राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 13 / Stories of Raja Vikramaditya 13
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
तेरहवीं पुतली कीर्तिमति ने अपनी कहानी सुनाई -
एक बार राजा विक्रमादित्य जंगल में शिकार खेलने के लिए गया। बहुत से सैनिक और नौकर-चाकर भी उसके साथ थे । जंगल में जाकर शिकार की तैयारी हुई । इसी बीच राजा विक्रमादित्य की नजर एक परिंदे पर पड़ी । उसने बाज छोड़ा और स्वयं घोड़े पर सवार होकर उसे देखते हुए चला। चलते-चलते कोसों दूर निकल गया । शाम हुई तो उसे पता चला कि उसके साथ कोई नहीं हैं । चारों ओर घना जंगल था । रात होने पर राजा ने अपने घोड़े को एक पेड़ से बांध दिया और खुद उसकी जीन बिछाकर बैठ गया । तभी उसने देखा कि पास में जो नदी हैं वह बढ़ती आ रही है । राजा पीछे हट गया । नदी और बढ़ आई । उसी समय उसने देखा कि नदी की धारा में एक मुर्दा बहा जा रहा है और उस पर एक योगी और एक वेताल खींचातानी कर रहे हैं। वेताल कहता था कि मैं इसे हजार कोस दूर से लाया हूँ इसलिए इसे मैं खाऊंगा। योगी कहता है इस पर मैं अपना मंत्र साधुगा। जब झगड़ा किसी प्रकार नहीं निबटा तो उनकी नजर राजा पर पड़ी । वे उसके पास आए और सारा हाल कह सुनाया और कहा कि जो तुम फैसला कर दोगे हम मान लेंगे। राजा ने कहा कि पहले तुम दोनों मुझे कुछ दो तो न्याय करूंगा । योगी ने हंस कर राजा विक्रमादित्य को एक बटुआ दिया और कहा कि इससे तुम जो मांगोगे वह देगा। वहीं वेताल ने उसे मोहिनी तिलक दिया । उसने बताया कि जब तुम यह तिलक घिसकर माथे पर लगाओगे तो कोई भी तुम्हें दबा नहीं सकेगा।
राजा ने दोनों चीजें ले ली । फिर उसने वेताल से कहा कि तुम्हें अपना पेट भरना है न? तो मेरा घोड़ा खा लो और मुर्दे को इस योगी को दे दो । इस फैसले से दोनों खुश हो गए।
राजा विक्रमादित्य दोनों चीजों को लेकर अपनी नगरी वापस लौटा। वहां उसे एक भिखारी मिला ।
वह बोला - महाराज कुछ दीजिए ।
राजा ने बटुआ उसे दे दिया और उसका भेद भी बता दिया उसके बाद अपने महल लौट आया ।
पुतली बोली - हे राजन् ! अगर तुम ऐसे दिलवाले हो तो सिंहासन पर बैठो ।
अगले दिन राजा भोज बड़े तड़के उठ कर सिंहासन पर बैठने के लिए तैयार हुआ । दीवान को बुलाकर सौ गाय दान की । परंतु बैठने से पहले ही चौदहवीं पुतली ने उसे रोक दिया और अपनी कहानी सुनाई।
चौदहवीं पुतली की कहानी अगले पोस्ट में पढें -
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