Stories of Mahabharat , hindu mythologies, Hitopdesh, folk tales etc
About us
लिंक पाएं
Facebook
X
Pinterest
ईमेल
दूसरे ऐप
Welcome to kathasagar. A blog for hindi motivational stories, hitopadesh stories , mythological stories, Mahabharata stories, Ramayana stories, Folk tales stories in hindi, poet biography, Biography of Great people and lot more.....
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ नाम का अर्थ होता है - 'वह जिसने अपने सभी इच्छाओं को पूरा किया। ' यह नाम उनके पिता राजा शुद्धोधन ने रखा था , क्योंकि जब बुद्ध का जन्म हुआ था तो सभी ज्योतिषियों और विद्वानों ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक बड़ा होकर एक महान सन्यासी बनेगा पंरतु बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन को यह बात अच्छी नहीं लगी। वे अपने पुत्र को एक महान राजा के रूप में देखना चाहते थे न कि एक सन्यासी। वे नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र फ़कीरों का जीवन जिए इसलिए सिद्धार्थ के रहने की व्यवस्था विलासिता से पूर्ण की गई । उन्हें तरह तरह की सुख सुविधाओं से रखा गया । दुख की अनुभूति तक न होने दी पंरतु एक सन्यासी के लक्षण तो बचपन में ही दिख जाता है। वे बचपन से ही शांत और सरल स्वभाव के थे। दया और करूणा तो उनके मन में कूट -कूट करकें भरी है थी । अक्सर सिद्धार्थ एकांत में जाकर ध्यानमग्न रहा करते थे। Little cute Buddha image एक दिन कि बात
Bhakt shridhar ki katha in hindi Mata vaishno devi yatra त्रिकुट पर्वत के तराई में बसा हुआ एक गांव था हंसली। इस गांव में एक गरीब ब्राहमण श्रीधर रहा करते थे , माँ जगदंबा के परम भक्त। वैसे तो श्रीधर और उनकी पत्नी निर्धन होते हुए भी अपना जीवन यापन संतुष्टि से कर रहे थे लेकिन निसंतान होने के कारण वे दोनों बहुत दुखी रहा करते थे । एक बार कि बात है श्रीधर ने सपने में देखा कि साक्षात देवी जगदंबा उनसे कह रही है कि नौ कुवांरी कन्याओं की पूजा कर के उन्हें भोजन कराने जिससे तुम्हारी इच्छा जल्द ही पूरी होगी। सुबह श्रीधर ने यह बात अपनी पत्नी को बताई जिसे सुनकर वह बहुत खुश हुई और माता रानी को प्रणाम किया और अपने पति से बोली -' अगर माँ जगदंबा ने इशारा किया है तो हमें जरूर कुमारी कन्याओं का पूजन करना चाहिए। आप गांव की नौ बालिकाओं को जाकर कल कन्या- पूजन के लिए न्योता देकर आइये ।' पत्नी की बात सुनकर श्रीधर चिंता में पड़ गए और कहा-'कुमारी कन्याओं का पूजन तो करना
अति प्राचीन काल में मधु-कैटभ नामक दो असुर हुए । जब संसार में चारों ओर जल-ही-जल था तो भगवान विष्णु अपनी शेषनाग शैय्या में निद्रा में लीन थे तो उनके कान के मैंल से मधु-कैटभ का जन्म होता है । एक बार कि बात है , उन्हें आकाश में एक स्वर सुनाई दिया जिसके बारे में उन्हें भ्रम हुआ कि यह देवी का महामंत्र है । उस दिन के बाद से ही दोनों भाइयों ने मंत्र का जाप शुरू कर दिया । अन्न जल त्याग कर हजारों बर्षों तक कठिन तपस्या की । भगवती उनसे प्रसन्न हुई और उनसे कहा -"मैं तुम दोनों की तपस्या से प्रसन्न हूँ , मांगों क्या चाहिये तुम्हें? " स्वर सुनकर मधु-कैटभ असुरों ने कहा - "हे देवी हमें इच्छा मृत्यु का वरदान प्रदान करें ।" देवी ने कहा -"जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा " भगवती के वरदान का उन दोनों को बहुत अभिमान हो गया और वे जल में रहने वाले जीवों को परेशान कर लगे । एक दिन उनकी नजर ब्रह्मा जी पर पड़ी जो कमल के पुष्प पर विराजमान थे । उन्हें शरारत सूझी और दैत्यों ने ब्रह्मा जी से कहा कि अगर हिम्मत है त
Shumbh-nishumbh katha>mythology >goddess Kali >Navratri 2018 शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों ने अन्न-जल त्याग कर दस हजार वर्षों तक ब्रह्मा जी की तपस्या की थी और तीनो लोकों पर राज करने का वरदान प्राप्त किया था। उन्होंने ब्रह्मा से वर मांगा कि स्त्रियों से तो उन्हें कोई भय नहीं है और कोई पशु- पक्षी भी उन्हें न मार पाएं । वरदान प्राप्त करने के फलस्वरूप ऐ दोनों दुष्ट असुर और ज्यादा उनमादित हो गए । जब यह बात " दैत्य गुरू शुक्रराचार्य " को पता चली तो उन्होंने शुम्भ का राज्याभिषेक करा दिया और दोनों भाइयों को पूरे असुर समुदाय का राजा बना दिया । इसके फलस्वरूप पृथ्वी- निवासी सभी असुर रक्तबीज, चण्ड-मुण्ड आदि सभी शुम्भ- निशुम्भ से जा मिलें जिसके कारण असुरों का साम्राज्य दिन- प्रति-दिन बढ़ता ही जा रहा था । निशुम्भ स्वर्ग में अधिकार करने पहुंचा और वहां इंन्द्र के व्रज प्रहार से अचेत हो गया तब शुम्भ ने इन्द्र से युद्ध किया और उसे हराकर सारे हथियार छीन लिया। इन्द्र सहित सभी देवता किसी प्रकार अपने प्राणों की रक्षा कर वहां से निकल भागे । तब द
महात्मा बुद्ध का जन्म | Birth Story of Mahatma Buddha कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन की पत्नी 'महारानी महामाया देवी ' जब गर्भवती थी तब आषाढ़ पूर्णिमा की रात्रि को जब वह गहरी नींद में सो रही थी तो उन्होंने एक दिव्य सपना देखा। उन्होंने देखा कि चारों दिशाओं से दूत आये और उन्हें उठाकर हिमालय पर्वत के नीचे एक 'अनोत वदह' नाम के सरोवर के किनारे ले गए , जहां चारों ओर सुगंधित फूलों के बगीचे थे । चार सुंदर युवतियों ने देवी महामाया को नींद से जगाया और उन्हें सुगंधित उबटन लगा नहलाने के बाद सफेद वस्त्र पहनाया । थोड़ी देर बाद ही एक सफेद हाथी अपनी सूढ़ में श्वेत पुष्पों की माला पहन वहां प्रवेश किया और रानी की प्रदक्षिणा लगाकर सूक्ष्म रूप लेकर उनके गर्भ में प्रवेश कर गया। उसी समय रानी की नींद खुल गई । अगली सुबह रानी महामाया ने अपने स्वप्न के बारे में अपने पति राजा शुद्धोधन को बताया। वह भी इस प्रकार के स्वप्न का वर्णन सुन अचंभित हुए और इसका मतलब पूछने के लिए ज्योतिषियों को बुलाया । सबने इस सपने को बहुत शुभ बताया जिसे सुनकर रानी बहुत खु
एक बार की बात है भस्मासुर नामक एक राक्षस को संपूर्ण विश्व पर राज करने की इच्छा हुई ।तब वह सोचने लगा कि संपूर्ण जगत पर राज करने के लिए तो उसे देवताओं के समान अमर होना चाहिए और अगर उसे अमर होना है तो उसे भगवान शिव की तपस्या करनी चाहिए क्योंकि भगवान शिव सबसे जल्दी अपने भक्तों पर प्रसन्न होते है। भस्मासुर ने भगवान शिव की कठिन तपस्या शुरू कर दी । भगवान शिव भस्मासुर की तपस्या से खुश हुए और भस्मासुर को दर्शन दिया और कहा कि उसे जो चाहिए वह मांग सकता है। भस्मासुर बहुत प्रसन्न होकर बोला- 'हे प्रभु! आप तो अंतर्यामी है , आपको तो पता है कि मैं संपूर्ण जगत पर राज करना चाहता हूं इसलिए मुझे अमर होने का वरदान प्रदान करे। भगवान शिव ने कहा - 'हे वत्स! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं पर यह वरदान मैं नहीं दे सकता । क्योंकि यह संसार के नियमों के विरूद्ध है , जिसने इस संसार में जन्म लिया है उसका मरना निश्चित है। भस्मासुर फिर भी अपनी बात पर अडिग रहा पर जब उसने देखा कि भगवान शिव इस बात के लिए राजी नहीं हो रहे तो उसने कहा कि -प्रभु आप मुझे ऐसा वरदान दे कि मैं जिसके माथे पर
एक बार राजा बलि के नेतृत्व में दैत्यों की शक्ति बढ़ गई और उन्होंने स्वर्ग के राजा इन्द्र को हराकर वहां भी अधिकार कर लिया । अब तीनों लोकों में असुरों का साम्राज्य फैल गया और देवराज इन्द्र उस समय दुर्वासा ऋषि के श्राप से कमजोर हो चुके थे । जब देवताओं को कुछ समझ नहीं आया तो वे अपनी समस्या लिए सृष्टि के पालनहार देवता विष्णु जी के पास गए । उन्होंने देवताओं से कहा कि वे असुरों से अभी संधि कर ले और उनके साथ मिलकर समुद्र मंथन करे । इसमें चौदह रत्नों की प्राप्ति होगी जिसमें से एक अमृत भी होगा । (चूँकि देेेवता उस समय कमजोर हो गए थे इसलिए विष्णु जी ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए कहा। ) जब अमृत मिल जाएगा तो देवता उसे पीकर अमर और शक्तिशाली हो जाएँगे तत्पश्चात असुरों को हराना संभव होगा । देवताओं ने विष्णु जी के कहे अनुसार असुर राज बलि से अमृत निकलने की बात की और कहा कि वे अभी संधि कर ले क्योंकि अमृत पाने का यही मौका है और वह मान भी गया । क्षीर सागर में समुद्र मंथन शुरू हुआ । मन्दराचल पर्वत को मथंंनी और वासुकी नाग को नेती बनाया गया । वासुकी नाग को कष्ट न हो इसलिए भगवान वि
बात उस समय की है जब हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे । एक बार कि बात है, महाराज अकेले शिकार के लिए गए उनके साथ कोई भी सैनिक या मंत्री नहीं था। वे हिरणों का शिकार करते करते काफी दूर तक निकल पड़े । अचानक उन्हें गंगा नदी के किनारे सफेद वस्त्र धारण किये एक परम सुंदरी घूमती हुई दिखाई पड़ी । महाराज शांतनु का ध्यान उस ओर गया तो वे भूल गए कि वह हिरणों का शिकार करने आए थे और एकटक उस युवती को निहारने लगते हैं । धीरे-धीरे वे उस युवती के नजदीक आ जाते हैं जिससे उस युवती का ध्यान शांतनु की ओर जाता है जो अब तक उनकी उपस्थिति से अनजान अपने विचारों में ही लीन थी । जब युवती ने अपने सामने एक राजपुरूष को खुद को ऐसे निहारते हुए देखा तो संकोच से वहां से जाने लगी । तभी महाराज शांतनु ने पीछे से कहा - 'संकोच न करें देवी! मैं हस्तिनापुर का राजा शांतनु हूँ और इस वन में शिकार करने आया था पंरतु आपको देखकर मेरा ध्यान नहीं लगा और मैं आपके समीप चला आया । ' युवती बिना कुछ बोले वहां से जाने लगी पंरतु
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें