शांतनु और गंगा की कहानी / shantanu aur Ganga ki kahani
पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि , अत्रि से चन्द्रमा , चन्द्रमा से बुध , बुध से इलानंदन पुरूरवा का जन्म हुआ । पुरूरवा से आयु , आयु से राजा नहुष और नहुष से राजा ययाति हुए । ययाति से पुरू हुए । पुरू के कुल मे दुष्यंत , भरत हुए भरत के कुल में कुरू हुए जिनका वंश कौरव कहलाया । कौन थे शांतनु कुरू के कुल मे राजा प्रतीप हुए । जिनके पुत्र हुए महाराज शांतनु । शांतनु और गंगा के पुत्र देवव्रत हुए जो आगे चलकर अपनी कठोर प्रतिज्ञा के कारण भीष्म कहलाए । भीष्म आजीवन ब्रह्मचारी रहे इसलिए उनके बाद कुरु वंश आगे नहीं चला । भीष्म अंतिम कौरव थे । महाभारत काल में देवी - देवता धरती पर विचरण किया करते थे । किसी खास मंत्र के आह्वान से वे प्रकट हो जाते थे । एक बार पुत्र कामना से हस्तिनापुर के राजा प्रतीप ने गंगा किनारे समाधि लगाकर तपस्यारत हुए । उनके तप , रूप , सौंदर्य से गंगा उनपर मोहित हो गई और आकर उनकी दाहिनी जंघा पर बैठ गई और कहने लगीं कि राजन् मै आपसे विवाह करना चाहतीं हूँ । राजा प्रतीप ने कहा - देवी आप मेरी दाहिनी जंघा पर बैठी है पत्नी तो वामंअगी होती हैं । दाहिनी जंघा तो पुत्र का प्रतीक ह