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तुलसीदास जीवन परिचय

तुलसीदास मध्यकाल के भक्त कवियों में सेे एक थे , इनका पूरा जीवन आश्चर्यों से भरा पड़ा है। कुछ विद्वान तुुुुलसीदास जी को आदिकवि वाल्मीकि जी का भी अवतार मानते हैं। इनका जन्म राजापुर, उत्तर प्रदेश हुआ माना जाता है , राजापुर जिला चित्रकूूूट में स्थित एक गांव है। आत्माराम दुबे नामक ब्राहमण केे घर इनका जन्म 1511ई में हुआ था । इनकी माता का नाम हुलसी था । ऐसा माना जाता है कि तुुुलसीदास जी बारह महीने माँ के गर्भ में रहे इसलिए जन्म के समय ही इनके दांत आ चुके थे और तो और पैदा होते ही उन्होंने राम नाम का उच्चारण किया था इसलिए इनका नाम रामबोला पड़ा । जन्म लेने के दूसरे दिन ही इनकी माता की मृत्यु हो गई इसलिए इनके पिता ने इन्हें  एक दासी को दे दिया । जब रामबोला पांच वर्ष का हुआ तो वह दासी भी मर गई और इस तरह रामबोला अनाथों की तरह अपना जीवन जीने लगा । संत नरहरिदास ने इसके बाद इनका पालन-पोषण अयोध्या ले जाकर किया तथा विधिवत यज्ञोपवीत-संस्कार कर इनका नाम रामबोला से तुलसीराम रखा और वेद-शास्त्रों की शिक्षा दी ।                                 बचपन में ही तुलसीदास जी बड़ी प

मलिक मुहम्मद जायसी

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अवधी भाषा में लिखी प्रसिद्ध पुस्तक 'पद्मावत' के लेखक और लोकप्रिय सूफ़ी संत मलिक  मुहम्मद जायसी का जन्म आधुुुनिक उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जायस नामक गांव में 1397ईसा से 1494ईसा के बीच हुआ था । इनके पिता एक मामूूूली किसान थे और खुद मलिक साहब भी खेती ही करते थे । आरंभ से ही इनका झुकाव सूफ़़ी मत की ओर था और बेटे की आकस्मिक मृत्यु से दुुखी होकर फकीर बन गए । मलिक साहब के गुरु चिश्ती वंश के सैयद अशरफ थे जिन्होंने उनकों अपना चेला बनाकर सच्चाई की राह दिखाई। जायसी एक उच्चकोटि के विद्वान और सरल ह्रदय संत थे लेकिन वे देखने में बहुत ही कुरूप और काने थे । एक बार दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी ने मलिक साहब के बारे में काफ़ी कुछ सुन रखा था, उनसे मिलने पहुंचे । शेरशाह मलिक साहब का कुरूप चेहरा देखकर हंसने लगा तब उन्होंने बहुत ही शांत भाव से पूछा कि 'तुम मुझ पर हंस रहे हो या मुझे बनाने वाले कुम्हार (ईश्वर ) पर हंस रहे हो ?'                            शेरशाह मलिक साहब की बात सुनकर बहुत लज्जित हुआ और उनसे माफी मांगी। जायसी ने तीस वर्ष में काव्य रचना की

सूरदास / Surdas

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 सूरदास का जन्म सन् 1478 में माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रूनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म दिल्ली के पास सीही माना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक चर्चित हैं । वे मथुरा और वृन्दावन के बीच गऊघाट पर रहते थे और श्रीनाथ जी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे।  सन् 1583 में पारसौली में उनका निधन हुआ।                      उनके तीन ग्रंथों सूरसागर  , साहित्य लहरी और सूर सारावली में सूरसागर ही सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। खेती और पशुपालन वाले भारतीय समाज का दैनिक अंतरंग चित्र और मनुष्य की स्वाभाविक वृत्तियों का चित्रण सूर की कविताओं में मिलता है।  सूर 'वात्सल्य ' और 'श्रृंगार ' के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। कृष्ण और गोपियों का प्रेम सहज मानवीय प्रेम की प्रतिष्ठा करता है।  सूर ने मानव प्रेम की गौरव गाथा के माध्यम से सामान्य मनुष्यों को हीनता की भावना से मुक्त किया, उनमें जीने की ललक पैदा की।           उनकी कविता में ब्रजभाषा का निखरा हुआ