राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 14 / Stories of Raja Vikramaditya 14
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
चौदहवीं पुतली सुनयना ने कहना प्रारंभ किया -
एक बार राजा विक्रमादित्य को यज्ञ करने की इच्छा हुई । देश-देश के राजाओं महाराजाओं को न्योता भेजा गया । सातों द्वीपों के ब्राह्मणों को बुलाया गया । एक वीर को स्वर्ग भेजा देवताओं को बुलवाने के लिए । एक ब्राह्मण को राजा विक्रमादित्य ने समुद्र देव को न्योता देने भेजा । ब्राह्मण चला गया । चलते-चलते समुद्र के किनारे पहुंचा । वहां उसे पानी के सिवा और कुछ नहीं दिखा । उसने सोचा अब न्योता किसे दे ? तब उसने चिल्लाकर कहा हे समुद्र देव तुम यज्ञ में आना ।
जब वह वहां से चला तो ब्राह्मण के भेष में उसे समुद्र देव मिले।
समुद्र देव ने कहा - मैं आने के लिए तो तैयार हूँ परंतु मेरे साथ जल भी आएगा और इससे कई नगर डूब जाऐंगे। सो तुम राजा विक्रमादित्य से सारी बात कह देना और ये पांच लाल और घोड़ा सौगात के रूप में मेरी ओर से दे देना ।
ब्राह्मण पांचो लाल और घोड़ा लेकर वापस आया और राजा विक्रमादित्य से सारा हाल कह सुनाया । राजा विक्रमादित्य ने वे सारी चीजें उसी ब्राह्मण को दान में दे दी । ब्राह्मण खुश होकर चला गया ।
फिर चौदहवीं पुतली बोली - ऐसे दानी हो तो सिंहासन पर बैठो ।
राजा भोज चुप रह गया । अगले दिन पन्द्रहवीं पुतली की बारी आई । बाकी चौदह पुतलियों की तरह उसने भी राजा विक्रमादित्य के गुण सुनाए ।
पन्द्रहवीं पुतली की कहानी अगले पोस्ट में पढें -
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