राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 10 / Stories of Raja Vikramaditya 10

 सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ


राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ

दसवीं पुतली प्रभावती ने अपनी कहानी सुनाई -

एक दिन राजा विक्रमादित्य अपने बगीचे में बैठा हुआ था । वसन्त ऋतु थी । टेसू के फूल खिले थे । कोयल कूक रही थी । इतने में एक आदमी राजा के पास रोते हुए आया । उसका शरीर सूख कर काँटा हो गया था । उसने बताया कि वह खाना-पीना त्याग चुका है । उसकी व्याकुलता का कारण राजा ने उससे पूछा । 

उसने कहा - मैं कालिंजर का रहने वाला हूँ । एक यती ने बताया कि अमुक जगह एक बहुत सुंदर स्त्री हैं जैसी तीनों लोकों में ओर कोई न है । लाखों राजा महाराजा और लोग उसे पाने की इच्छा से आते हैं । उसके पिता ने एक कड़ाह में तेल खौलवा रखा है । कहता है खौलते तेल से जो स्नान करके निकल आएगा , उसी के साथ अपनी पुत्री का विवाह करेगा । जब से उस सुंदर स्त्री को देखा है तब से मेरी यह हालत है।  


राजा ने कहा - घबराओं मत कल हम वहां साथ-साथ चलेंगे। 

अगले दिन राजा अपने नित्य कर्मों से छुट्टी पाकर दोनों वीरों को बुलाया । 


राजा के कहते हैं वे उसे वहां ले गए जहां वह स्त्री रहती थी। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि बाजे बज रहे हैं और वह राजकन्या हाथ में वरमाला लिए घूम रही है । जो कड़ाह में कूदता है वह जलकर खाक हो जाता है ।

राजा उस राजकन्या को देखकर बहुत खुश हुआ और झट से कड़ाह में कूद गया और कूदते ही भुन कर राख हो गया। राजा के दोनों वीरों ने यह देखा तो तुरंत अमृत ला राजा पर छिड़का और वह तुरंत जी उठा । फिर क्या था बस राजा विक्रमादित्य का विवाह उस राजकन्या से हो गया । 



राजकन्या ने राजा विक्रमादित्य के सामने हाथ जोड़कर कहा - हे राजन् ! तुम्हारे कारण मुझे दुख से छुटकारा मिला । मेरे पिता ने ऐसा काम किया कि वह नरक में जाता और मुझे हमेशा कुंवारी रहना पड़ता ।


चूंकि राजा विक्रमादित्य ने उस राजकन्या को उस व्यक्ति के लिए जीता था अतः उसने राजकन्या उस व्यक्ति को सौंप दिया और साथ ही साथ बहुत सारा धन भी दिया । 


इतना कहकर पुतली बोली - हे राजन् ! देखों कैसे राजा विक्रमादित्य ने इतनी पराक्रम से मिली स्त्री को सहर्ष किसी ओर पुरूष को सौंप दिया । क्या तुम ऐसा करने की हिम्मत रखते हो तभी इस सिंहासन पर बैठना । 




राजा भोज बहुत असमंजस में पड़ गया परंतु सिंहासन पर बैठने की उसकी इच्छा और तीव्र हो गई । अगले दिन फिर से वह सिंहासन की ओर बढ़ा तो ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना ने उसे रोक दिया और कहा - "ठहरों ! पहले मेरी बात सुनों " ।


राजा भोज रूक गए और ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना ने अपनी कहानी सुनाई ।



ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना की कहानी अगले पोस्ट में पढें -


 


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