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महाराजा छत्रसाल की जीवनी | Life story of Maharaja Chhatrasal

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  महाराजा छत्रसाल का जीवन परिचय | Life story of Maharaja Chhatrasal महाराजा छत्रसाल (1649-1731) बुदेलखंड के एक महान और प्रतापी राजा थे , जिन्होंने शून्य से शुरूआत की और शिखर पर पहुंचे । मुगल बादशाह औरंगजेब ताउम्र महाराजा छत्रसाल से जीत न सका । महाराजा छत्रसाल सही मायनों में वीर महापुरुष थे। छत्रसाल की माता का नाम लालकुंवरी और पिता का नाम चम्पतराय था । उनके माता-पिता बहुत ही वीर थे । माता लालकुंवरी हमेशा युद्ध में चम्पतराय के साथ रहती और उनका हौसला बढ़ाती थी । चम्पतराय महोबा के जागीरदार थे । जब छत्रसाल ने होश संभाला तो उनके पास न जागीर थी और न माता-पिता ।  अपने माता-पिता की मृत्यु के समय छत्रसाल केवल बारह वर्ष के थे । वन भूमि की गोद में जन्मे और पले-बढे । पांच वर्ष की आयु में युद्ध शिक्षा के लिए उनके मामा साहेबसिंह धंधेर के पास देलवारा भेज दिया गया । माता-पिता की मृत्यु के बाद वे अपने बड़े भाई अंगद राय के साथ देवगढ़ चले गए। छत्रसाल का विवाह देवकुंवरी से हुआ ।  उस समय महाराजा छत्रसाल की आयु मात्र पन्द्रह वर्ष की थी , तेजस्वी आभा से उनका मुखमंडल युक्त था । मुगलों की शक्ति के विषय में उन्ह

पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय | prithviraj chahuhan's biography in hindi

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पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय | Prithviraj Chahuhan's biography in hindi पृथ्वीराज तृतीय जिन्हें पृथ्वीराज चौहान के नाम से जाना जाता है , चौहान वंश के राजा तथा भारतवर्ष के सबसे प्रसिद्ध राजाओं में एक थे । वे अंतिम हिन्दू सम्राट थे जिन्होंने दिल्ली की गद्दी पर राज किया । उनकी राजधानी अजमेर थी । पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूरदेवी के घर हुआ । सोमेश्वर चौहान की मृत्यु 1177 ईसवीं में हुई थी उस समय पृथ्वीराज चौहान मात्र 11 वर्ष के थे । पृथ्वी राज जो उस समय नाबालिग थे अपनी माता के साथ गद्दी पर बैठे।  उनका शासनकाल 1178 ईसवीं से 1192 ईसवीं तक का था। पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा भी कहा जाता है।  वेे बचपन से ही एक कुुुशल योद्धा थे । उन्होंने अपने बाल्यकाल में ही शब्दभेदी बाण का अभ्यास किया था। वेे अश्व और हाथी नियंत्रण विद्या में भी माहिर थे ।   Prithviraj chahuhan's biography पृथ्वीराज चौहान का जन्म ( Birth of prithviraj chahuhan) राजा सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूर देवी को बारह वर्ष के लंबे इंतजार के बाद बेटे पृथ्वीराज को गोद में लेने का सौभाग्य मिला

चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य का जीवन / Chakarvarti Raja Vikramaditya ka Jivan

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विक्रमादित्य परमार वंश के उज्जयिनी के राजा थे, जो अपने ज्ञान , वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे । 'विक्रमादित्य' की उपाधि बाद में बहुत से राजाओ ने ली थी जिसमें से प्रमुख थे - चन्द्रगुप्त द्वितीय और सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य । विक्रमादित्य नाम विक्रम और आदित्य से मिलकर बना है , जिसका अर्थ होता है 'पराक्रम का सूर्य' ।        Chakarvarti Raja Vikramaditya Life story राजा विक्रमादित्य का जन्म और जीवन ( Life history of Raja vikramaditya) राजा विक्रमादित्य के जन्म को लेकर विभिन्न मान्यताएं हैं परंतु फिर भी माना जाता है कि उनका जन्म 102 ई. पूर्व से आसपास हुआ । ऐसा माना जाता है कि विक्रमादित्य का जन्म भगवान भोलेनाथ के वरदान से हुआ था । भोलेनाथ ने उनका नामकरण जन्म से पूर्व ही कर दिया था , ऐसी मान्यता है । राजा विक्रमादित्य ने आजीवन अन्याय का पक्ष नहीं लिया । पिता द्वारा युवराज घोषित कर दिए जाने पर भी उन्होंने इसलिए अस्वीकार कर दिया क्योंकि इस पद पर उनके ज्येष्ठ भ्राता भर्तृहरि का अधिकार समझते थे । इसे उनके पिता ने अपनी अवज्ञा समझा और वे क्रोधित हो उठे परंतु न्यायप्रिय व

चक्रवर्ती राजा भोज परमार / Chakarvarti Raja Bhoj Parmar

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राजा भोज परमार वंश के नवें राजा थे । परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारानगरी (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वाध तक राज्य किया । भोज ने कई प्रसिद्ध युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की।  यद्यपि भोज का अधिकतर समय युद्ध में ही बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की कोई गलती नहीं की । उन्होंने मालवा के बहुत से गावों में मंदिरों का निर्माण करवाया । ऐसा माना जाता है कि भोपाल शहर को राजा भोज ने ही बसाया था जिसका नाम पहले भोजपाल नगर था ।             Chakarvarti Raja Bhoj Parmar 15 वर्ष की अल्पायु में सिंहासन पर बैठने वाले राजा भोज चारों ओर से शत्रुओं से घिरे हुए थे । उत्तर में तुर्कों , दक्षिण मे विक्रम चालुक्य , पूर्व में युवराज कलचुरी तथा पश्चिम में भीम चालुक्य से उन्हें लोहा लेना पड़ा । उन्होंने सबसे लडाई जीती और अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया । तेलंगान के तेलप और तिरहुत को हराने के बाद एक कहावत राजा भोज के बारे में बहुत मशहूर हुई - "कहां राजा भोज कहां गंगू तेली "  पढ़े :-  कहां राजा भोज कहां गंगू तेली राजा भोज महान चक्रवर्ती स

मगध सम्राट बिम्बिसार की जीवनी / Magdha samrat Bimbisar ki Jivani

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            Magdha king Bimbisar biography          मगध के इतिहास का वास्तविक आरंभ हर्यक वंश के साथ होता है । इस वंश से पहले के वंशों का उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है, जिसके अनुसार मगध के प्राथमिक राजवंश की स्थापना वृहद्रथ ने की जो जरासंघ का पिता और वसु का पुत्र था ।  बिम्बिसार का जन्म 558 ईसा पूर्व के लगभग हुआ । बिम्बिसार की राजधानी गिरिवज्र ( राजगीर ) थी । वे पंद्रह वर्ष की आयु में ही राजा बने । प्रसेनजित की बहन और कोसल की राजकुमारी महाकौशला इनकी महारानी और अजातशत्रु की माता थी। चेल्लना , खेमा , सीलव और जयसेना नामक अन्य पत्नियां थी । विख्यात नृत्यांगना आम्रपाली से इन्हें एक पुत्र था । बिम्बिसार बुद्ध के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे । महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियां थी  बिम्बिसार हर्यक वंश का संस्थापक था । वह एक महत्वकांक्षी राजा था । उसने वैवाहिक संबंधों , संधियों और विजयों के द्वारा मगध की प्रतिष्ठा बढ़ाई । तिब्बत साहित्य में उसका नाम महापद्य दिया गया है । बिम्बिसार का दूसरा नाम श्रेणिक था । वह महात्मा बुद्ध का समकालीन था ।  पुराणों के अनुसार उसने 28 वर्षों तक शास

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी / Jain Dharma ke 24ve Tirthakar Mahavir swami

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महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें और अंतिम तीर्थंकर माने जाते हैं । उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था । वे अहिंसा के सच्चे पुजारी थे । हिंसा , पशुबलि , जाति-पाति भेदभाव जिस समय बढ़ गया उसी समय महावीर और बुद्ध का जन्म हुआ था । दोनों महापुरुषों ने इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और अहिंसा को बढावा दिया ।       Mahavir swami 24th Tirthakar of Jain Dharma ईसा पूर्व 599 में वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहाँ तीसरी संतान के रूप में वर्धमान का जन्म हुआ था । यही वर्धमान आगे चलकर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी बने । महावीर को वीर , अतिवीर और सन्मति भी कहा जाता है । महावीर स्वामी का जीवन उनके जन्म के ढाई हजार साल बाद भी उनके लाखों अनुयायियों के साथ ही पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाता है । महावीर स्वामी पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक थे । जैन ग्रंथो के अनुसार 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के मोक्ष प्राप्ति के 298 वर्ष बाद महावीर स्वामी का जन्म चैत्र मास के 13वें दिन में हुआ था । बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का आज जो बसाढ़ गांव है वह उस समय का वैशाली थ