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सोने का हंस - जातक कथाएँ | Jataka Stories In Hindi

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Jataka stories in hindi सोने का हंस - जातक कथाएँ | Jataka Stories In Hindi  गौतम बुद्ध के समय वाराणसी में एक कर्तव्यनिष्ठ और शीलवान गृहस्थ रहता था । अपनी पत्नी और तीन बेटियों के साथ वह बहुत खुश था परंतु दुर्भाग्यवश उसकी मृत्यु हो गई ।  मरणोपरांत उस व्यक्ति का जन्म एक स्वर्ण हंस के रूप में हुआ । पूर्व जन्म का मोह उसे इतना ज्यादा था कि वह इस जन्म में भी अपने मनुष्य जन्म को विस्मृत नहीं कर पाया । पूर्व जन्म का मोह उसके वर्तमान को भी प्रभावित कर रहा था । एक दिन वह अपने मोह के आवेश में आकर वाराणसी की ओर उड़ चला जहां उसकी पूर्व जन्म की पत्नी और बेटियां रहती थी ।  घर की मुंडेर पर बैठकर जब उसने अपने परिवार का हाल देखा तो उसका मन दुखी हो गया क्योंकि उसके मरणोपरांत उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी । उसकी पत्नी और बेटियां सुंदर वस्त्रों की जगह अब चीथड़ों में दीख रही थी । वैभव के सारे सामान का नामो-निशान नहीं था । उसने बड़े उल्लास के साथ अपने परिवार को अपना परिचय दिया । जाते-जाते अपने परिवार को एक सोने का पंख देता गया जिससे उनकी माली हालत थोड़ी सुधर सके ।                           

बुद्ध पूर्णिमा 2020

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          Buddha Purnima 2020 वर्तमान में पूरे विश्व मे करोडों लोग भगवान बुद्ध के अनुयायी हैं । भारत के साथ-साथ चीन , नेपाल , सिंगापुर , वियतनाम , थाईलैंड , जापान , कम्बोडिया , श्रीलंका , मलेशिया , म्यांमार जैसे कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है । भारत के बिहार स्थित बौद्ध गया बुद्ध के अनुयायीयों सहित हिन्दुओं के लिए भी एक धार्मिक स्थल है । नेपाल के कुशीनगर में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लगभग एक महिने का मेला लगता है । श्रीलंका तथा कुछ अन्य देशों में बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर को वेसाक उत्सव के रूप में मनाया जाता है । बौद्ध अनुयायी इस दिन अपने घरों में दीये जलाते हैं फूलों से सजाते हैं , बौद्ध ग्रंथो का पाठ किया जाता है । इस दिन स्नान-दान का भी काफी महत्व है । वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था इसलिए वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है । लेकिन वैशाख पूर्णिमा के दिन न ही सिर्फ भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था बल्कि उन्हें बरसों जंगलों में भटकते और तपस्या करते हुए इसी दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । बरसों की कठिन तपस्

जनपद कल्याणी नंदा और बुद्ध

गौतम बुद्ध के सौतेले भाई और महाप्रजापति गौतमी के पुत्र का नाम नंद था। नंंद कुमार का विवाह उस समय की अपूर्ण सुुंदरी जनपद कल्याणी नंदा के साथ होने वाली थी । वह भी नंंद कुमार को बहुत पसंद करती थी और इस विवाह से बहुत खुुुश थी । जिस दिन उन दोनों का विवाह होने वाला था जनपद कल्याणी नंदा बहुत रोमांचित थी और अपने विवाह की तैयारियों को देखकर फूली न समा रही थी, उसी समय उसने नंद कुमार को बुद्ध के साथ देखा।  उनके हाथ में भिक्षाटन का कटोरा था और वे दोनों महल से बाहर जा रहे थे। शाम के समय विवाह मुहूर्त से पहले उन्हें यह सूचना मिली कि नंद ने भी गृहस्थ जीवन त्याग दिया है और बौद्ध भिक्षुक बन गए हैं। इस समाचार से जनपद कल्याणी नंदा को गहरा आघात लगा और वह मूर्छित हो गई। धीरे-धीरे वह इस घटना से उबरने लगी परंतु अब उन्हें अपना जीवन व्यर्थ लगने लगा और उन्होंने भी बौद्ध भिक्षुणी बनने की ठान ली । यद्यपि उसने सारी मोह माया त्याग दिया परंतु अपनी सुंदरता और यौवन पर उन्हें अभी भी गर्व था। उनका मोह कम नहीं हुआ था और वे कभी इस बात को न सोचती कि यह सुंदरता एक दिन धूमिल हो जाएगी । एक दिन वह मठ की स्त्रिय

महाप्रजापति गौतमी

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बात उस समय की है जब बौद्ध भिक्षुक संघ में स्त्रियों को जाने की अनुमति प्राप्त नहीं थी । एक बार गौतम बुद्ध शाक्यों के देश कपिलवस्तु के नियोग्राधराम में विहार कर रहे थे तभी महाप्रजापति गौतमी वहां आई और बुद्ध से निवेदन किया -"भन्ते ! अच्छा होता अगर स्त्रियाँ भी आपके दिखाए धर्म-विनय में शामिल हो ।" गौतमी ने तीन बार प्रार्थना की परंतु बुद्ध ने अस्वीकार कर दिया और वहां से वैशाली चले गए । कुछ समय पश्चात गौतमी अपना सिर मुंडवाकर पांच सौ शाक्य स्त्रियों के साथ वैशाली पहुंची । वह बहुत उदास थी तो बुद्ध के शिष्य आनंद ने उनसे दुख का कारण पूछा । गौतमी ने कहा कि वह बौद्ध धर्म में स्त्रियों को प्रव्रज्या दिलवाना चाहती है परंतु बुद्ध इसके लिए सहमति नहीं दे रहे हैं । फलस्वरूप आनंद ने बुद्ध से तीन बार विनती की परंतु बुद्ध ने फिर भी अस्वीकार कर दिया। तब आनंद ने कहा - "भन्ते ! क्या आपके द्वारा प्रवेदित धर्म घर से बेघर प्रव्रजित हो कर स्त्रियाँ अर्हत्व का साक्षात कर सकती हैं " बुद्ध ने कहा -"बिलकुल साक्षात कर सकती हैं आनंद!" तब आनंद ने पुनः कहा  -"भन्ते  ! अग

बिम्बिसार

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मगध के राजा बिम्बिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़ेे प्रश्रयदाता और अनुयायीयों में से एक थे । जब बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई थी उसी समय बिम्बिसार ने सन्यासी गौतम को एक बार देखा था और उन्हें अपने राजमहल में आमंत्रित भी किया था परंतु उस समय गौतम बुद्ध ने अस्वीकार कर दिया । बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद बिम्बिसार ने फिर से उन्हें अपनी राजधानी राजगीर आने का निमंत्रण भेजा तो इस बार बुद्ध ने स्वीकार कर लिया।                                   बुद्ध अपने कुछ अनुयायियों के साथ राजकीय अतिथि बनकर राजगीर आते हैं । बिम्बिसार बुद्ध की बहुत आवभगत करते हैं और अपने जीवन के अंतिम दिनों तक बुद्ध के उपदेशों को मानते थे परंतु उनकी मृत्यु बहुत ही दुखद हुई थी । जिस पुत्र को उन्होंने इतने लाड-प्यार से पाला था उसी ने उन्हें इतनी दर्दनाक मृत्यु दी थी। बुद्ध का भाई देवदत्त राजा बिम्बिसार द्वारा बुद्ध को प्रश्रय देने के कारण उनसे बहुत क्रोधित था और इसलिए उसने अजातशत्रु  को अपने पिताा के ही खिलाफ भड़का कर उनकी मृत्यु का षड़यंत्र रचा ।                                    

धैर्य की परीक्षा

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एक बार महात्मा बुद्ध किसी सभा में प्रवचन देने गए। उस समय वहां करीब सौ डेढ़ सौ लोगों की भीड़ होगी और लोग तो आ ही रहे थे । उस दिन बुद्ध ने कुछ खास नहीं बोला और जल्द ही वहां से चले गए। अगले दिन कुछ लोग कम दिखाई पड़े । पिछले दिन की तरह ही बुद्ध आज भी बिना कुछ बोले ही वहां से चल दिए। वहां मौजूद सभी लोग बहुत मायूस हो गए और बुद्ध के शिष्यों को भी उनके इस व्यवहार से बहुत आश्चर्य हुआ । ऐ सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा। लोग आते और मायूस होकर चले जाते फलस्वरूप दिन प्रतिदिन लोगों ने आना कम कर दिया ।                                           अंततः एक दिन ऐसा हुआ कि बस चौदह लोग आए । उन चौदह लोगों को बुद्ध ने गौर किया था कि वे शुरू से ही आते हैं और आज भी रोज की तरह आकर बैठे थे।  उस दिन बुद्ध ने अपना प्रवचन उन चौदह लोगों को दिया और वे सभी बुद्ध के अनुयायी बन गए । महात्मा बुद्ध के शिष्यों ने जब उनसे इस बात का कारण पूछा तो बुद्ध बोले - "मुझे भीड़ इकट्ठी करके क्या करना है?उतने ही लोगों को मैं शिक्षा दूंगा जो उसे ग्रहण कर सके। धर्म के मार्ग पर चलने के लिए धैर

बुद्ध और उनकी पत्नी यशोधरा

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ज्ञान की प्राप्ति के बाद राजकुमार सिद्धार्थ  को बुद्धत्व  की प्राप्ति होती है और वे एक सामान्य व्यक्ति से सिद्ध पुरुष के रूप में जाने जाते हैं । चारों ओर उनकी प्रसिद्धि बढ़ जाती है , वे जहां भी जाते हैं लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है , उनका प्रवचन सुनने के लिए। बुद्ध के महात्मा बनने की जानकारी उनके पिता राजा शुद्धोधन को भी होती हैै फलस्वरूप वे कई बार दूत भेजते हैं उन्हें बुलाने के लिए परंतु जो भी दूत बुद्ध को लेने आता है, वह भी बुद्ध से प्रभावित होकर बौद्ध भिक्षुक  बन जाता है । अंत में राजा शुद्धोधन ने बुद्ध के बचपन के मित्र कालुदायी को दूत बनाकर बुद्ध के पास भेजा । हर बार की तरह ही वह भी बुद्ध के संपर्क में आते ही उनका शिष्य हो गया परंतु फिर भी कालुदायी हमेशा बुद्ध को अपनी जन्मभूमि एक बार जाने के लिए प्रेरित करता रहा। अतः कालुदायी का प्रयास सफल हुआ और बुद्ध कपिलवस्तु  जाने के लिए तैयार हुए ।        कपिलवस्तु पहुंच कर बुद्ध ने वहां के लोगों को अपने उपदेश सुनाए । अगले दिन नियमानुसार वे भिक्षाटन के लिए निकले । जब उनकी पत्नी यशोधरा को पता चला कि बुद्ध क

बुद्ध और नीलगिरी हाथी

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गौतम बुद्ध का चचेरा भाई देवदत्त उनसे बचपन से ही बहुत जलता था । पहले तो उसने बुद्ध को नीचा दिखाने की हर कोशिश की परंतु जब वह सफल नहीं हो सका तब वह बुद्ध को मारने का षडयंत्र रचने में लग गया । एक बार जब बुद्ध मगध में थे तो देेेेवदत्त भी उनको मारने के इरादे सेे मगध पहुुंचा । वह हर समय इसी धुन में रहता कि कैसे बुद्ध को अपने रास्ते से हटाया जाए । एक दिन उसने बुद्ध को भिक्षाटन करते हुए देखा तभी उसके दिमाग में एक नई तरकीब सूझी। देवदत्त रात को मगध के अस्तबल में गया और नीलगिरी नाम के एक विशाल हाथी को बहुत सी मदिरा पिलाई। अगले दिन सुबह जब बुद्ध भिक्षाटन के लिए निकले तो देवदत्त ने उस हाथी  को बुद्ध के रास्ते में छोड़ दिया । इस तरह एक मदमस्त हाथी को सड़क पर छोड़ देने से चारों ओर अफरा तफरी मच गई । सभी अपनी-अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगे तभी एक स्त्री इस भागदौड़ में अपने छोटे बच्चे को गलती से हाथी के आगे छोड़ भागने लगी । बच्चा हाथी को अपनी तरफ आते देख जोर-जोर से रोने लगा । आसपास लोग यह सब देख रहे थे परंतु किसी में इतनी शक्ति न थी कि वे जाकर उस बच्चे को बचाए । 

बुद्ध का गृहत्याग / Buddha ka Girihtayag

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                      Lord Buddha image गौतम बुद्ध का विवाह 16वर्ष की आयु में उनकी बुआ की बेटी यशोधरा के साथ कर दिया गया।  बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र सन्यासी बने इसलिए बुद्ध को अपने महल से ज्यादा निकलने नहीं दिया जाता था । उनके पिता नहीं चाहते थे कि सांसारिक जीवन के बारे मे उनके पुत्र को ज्यादा कुछ पता चले इसलिए उन्होंने गौतम बुद्ध के लिए तीन ॠतुओं के मुताबिक तीन सुंदर महल बनवाया । वहां नाच-गाने का उत्तम प्रबंध किया और मनोरंजन की सारी सामाग्री जुटा दी । हजारों दास - दासियों को उनकी सेवा में रख दिया । भोग-विलास की कोई कमी न हो इसका महत्वपूर्ण ध्यान रखा जाता था । गौतम अपनी पत्नी यशोधरा के साथ यहाँ सुखपूर्वक रहा करते थे परंतु उनका वैरागी मन इन सब में नहीं लगता।  वे अक्सर गंभीर चिंतन में डूबे हुए रहते , इस बात का भान यशोधरा को था परंतु वह कभी अपने पति के विचारों को कुंठित न होने देती तथापि उसे अपने पति के बिछड़ने का भय भी था ।                                   एक बार कि बात है, वसंत ऋतु का समय था । गौतम बुद्ध को बाहर घ

ज्ञान की प्राप्ति / Gyan ki prapti

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ज्ञान की खोज में जब सिद्धार्थ ने गृहत्याग किया तो उनकी अवस्था मात्र उन्नतीस वर्ष की थी। अपना राजमहल छोड़ने के बाद सिद्धार्थ सर्वप्रथम अनोमा नदी के किनारे पहुंचे और अपना सिर मुंडवाकर , भिक्षुओं वाले काषाय वस्त्र धारण किये ।              सबसे पहले सिद्धार्थ अपनी खोज में वैशाली पहुंचे और वहां अलार कलाम नामक संन्यासी से सांख्य दर्शन की शिक्षा प्राप्त की। अलार कलाम के आश्रम से शिक्षा ग्रहण कर सिद्धार्थ राजगीर पहुंचे और वहां रूद्रकरामपुत्त के पास शिक्षा ग्रहण कर उरूवेला की सुंदर पावन जंगलों में पहुंचे । वहां उन्हें पांच संन्यासी मिले जिनका नाम था - कौण्डिन्य , वप्पा, भादिया महानामा और अस्सागी । सिद्धार्थ ने उनसे योग साधना सीखा और छः वर्ष कठिन तपस्या की। इस प्रकार कठिन साधना के बाद भी सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति न हुई और वे निराश होकर वहां से गया प्रदेश की ओर निकल पड़े ।                     गया पहुंचने के बाद घूमते -घूमते वे एक वट-वृक्ष के पास पहुंचे और वही ध्यानमग्न हो गए और मन में निश्चय कर लिया कि चाहे उनके प्राण ही क्यों न निकल जाए , तब तक

सिद्धार्थ और हंस / Siddhartha aur Hansha

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गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।  सिद्धार्थ नाम का अर्थ होता  है  - 'वह जिसने अपने सभी इच्छाओं को पूरा किया। ' यह नाम उनके पिता राजा शुद्धोधन ने रखा था , क्योंकि जब बुद्ध का जन्म हुआ था तो सभी ज्योतिषियों और विद्वानों ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक बड़ा होकर एक महान सन्यासी बनेगा पंरतु बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन को यह बात अच्छी नहीं लगी।  वे अपने पुत्र को एक महान राजा के रूप में देखना चाहते थे न कि एक सन्यासी।  वे नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र फ़कीरों का जीवन जिए इसलिए सिद्धार्थ के रहने की व्यवस्था विलासिता से पूर्ण की गई । उन्हें तरह तरह की सुख सुविधाओं से रखा गया । दुख की अनुभूति तक न होने दी पंरतु एक सन्यासी के लक्षण तो बचपन में ही दिख जाता है। वे बचपन से ही शांत और सरल स्वभाव के थे। दया और करूणा तो उनके मन में कूट -कूट करकें भरी है थी । अक्सर  सिद्धार्थ एकांत में जाकर ध्यानमग्न रहा करते थे।                  Little cute Buddha image                                                                               एक दिन कि बात

रानी महामाया का सपना और महात्मा बुद्ध का जन्म / Rani Mahamaya ka sapna aur Mahatma Buddha ka janam

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महात्मा बुद्ध का जन्म | Birth Story of Mahatma Buddha  कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन की पत्नी 'महारानी महामाया देवी ' जब गर्भवती थी तब आषाढ़ पूर्णिमा की रात्रि को जब वह गहरी नींद में सो रही थी तो उन्होंने एक दिव्य  सपना देखा।  उन्होंने देखा कि चारों दिशाओं से दूत आये और उन्हें उठाकर हिमालय पर्वत के नीचे एक 'अनोत वदह' नाम के सरोवर के किनारे ले गए , जहां चारों ओर सुगंधित फूलों के बगीचे थे । चार सुंदर युवतियों ने देवी महामाया को नींद से जगाया और उन्हें सुगंधित उबटन लगा नहलाने के बाद सफेद वस्त्र पहनाया । थोड़ी देर बाद ही एक सफेद  हाथी अपनी सूढ़ में श्वेत पुष्पों की माला पहन वहां प्रवेश किया और रानी की प्रदक्षिणा लगाकर सूक्ष्म रूप लेकर उनके गर्भ में प्रवेश कर गया।              उसी समय रानी की नींद खुल गई । अगली सुबह रानी महामाया ने अपने स्वप्न के बारे में अपने पति राजा शुद्धोधन को बताया।  वह भी इस प्रकार के स्वप्न का वर्णन सुन अचंभित हुए और इसका  मतलब पूछने के लिए ज्योतिषियों को बुलाया ।  सबने इस सपने को बहुत शुभ बताया जिसे सुनकर रानी बहुत खु

महात्मा बुद्ध और आम्रपाली / Mahatma Buddha aur Amarapali

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एक बार कि बात है, महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ घूमते हुए वैशाली नगरी में पहुंचे।  वैशाली को उस समय सोलह महाजनपतो में एक महत्वपूर्ण जनपद माना जाता था, जिसकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी । यह नगरी परम वैभवशाली और हर तरफ से संपन्न थी ।                                             महात्मा बुद्ध के आने की बात पूरे नगर में फैलते देर न लगी । जिसे जब पता चलता वह तभी उनसे मिलने पहुंच जाता और उनके उपदेश सुनकर खुद को भाग्यशाली समझता।  बुद्ध का चरित्र ही ऐसा प्रभावशाली था कि उनसे प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह सका । उस नगर की गणिका और राजनर्तकी "आम्रपाली" भी बुद्ध से मिलने की इच्छुक थी । वह  खुद महात्मा बुद्ध के पास चलकर आई और उन्हें अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया ।  उसने इतने सरल और प्रेम भाव से बुद्ध से विनती की  कि बुद्ध मना नहीं कर सके । जब यह बात उनके शिष्यों को पता चला कि महात्मा बुद्ध ने एक गणिका का आमंत्रण  स्वीकार किया है तो सबने इसका विरोध किया ।                               महात्मा बुद्ध ने बड़ी सरलता से अपने शिष्यों से कहा- &

महात्मा बुद्ध और अंगुलिमाल डाकू

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एक बार कि बात है , महात्मा बुद्ध मगध देश के किसी गांव में गए।  वहां के लोगों ने बुद्ध का खुब आदर सत्कार किया और उनसे उपदेश लिया ।                            महात्मा बुद्ध ने देखा कि वहां के लोगों में एक अजीब सा डर समाया हुआ है तब उन्होंने उनसे इस भय का कारण पूछा । गांव वालों ने बताया कि बहुत दिनों से वे दुखी है क्योंकि एक अंगुलिमाल नाम का डाकू जो पास के जंगल में रहता है, उन्हें बहुत परेशान कर रखा है । जंगल में जाने वाले हर व्यक्ति को वह अपना निशाना बनाया करता है, उसका सारा धन लूटकर उसका सिर काट देता है और उसके उंगलियों की माला पहनता है।    सभी लोगों ने एक एक कर महात्मा बुद्ध को अपनी समस्या बताई और इसका समाधान पूछा ।                                             अंगुलिमाल के बारे में जानने के बाद महात्मा बुद्ध ने कहा कि ठीक है मैं कल ही जंगल में जाऊंगा और इस डाकू से मिलूंगा । महात्मा की बात सुनकर सभी लोग डर गए और उनसे जंगल न जाने की विनती की पंरतु महात्मा बुद्ध ने किसी की न सुनी और जंगल की ओर चल पड़े।  बुद्ध जब घने जंगल में पहुंचे तो उन्हें एक आव