राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 17 / Stories of Raja Vikramaditya 17
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
सत्रहवीं पुतली विद्यावती ने अपनी कहानी सुनाई -
एक दिन राजा विक्रमादित्य अपनी सभा में बैठा हुआ था । अचानक उसने पंडितों से पूछा - बताओं पाताल का राजा कौन है ?
एक पंडित बोला - महाराज पाताल का राजा शेषनाग है।
राजा की इच्छा हुई कि उसे देखे। उसने अपने वीरों को बुलाया । वे उसे पाताल लोक ले गए । राजा विक्रमादित्य ने देखा कि शेषनाग का महल रत्नों से जगमगा रहा है। द्वार पर कमल के फूलों की बंदनवारे बंधी हुई है । घर-घर आनंद हो रहा है । खबर मिलते ही शेषनाग द्वार पर आया । पूछा कि तुम कौन हो ? राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय दिया और कहा कि आपके दर्शन की इच्छा थी सो पूरी हुई ।
शेषनाग राजा विक्रमादित्य को अपने महल के अंदर ले गया और खूब आवभगत की । राजा पांच-सात दिन वहां रहा । जब विदा मांगी तो शेषनाग ने उसे चार लाल दिए और कहा कि एक का गुण यह है कि , जितने चाहे गहने उससे ले लो । दूसरे लाल से हाथी-घोड़े-पालकियां मिलती थी तीसरे से लक्ष्मी और चौथे लाल से हरिभजन और अनेकों काम करने वालों की इच्छा पूर्ण होती थी ।
राजा अपने नगर वापस आया । उसे एक भूखा ब्राह्मण मिला । उसने भिक्षा मांगी । राजा ने सोचा कि एक लाल उसे दे दे । उसने ब्राह्मण को चारों लाल के गुण बताया और पूछा कि उसे कौन सा चाहिए ?उसने कहा कि मैं अपने घर में पूछ कर आता हूँ । घर पहुंचकर उसने ब्राह्मणी को चारों लालों के बारे मैं बताया । ब्राह्मणी ने कहा कि वह लाल लो जो लक्ष्मी देती है क्योंकि लक्ष्मी से ही सारे काम होते हैं ।
ब्राह्मण के बेटे ने कहा - अकेले लक्ष्मी से क्या होगा । तुम वह लाल लो जिससे हाथी-घोड़े-पालकियां मिलती है ।
बेटे की बहू ने कहा - तुम वह लो जिससे गहने मिलते है क्योंकि गहने से सारे काम होते हैं ।
ब्राह्मण ने कहा - तुम सब पागल हो गए हो । मेरी इच्छा सिवा धर्म-कर्म के और कुछ नहीं है क्योंकि धर्म से जग में यश मिलता है । मैं तो वह लाल लूंगा जिससे धर्म-कर्म मिले ।
चारों की चार मत । ब्राह्मण क्या करे । उसने राजा विक्रमादित्य को सारी बात बताई ।
राजा ने कहा - तुम उदास मत हो । चारों लाल ले जाओ ।
ब्राह्मण को चारों लाल देकर राजा विक्रमादित्य अपने महल को लौट गया ।
इतना कहकर पुतली बोली - हे राजन्! कहो इस कलियुग में है कोई इतना दानी ?
राजा भोज बड़े निराश हो गए । अगले दिन उन्हें अठारहवीं पुतली ने रोक अपनी कहानी सुनाई ।
अठारहवीं पुतली की कहानी अगले पोस्ट में पढें -
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