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रानी की कहानी / Rani ki kahani

बहुत पहले की बात है, एक लड़की थी रानी । फूलों सी कोमल और नाजुक । कहीं की राजकुमारी न थी लेकिन अपने माता-पिता और सात भाइयों के लिए किसी राजकुमारी से किसी मायने में कम नहीं थी।                                 रानी की जिस भी चीज की इच्छा होती उसके माता पिता और सातों भाई मिलकर उस चीज को तुरंत उसे लाकर रख दिया करते थे । वह नाजो से पली बढ़ी थी जिसने कभी एक सुई तक नहीं उठाई और करे भी क्यों भला ? सात सात भाइयों की इकलौती बहन जो ठहरी।                        लेकिन उसकी भाभियों से उसकी यह खातिरदारी नहीं देखी जाती थी । भाभियों को अपनी ननद फूटी आंखों न सुहाती थी लेकिन वे करती भी क्या  अपने पतियों से कुछ कह भी नहीं सकती थी।        सिर्फ एक जो छोटी भाभी थी, वह अपनी ननद रानी को बहुत प्यार करती थी ।                                  एक बार कि बात है, रानी खेलने के लिए गई थी घर के बाहर और फिर खेलते हुए उसे एक फूल दिखाई पड़ा।  रानी जैसे ही फूल तोड़ने के लिए गई उसने देखा कि वहां तो कीचड़ था । जब उससे रहा नहीं गया तो वह दौड़ी-दौड़ी अपने माता-पिता के पास गई और उस फ

कुसंगति का परिणाम

उज्जयिनी नगर को जाने वाले मार्ग में एक पाकड़ का विशाल वृक्ष था। उस पर हंस और एक कौआ साथ-साथ रहते थे। वृक्ष बहुत घना था इसलिए उसकी छाया भी बहुत विशाल थी। आने-जाने वाले पथिक उस छाया में विश्राम किया करते थे। एक दिन ग्रीष्म के महीने में एक दोपहर को थका-मांदा एक पथिक वहां पहुंचा और उस वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगा। उसने अपने धनुष-बाण एक ओर रख दीए। ठंडक का सुखद अहसास मिलते ही पथिक को नींद आ गई। अचानक निद्रा में उसका मुख खुल गया। धीरे-धीरे वृक्ष की छाया ने भी रूख बदला और सूर्य की गर्म-गर्म किरणें उसके मुख पर पड़ने लगीं। पथिक की ऐसी अवस्था देख हंस को उस पर दया आ गई। उसने अपने पंख इस प्रकार फैला दिए कि पथिक के मुख पर छाया हो गई।                          दुष्ट कौआ पराया सुख भला कहां देखता है। वह अपने स्थान से उड़ा और ठीक पथिक के मुंह के पास जाकर उसके खुले मुख में विष्ठा कर दी। फिर वह तो तत्काल वहां से उड़ गया। पर हंस अपने स्थान पर बैठा ही रहा।            कौए के इस कुकृत्य से पथिक की नींद टूट गई। उसने ऊपर नजर उठाई तो हंस को पर फैंलाए वृक्ष पर बैठा देखा। पथिक ने समझा, इ