राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 22 / Vikramaditya stories in hindi 22
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
बाईसवीं पुतली अनुरोधवती ने कहना शुरू किया -
एक दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने दीवान से पूछा कि आदमी बुद्धि अपने कर्म से पाता है , या माता-पिता से ?
दीवान ने कहा - महाराज पूर्व जन्म में जो जैसा कर्म करता है , विधाता उसके भाग्य में वैसा ही लिख देता है।
राजा ने कहा - यह तुम कैसे कह सकते हो ? जन्म लेते ही लड़का माता-पिता से सीखता है।
दीवान फिर बोला - नहीं महाराज कर्म का ही लिखा होता है।
इसपर राजा ने किया कि दूर बियवान में एक महल बनवाया और उसमें अपने दीवान के , ब्राह्मण के और कोतवाल के बेटे को जन्म लेते ही गूँगी , बहरी और अंधी दांइया देकर उस महल में भिजवा दिया । बारह वर्ष बाद उन्हें बुलाया । सबसे पहले अपने लड़के से पूछा - तुम्हारे क्या हाल है ?
राजकुमार ने हंसकर कहा - आपके पुण्य से सब कुशल है ।
राजा ने खुश होकर दीवान की तरफ देखा।
दीवान ने कहा - महाराज यह सब कर्म का लिखा है ।
फिर राजा ने दीवान के बेटे को बुलाया और वही सवाल पूछा।
उसने कहा - महाराज ! संसार में जो आता है , वह जाता भी है । सो कुशल कैसी ?
सुनकर राजा विक्रमादित्य चुप हो गया । थोड़ी देर बाद उसने कोतवाल के पुत्र से वह सवाल किया । कुशल पूछने पर उसने कहा - महाराज ! कुशल कैसे हो ? चोर चोरी करता है और बदनाम हम होते हैं ।
इसके बाद ब्राह्मण के बेटे की बारी आई । उसने कहा - महाराज! दिन पर दिन उम्र घटती जाती है । सो कुशल कैसी ?
चारों की बातें सुनकर राजा विक्रमादित्य समझ गए कि दीवान ठीक कह रहा था । महल में कोई सिखाने वाला नहीं था । फिर भी वे चारों सीख गए तो इसमें पूर्वजन्म के ही कर्मों का हाथ रहा होगा । राजा ने दीवान को सब सरदारों का सरदार बनाया और चारों लड़को का विवाह करके उन्हें बहुत सारा धन दिया ।
पुतली बोली - राजा होकर भी जो अपनी बात पर हठ न करें और सही बात को माने , वही सिंहासन पर पांव रखे ।
अगले दिन तेईसवीं पुतली ने राजा को रोक अपनी कहानी सुनाई ।
तेईसवीं पुतली की कहानी अगले पोस्ट में पढें-
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