नीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - उन्नीसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  वक्रोलक नामक नगर में सूर्यप्रभ नाम का राजा राज्य करता था । उसके कोई संतान न थी । उसी समय मे एक दूसरे नगर में धनपाल नाम का एक साहूकार रहता था । उसकी स्त्री का नाम हिरण्यवती और पुत्री का नाम धनवती था । जब धनवती बड़ी हुई तो धनपाल मर गया और उसके नाते रिश्तेदारों ने उसका धन ले लिया । हिरण्यवती अपनी लड़की को लेकर रात के समय नगर छोड़कर चल दी । रास्ते में उसे एक चोर सूली पर लटकता हुआ मिला । वह मरा नहीं था । हिरण्यवती को देखकर उसने अपना परिचय दिया और कहा - " मैं तुम्हें एक हजार अशर्फीयाँ दूंगा । तुम अपनी लड़की का विवाह मुझसे कर दो ।" हिरण्यवती ने कहा - तुम तो मरने वाले हो ।  चोर बोला - मेरे कोई पुत्र नही है और निपूते की परलोक में सदगति नहीं होती । अगर मेरी आज्ञा से इसे किसी ओर से भी पुत्र हो जाए तो मेरी सदगति हो जाएगी ।  हिरण्यवती ने लोभ के वश होकर उसकी बात मान ली और अपनी लड़की का ब्याह उसके साथ कर दिया ।  चोर बोला - इस बड़ के पेड़ के नीचे अशर्फीयाँ गड़ी हैं , सो ले लेना और मेरे प्राण निकलने पर मेरा क्रिया-कर्म करके तुम अपने ल

वेताल पच्चीसी - अट्ठारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - अट्ठारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी उज्जैन नगरी में महासेन नामक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में वासुदेव शर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था , जिसके गुणाकर नाम का एक बेटा था । गुणाकर बड़ा जुआरी था। वह अपने पिता का सारा धन जुएं में हार गया। ब्राह्मण ने उसे घर से निकाल दिया । वह दूसरे नगर में पहुंचा । वहां उसे एक योगी मिला । उसे हैरान देखकर कारण पूछा तो उसने सब बता दिया ।  योगी ने कहा - लो , पहले कुछ खा लो । गुणाकर ने कहा - मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ । आपकी भिक्षा कैसे खा सकता हूँ ।  इतना सुनकर योगी ने सिद्धि को याद किया । वह आयी ।  योगी ने उससे आवभगत करने को कहा । सिद्धि ने एक सोने का महल बनवाया और गुणाकर उसमें रात-भर अच्छी तरह से रहा । सबेरे उठने पर उसने देखा कि महल आदि कुछ नहीं है ।  उसने योगी से कहा - महाराज , उस स्त्री के बिना अब मैं नही रह सकता  हूँ ।  योगी ने कहा - वह तुम्हें एक विद्या प्राप्त करने से मिलेगी और वह विद्या जल के अंदर खड़े होकर जप करने से मिलेगी । लेकिन जब वह तुम्हें मेरी सिद्धि से मिल सकती है तो तुम विद्या प्राप्त करके क्या करोगे ? गुणाकर ने कहा -

वेताल पच्चीसी - सत्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  Vikram Betal image वेताल पच्चीसी - सत्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  चन्द्रशेखर नगर में रत्नदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसकी एक लडक़ी थी , जिसका नाम था , उन्मादिनी ।  जब वह बड़ी हुई तो सेठ ने राजा के पास जाकर विवाह का प्रस्ताव रखा। राजा ने तीन दासियों को उसे देखकर आने के लिए कहा ।  उन्होंने उन्मादिनी को देखा तो वे उसके रूप पर मुग्ध हो गई , लेकिन यह सोचकर कि कहीं राजा उसके वश में न हो जाए , आकर कह दिया कि वह तो कुलक्षिणी है । राजा ने सेठ को मना कर दिया।  इसके बाद सेठ ने राजा के सेनापति बलभद्र से उसका विवाह कर दिया । वे दोनों बड़े प्रेम से रहने लगे । एक दिन राजा की सवारी उस रास्ते से निकली । उन्मादिनी अपने कोठे पर खड़ी थी । राजा की निगाह उस पर पड़ी तो वह उस पर मोहित हो गया।  उसने पता लगाया तो पता चला कि सेठ की लड़की है। राजा ने सोचा कि हो न हो जिन दासियों को मैंने देखने भेजा था , उन्होंने छल किया । राजा ने उन्हें बुलाया तो उन्होंने सारा सच बोल दिया । इतने में सेनापति वहां आ गया । उसे राजा की बैचेनी मालूम हुई । उसने कहा- स्वामी , उन्मादिनी को आप ले लीजिए । राजा ने गुस्सा होकर कहा

वेताल पच्चीसी - सोलहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  Vikram Betal in hindi वेताल पच्चीसी - सोलहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी हिमालय पर्वत पर गंधर्वो का एक नगर था, जिसमें जीमूतकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके एक लडक़ा था , जिसका नाम जीमूतवाहन था । बाप-बेटे दोनों भले थे । धर्म-कर्म में लगे रहते थे । इससे प्रजा के लोग बहुत स्वछन्द हो गए थे और एक दिन राजा के महल को घेर लिया ।  राजकुमार ने यह देखा तो अपने पिता से कहा आप चिंता न करें , मैं सबको मार भगाऊंगा ।  राजा बोला - नही ऐसा मत करों।  युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताए थे ।  इसके बाद राजा अपने गोत्र के लोगों को राज्य सौंप राजकुमार के साथ मलयाचल पर जाकर मढ़ी बनाकर रहने लगा । वहां जीमूतवाहन की एक ऋषि के पुत्र से दोस्ती हो गई । एक दिन दोनों पर्वत पर भवानी के मंदिर में गए तो वहां दैवयोग से उन्हें मलयकेतु राजा की पुत्री मिली । दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए । जब कन्या के पिता को पता चला तो उसने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया।   एक रोज की बात है, जीमूतवाहन को पहाड़ पर एक सफेद ढ़ेर दिखाई दिया। पूछा तो मालूम हुआ कि पाताल से बहुत नाग आते हैं , जिन्हें गरूड़ खा लेता है । यह ढ़ेर उन्हीं हड्डि

वेताल पच्चीसी - पन्द्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - पन्द्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी नेपाल देश में शिवपुरी नामक नगर में यशकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके चन्द्रप्रभा नाम की रानी और शशिप्रभा नाम की लड़की थी ।  जब राजकुमारी बड़ी हुई तो एक बार वसन्त उत्सव देखने बाग में गई । वहां एक ब्राह्मण का लड़का आया हुआ था । दोनों ने एक-दूसरे को देखा और प्रेम करने लगे । इसी बीच एक पागल हाथी दौडता हुआ वहां आया । ब्राह्मण के लड़के ने राजकुमारी को हाथी से बचा दूर उठाकर रख दिया । शशिप्रभा महल में चली गई पर वह ब्राह्मण के लड़के के लिए व्याकुल रहने लगी । उधर ब्राह्मण के लड़के की भी बुरी दशा थी ।  वह एक सिद्धगुरू के पास पहुंचा और अपनी इच्छा बताई । उसने एक योग गुटिका अपने मुंह में रखकर ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया और एक गुटिका लड़के के मुंह मे रखकर उसे एक सुंदर लड़की बना दिया।    राजा के पास जाकर कहा - मेरा एक ही बेटा है । उसके लिए मैं इस लड़की को लाया था , पर लड़का न जाने कहाँ चला गया । आप इसे यहां रख ले । मैं लड़के को ढूँढने जाता हूँ । मिल जाने पर इसे ले जाऊंगा ।  सिद्ध गुरू चला गया और लड़की के भेष में ब्राह्मण का लड़का राजकुमार

वेताल पच्चीसी - चौदहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  Vikram Betal stories in hindi वेताल पच्चीसी - चौदहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी अयोध्या नगरी में वीरकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक साहूकार रहता था , जिसके रत्नवती नाम की एक लडकी थी । वह बहुत सुन्दर थी । वह पुरुष के भेष में रहा करतीं थी और किसी से विवाह करना नहीं चाहती थी । उसका पिता बड़ा दुखी था ।  इसी बीच नगर में खूब चोरियां होने लगी । प्रजा दुखी हो गई । कोशिश करने पर भी जब चोर पकड़ा न गया तो राजा स्वयं उसे पकड़ने के लिए निकल पड़ा । एक रात राजा जब भेष बदले घूम रहा था तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया । राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया ।  चोर ने कहा - तुम तो मेरे साथी हुए । आओं मेरे घर चलो ।  दोनों घर पहुंचे । उसे बिठाकर चोर किसी काम से बाहर गया । इसी बीच एक दासी आयी और बोली - "तुम यहाँ क्यों आएं हो ? चोर तुम्हें मार डालेगा । भाग जाओं । " राजा ने ऐसा ही किया । फिर उसने फौज लेकर चोर का घर चारों ओर से घेर लिया । जब चोर ने यह देखा तो वह लड़ने के लिए तैयार हो गया । दोनों की खूब लडाई हुई । अंत में चोर हार गया । राजा उसे पकड़कर लाया और सूल

वेताल पच्चीसी - तेरहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  विक्रम वेताल - तेरहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी बनारस में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था । उसके हरिदास नामक एक पुत्र था । हरिदास की बड़ी सुंदर पत्नी थी , लावण्यवती। एक दिन वे महल के छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला । वह लावण्यवती के रूप पर मोहित हो उसे उड़ाकर ले गया । जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी पत्नी वहां नहीं है तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया । लोगो के समझाने पर वह मान तो गया  , लेकिन यह सोचकर कि तीर्थं करने से पाप कम हो और स्त्री मिल जाए तो वह घर से निकल पड़ा । चलते-चलते वह किसी गांव के एक ब्राह्मण के घर पहुंचा । उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे एक कटोरा भर के खीर दिया और तालाब किनारे बैठकर खाने के लिए कहा । हरिदास खीर का कटोरा लेकर एक पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहां रखकर तालाब में हाथ मुंह धोने गया । इसी बीच एक बाज किसी सांप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा और जब वह सांप को खाने लगा तो सांप के मुंह से जहर टपपककर कटोरे में गिर गया । हरिदास को कुछ पता नहीं था।  वह उस खीर को खा गया।  जहर का असर होने पर वह तड़पने

वेताल पच्चीसी - बारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - बारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी किसी जमाने में अंगदेश में यशकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके दीर्घदर्शी नामक एक बड़ा चतुर दीवान था । राजा बड़ा विलासी था । राज्य का सारा बोझ वह दीवान पर डालकर विलास में डूब गया था।  दीवान को बहुत दुख हुआ । उसने देखा कि राजा के साथ सब जगह उसकी भी निंदा हो रही है इसलिए वह तीर्थ का बहाना बनाकर निकल गया। चलते-चलते उसे रास्ते में एक शिव मंदिर मिला।  उसी समय निछिदत्त नामक एक सौदागर वहां आया और दीवान के पूछने पर उसने बताया कि वह सुवर्णद्वीप में व्यापार करने जा रहा है । दीवान भी उसके साथ हो लिया।   दोनों जहाज में सवार होकर सुवर्णद्वीप गये और वहाँ व्यापार कर धन कमाके लौटे । रास्ते में समुद्र में दीवान को एक कल्पवृक्ष दिखाई दिया । उसकी मोटी-मोटी शाखाओं पर रत्नों से जुड़ा एक पलंग बिछा था । उस पर एक रूपवती कन्या बैठी वीणा बजा रही थी । थोड़ी देर बाद वह गायब हो गई । पेड़ भी नही रहा । दीवान बड़ा चकित हुआ ।  दीवान ने अपने नगर में लौटकर सारा हाल कह सुनाया । इस बीच इतने दिनों से राज्य का भार संभालकर राजा सुधर गया था उसने विलासिता छोड़ दिया था ।

वेताल पच्चीसी - ग्यारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - ग्यारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी गौड़ देश में वर्धमान नाम का एक नगर था , जिसमें गुणशेखर नामक राजा राज्य करता था । उसके अभयचन्द्र नामक दीवान था । उस दीवान के समझाने से राजा ने अपने राज्य में शिव और विष्णु की पूजा , गोदान , भूदान , पिण्डदान आदि सब बंद करवा दिया । नगर में डोंडी पिटवा दी कि नगर में जो कोई यह सब काम करेगा उसका सब कुछ छीन कर नगर से बाहर कर दिया जाएगा ।  एक दिन दीवान ने कहा - महाराज ! अगर कोई किसी को दुख पहुंचाता है और उसके प्राण लेता है तो पाप से उसका जन्म मरण नहीं छूटता । वह बार-बार जन्म लेता है और मरता है । इसलिए मनुष्य का जन्म पाकर धर्म बढ़ना चाहिए । आदमी को हाथी से लेकर चींटी तक की रक्षा करनी चाहिए । जो लोग दूसरे के दर्द को नही समझते और उन्हें सताते है , उनकी इस पृथ्वी पर उम्र घटती जाती है और वे लोग इस धरती पर लूल्हे , लंगड़े , काने , बौने होकर जन्म लेते हैं ।  राजा ने कहा - ठीक है । अब दीवान ने जैसा कहा राजा वैसे ही करता । दैवयोग से राजा एक दिन मर गया । उसकी जगह उसका पुत्र धर्मराज गद्दी पर बैठा । एक दिन उसने किसी बात पर नाराज होकर दीवान को नगर स

वेताल पच्चीसी - दसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - दसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी मदनपुर में वीरवर नामक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में एक वैश्य था , जिसका नाम हिरण्यदत्त था । उसके मदनसेना नामक एक कन्या थी ।  एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग में गई । वहां संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था । वह मदनसेना को देखते ही उससे प्रेम करने लगा । घर लौटकर वह उसके लिए सारी रात बैचैन रहा । अगले दिन फिर वह बाग में गया । वहां मदनसेना अकेली बैठी थी ।  उसने उसके पास जाकर कहा - तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण त्याग दूंगा ।  मदनसेना बोली - आज से पांचवे दिन मेरी शादी हैं । मैं तुम्हारी नहीं हो सकती ।  वह बोला - मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता ।  मदनसेना डर गयी । बोली - अच्छी बात है , मेरा विवाह हो जाने दो मैं अपने पति के पास जाने से पहले तुमसे मिलने आऊंगी ।  वचन देकर मदनसेना डर गयी । उसका विवाह हो गया और जब वह अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली - "आप मुझपर विश्वास करे और अभय दान दे तो एक बात कहूँ !" पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कही । सुनकर पति ने सोचा

वेताल पच्चीसी - नौंवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - नौंवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  चम्मापुर नामक एक नगर था , जिसमें चम्पकेश्वर नामक राजा राज्य करता था । उसके सुलोचना नाम की एक रानी थी और त्रिभुवनसुंदरी नाम की एक लडकी थी। राजकुमारी यथा नाम तथा गुण थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका रूप और निखर गया।  राजा और रानी को उसके विवाह की चिंता हुई । चारों ओर इसकी खबर फैल गई । बहुत से राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर भेजी , परंतु राजकुमारी ने किसी को भी पसंद नहीं किया ।  राजा ने कहा - बेटी, कहो तो स्वयंवर का आयोजन करूँ ? लेकिन वह राजी नहीं हुई । आखिर राजा ने तय किया कि उसका विवाह उस आदमी से करेगा जो रूप , बल और विद्या में बढ़ा चढ़ा होगा ।  एक दिन राजा के पास चार देश से चार वर आए ।  एक ने कहा - मैं एक कपड़ा बनाकर पांच लाख में बेचता हूँ, एक लाख देवता को चढ़ाता हूँ , एक लाख अपने अंग लगाता हूँ , एक लाख स्त्री के लिए रखता हूँ और एक लाख अपने खाने-पीने का खर्च चलाता हूँ । इस विद्या को कोई ओर नही जानता ।  दूसरा बोला - मैं जल-थल के पशुओं की भाषा जानता हूँ । तीसरा बोला - मैंने इतना शास्त्र पढ़ा है कि कोई ओर मेरा मुकाबला नहीं कर सकता है । 

वेताल पच्चीसी - आठवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - आठवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  अंग देश के एक गाँव में एक धनी ब्राह्मण रहता था । उसके तीन पुत्र थे । एक बार ब्राह्मण ने यज्ञ कराना चाहा । उसके लिए एक कछुएं की जरूरत थी । उसने तीनों भाईयों को कछुआ लाने के लिए कहा । वे तीनों समुद्र तट पर पहुंचे । वहां उन्हें एक कछुआ मिल गया ।  बड़े भाई ने कहा - मैं भोजनचंग हूँ इसलिए कछुएं को नही छुऊंगा ।  मझला बोला - मैं नारीचंग हूं इसलिए नही छुऊंगा ।  सबसे छोटा बोला - मैं शैयाचंग हूँ सो मैं नहीं ले जाऊंगा ।  वे तीनों इस बहस में पड़ गए कि कौन उनमें से बढ़कर है । जब वे आपस में फैसला न कर सकें तो राजा के पास पहुंचे ।  राजा ने कहा - आप लोग रूके । मैं तीनों की अलग-अलग जांच करूंगा ।  इसके बाद राजा ने बढिया भोजन तैयार करवाया और तीनों खाने बैठे ।  सबसे बड़े ने कहा कि मैं इसे नहीं खाऊंगा इसमें मुर्दे की गंध आती हैं।  वह उठकर चला गया । राजा ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन शमशान वाले खेत का बना है।  राजा ने उससे कहा - तुम सचमुच में भोजनचंग हो , तुम्हें भोजन की पहचान है ।  रात के समय राजा ने एक खूबसूरत वेश्या को मँझले भाई के पास भेजा । ज

वेताल पच्चीसी - सातवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - सातवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  मिथलावती नाम की एक नगरी थी । उसमें गुणधिप नाम का राजा राज्य करता था । उसकी सेवा करने के लिए दूर देश से एक राजकुमार आया । वह बराबर कोशिश करता रहा , परंतु राजा से उसकी भेंट न हुई । जो कुछ वह अपने साथ लाया था सब समाप्त हो गया । एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गया । राजकुमार भी साथ हो लिया । चलते-चलते राजा वन में पहुंचा । वहां उसके नौकर-चाकर बिछुड़ गए । राजा के साथ वह राजकुमार अकेला रह गया । उसने राजा को रोका ।  राजा ने उसकी ओर देखकर कहा - तू इतना कमजोर क्यों हो रहा है ?  उसने कहा - मेरे कर्म का दोष है । मैं जिस राजा के पास रहता हूँ वह हजारों को पालता है , पर उसकी निगाह मेरी ओर नही जाती । राजन् , छः बातें इंसान को हल्का करतीं हैं - खोटे नर की प्रीति , बिना कारण हंसी , स्त्री से विवाद , असज्जन स्वामी की सेवा , गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा । और हे राजन् , ये पांच चीजें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता है - आयु , कर्म , धन , विद्या और यश । राजन् जब तक आदमी का पुण्य उदय रहता है , तब तक उसके बहुत से दास रहते हैं ।

वेताल पच्चीसी - छठी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - छठी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी धर्मपुर नामक नगरी में धर्मशील नाम का राजा राज्य करता था ।उसके अन्धक नामक एक दीवान था ।  एक दिन दीवान ने कहा - महाराज , देवी का एक मंदिर बनवाया जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा ।  राजा ने ऐसा ही किया । एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने के लिए कहा । राजा को कोई संतान न थी । उसने देवी से पुत्र मांगा । देवी के वरदान अनुसार राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई । सारे नगर में खुशियाँ मनाई गई ।  एक दिन एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया । उसकी निगाह देवी के मंदिर पर पड़ी । उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसी समय उसे एक धोबी की लड़की दिखाई  दी , जो बड़ी सुंदर थी । उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने देवी के मंदिर जाकर प्रार्थना की , "हे देवी अगर यह लडक़ी मुझे मिल गई तो अपना शीश तुम्हें अर्पित कर दूंगा "।  इसके बाद वह हर घड़ी बैचैन रहने लगा । उसके मित्र ने उसके पिता को सब हाल कह सुनाया । अपने पुत्र की यह हालत देखकर वह लड़की के पिता के पास गया और उससे अनुरोध किया । इस तरह दोनों का विवाह हो गया ।  विवाह के कुछ दिन बाद लड़की