अंधों का हाथी
किसी गांव में चार अंधे रहते थे । उन्होंने गांव में हाथी आने की खबर सुनी । वे रास्ता पूछते-पूछते हाथी तक पहुंचे । महावत से बोले - 'भईया ! जरा हाथी को अपने कब्जे में रखना हम चारों टटोलकर देखेंगे ।' महावत ने सोचा इसमें मेरा क्या जाएगा । इन अंधो का मन रह जाएगा । चारों अंधे हर चीज को टटोलकर देखते। एक ने अपना हाथ बढ़ाया तो हाथी का कान पर पड़ा । वह बोला हाथी सूप की तरह होता है । दूसरे अंधे का हाथ हाथी के पैर पर पड़ा । वह बोला नहीं हाथी खम्भे जैसा होता है । तीसरे का हाथ हाथी के सूढ़ पर पड़ा वह बोला नहीं नहीं हाथी मोटे रस्से जैसा होता है । चौथे अंधे का हाथ हाथी के पेट पर पड़ा । वह बोल उठा तुम सब गलत बोल रहे हो । हाथी तो मशक जैसा होता है । चारों अपनी-अपनी बात पर अड़ गए और लगे झगड़ने । एक समझदार आदमी वहां खड़े-खड़े इनकी बातें सुन रहा था उसने लडाई का बड़ा अच्छा तरीका अपने मन में निकाला कि सभी अपनी-अपनी जगह पर सही है बशर्ते कि उन्हें समझ आ जाए कि उन्होंने हाथी के एक अंग को देखा है पूरे हाथी को नहीं । इसलिए पूरी बात समझ में