संदेश

Hindi stories लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सर्वश्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ | Best hindi stories

चित्र
  हिन्दी कहानियाँ | Hindi stories   हिन्दी की कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ | some famous stories of hindi Hindi story #1.  सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ #2.  हितोपदेश की कहानियाँ | Hitopdesh stories in hindi #3.   वेताल पच्चीसी | Vikram Betal stories in hindi #4.  पंचतंत्र की कहानियाँ | panchatantra stories in hindi #5.  परियों की कहानी | Fairy Tales #6.  अकबर बीरबल की कहानियाँ | Akbar Birbal stories in hindi Life changing stories in hindi | जीवन को बदल देने वाली कहानियाँ  महात्मा बुद्ध और उनके जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक कहानियों का संग्रह | Jataka stories in hindi महापुरुषों की जीवन गाथा | Inspiring life history of Great people महान कवियों की जीवनी | biography of great hindi Poet जैन धर्म के बारे में | Jain dharma in hindi हिन्दू पौराणिक कथा संग्रह | Mythological stories in hindi  हिन्दू पौराणिक मान्यता | (13 कहानियाँ)Hindu Mythology in hindi महाभारत की कहानियों का संग्रह (28 कहानियाँ)| Mahabharata stories in hindi हिन्दू पौराणिक कहानियाँ | Hindu Mythological stories in hindi हिन्दू त्योहार और

संपूर्ण सिंहासन बत्तीसी / Sinhasan Battisi All stories

चित्र
सिंहासन बत्तीसी की सभी बत्तीस कहानियाँ  Sinhasan Battisi All stories सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ बहुत ही लोकप्रिय है । महान सम्राट विक्रमादित्य के जीवन से जुड़ी यह कहानीयां बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक है । यहां सिंहासन बत्तीसी की कहानियों को एक ही जगह पर एकत्रित करने का प्रयास किया है ।  1.  विक्रमादित्य के जन्म और पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी   2.  दूसरी पुतली चित्रलेखा की कहानी 3.  तीसरी पुतली चन्द्रकला की कहानी 4 .  चौथी पुतली कामकंदला की कहानी 5 .  पांचवी पुतली लीलावती की कहानी 6 .  छठी पुतली रविभामा की कहानी 7 .  सातवीं पुतली कोमुदी की कहानी 8 .  आठवीं पुतली पुष्पावती की कहानी   9 .  नौंवी पुतली मधुमालती की कहानी 10.  दसवीं पुतली प्रभावती की कहानी 11.  ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना की कहानी 12 .  बारहवीं पुतली पद्मावती की कहानी 13 .  तेरहवीं पुतली कीर्तिमति की कहानी 14.  चौदहवीं पुतली सुनयना की कहानी 15.  पन्द्रहवीं पुतली सुन्दरवती की कहानी 16.  सोलहवीं पुतली सत्यवती की कहानी 17.  सत्रहवीं पुतली विद्यावती की कहानी 18.  अठारहवीं पुतली तारावती की कहानी 19 .  उन्नीसवीं पुतली रूपरेखा की

नीच न छोड़े नीचता / Nicha na chhore nichta

चित्र
महर्षि गौतम के तपोवन में महातपा नाम के ऋषि रहते थे। एक दिन उन्होंने एक कौए को चूहे का एक बच्चा ले जाते देखा। उनको उस चूहे के बच्चे पर दया आ गई और उन्होंने दयावश वह बच्चा कौए के मुख से छुड़ा लिया। अन्न के दाने खिला-खिलाकर उन्होंने उसे पाला-पोसा। एक दिन न जाने कहां से एक बिल्ली वहां आ पहुंची। चूहे को देखकर स्वभाववश वह उसको खाने के लिए झपटी। चूहा फुदककर ऋषि की गोद में जाकर छिप गया। उसे इस प्रकार डरते हुए देख मुनि को उस पर दया आ गई। उन्होंने अपने तपोबल से उसे एक बिल्ली बना दिया।          बिल्ली बनकर भी उस चूहे का डर कम नहीं हुआ। कुत्ते उसे खाने को दौड़ते थे। वह भयभीत होकर पुनः महर्षि की शरण में पहुंच जाता। यह देखकर महर्षि ने उसे बिल्ली से कुत्ता बना दिया। कुत्ता बनकर भी उसे शांति नहीं मिली। अब वह बाघ से डरने लगा। इस पर महर्षि ने उसे कुत्ते से बाघ बना दिया। इस प्रकार वह चूहा बाघ बन गया। किन्तु महर्षि अभी भी उसे चूहे का बच्चा ही मानते थे। आश्रम के लोग भी जब उस बाघ की ओर संकेत कर परस्पर कहते कि'देखो, यह बाघ पहले चूहा था, किन्तु महात्मा महर्षि ने इ

बिना प्रयोजन के कार्य

चित्र
मगध देश में धर्मवन के निकट शुभदत्त नाम के एक कायस्थ ने एक विहार बनवाना आरंभ किया। विहार के आसपास बढ़ई द्वारा चीरी गई इमारत बनाने की लकड़ियां पड़ी हुई थी। उन्हीं में से एक लकड़ी को बीच से थोड़ा चीरकर उसे अलग-अलग करने की इच्छा से एक बढ़ई ने उसमें एक कील लगा दी थी। मध्यान्ह के समय जब सारे श्रमिक भोजन करने के लिए गए हुए थे तो वानरों का एक विशाल समूह वहां आ पहुंचा। इस समूह का एक बंदर कुछ ज्यादा ही चंचल था। वह चीरी हुई लकड़ी के ऊपर बैठ गया।इस प्रकार उसके अंडकोश लकड़ी के चीरे हुए भाग में नीचे लटक गए। उस शरारती बंदर ने उस कील को उखाड़ना आरंभ कर दिया। थोड़ा प्रयत्न करने पर कील तो उखड़कर उसके हाथ में आ गई किन्तु चीरी हुई लकड़ी के दोनों भाग पुनः मिल जाने से उसके अंडकोश उसमें फंस गए। लाख प्रयत्न करने पर भी उसके अंडकोश बाहर नहीं निकल सके और बंदर ने छटपटाकर वहीं दम तोड़ दिया।

शेख चिल्ली का सपना

चित्र
देवीकोट नाम के एक नगर में देवशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। यजमानों के दान से उसकी आजीविका चलती थी। एक बार बैसाख सक्रांति के अवसर पर किसी यजमान ने उसे सत्तुओं से भरा एक सकोरा दिया। उसे लेकर देवशर्मा अपने घर चल दिया।             ज्येष्ठ-आसाढ़ की गर्मी थी। नीचे से मार्ग की गर्म-गर्म मिट्टी उसके पैर जला रही थी और ऊपर से जलता सूर्य उसके सिर पर आग बरसा रहा था। इस धूप से बचने के लिए उसने आस-पास छाया के लिए निगाहें दौड़ाई तो एक ओर उसे एक कुम्हार का घर दिखाई दिया। उसे तो मानो डूबते को तिनके का सहारा मिल गया ।                             कुम्हार के घर के पास ही मिट्टी के बर्तनों का एक भारी ढेर लगा हुआ था। विश्राम करने के लिए वह कुम्हार की कोठरी के समीप ही बैठ गया। सकोरा उसने एक ओर रख दिया और सकोरा की रक्षा के लिए डंडा हाथ में पकड़ लिया। बैठे-बैठे वह सोचने लगा कि यदि मैं सत्तुओं से भरे इस सकोरे को बेच दूं तो कम से कम दस कौड़ियां तो मुझे मिल ही जाएंगी। फिर मैं उन कौड़ियों से इस कुम्हार के घड़े और सकोरे खरीद लूंगा, फिर उनको भी बेच दूंगा और उससे जो धन प्राप्त होगा, उससे सुपारी आदि खरीद लू

नकल करने का दुष्परिणाम

अयोध्या में चूड़ामणि नाम का एक क्षत्रिय रहा करता था। धन पाने की इच्छा से उसनें बहुत दिनों तक भगवान शिव की तपस्या की। उसके जब सब पाप क्षीण हो गए तो एक रात सोते समय धन देवता कुबेर ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और कहा-'सवेरे उठने पर तुम अपने बाल बनवा लेना और फिर नहा-धोकर हाथ में लाठी लेकर घर के दरवाजे के समीप छिपकर बैठ जाना। प्रातः काल तुम्हारे आंगन में एक भिक्षुक आएगा। उस पर तुम अपनी लाठी से प्रहार करना ताकि वह भिक्षुक ढेर हो जाए। वह भिक्षुक भूमि पर गिरते ही स्वर्ण के ढेर में परिवर्तित हो जाएगा। वह स्वर्ण तुम रख लेना। इतने स्वर्ण से तुम्हारी जीवन-भर की दरिद्रता दूर हो जाएगी।'                                                    प्रातः होने पर चूड़ामणि ने वैसा ही किया। पहली उसने नाई को बुलवाकर अपने बाल कटवाए, फिर स्नान किया और लाठी लेकर दरवाजे के समीप खड़ा हो गया। नाई तब तक वहीं था। उसे चूड़ामणि का इस प्रकार लाठी लेकर दरवाजे के पास छिपकर खड़े होना विस्मयजनक लग रहा था। नाई यह जानने के लिए कि चूड़ामणि का आगे क्या करने का इरादा है, वहीं कुछ आगे एक अन्य मकान के समीप छिपकर खड़ा हो गय

कारण जाने बिना भयभीत न हो / Karan jane bina bhaybhit na ho

श्रीपर्वत के मध्य ब्रह्मपुर नाम का एक नगर था। वहां एक कहावत प्रचलित थी कि उस पर्वत के शिखर पर घंटाकर्ण नाम का एक राक्षस रहता था।         एक समय की बात है कि कोई चोर एक घंटा चुराकर उस वन से भाग रहा था कि तभी उसे एक बाघ ने देख लिया और उसे मारकर खा गया। बाघ के द्वारा मारे जाने पर उस चोर के हाथ से जो घंटा गिर गया था, वह घंटा कुछ वानरों के हाथ लग गया। वानरों के लिए तो वह घंटा एक अजीब वस्तु ही थी, सो वे चंचल वानर हर समय उस घंटे को बजाते रहते थे ।                                          उस नगर के निवासियों के लिए वह घंटा एक पहेली बन गया। उनको यह तो पता नहीं था कि किसी चोर ने घंटा चुराया और बाघ उसको मारकर खा गया। उन्होंने आधा खाया हुआ एक मनुष्य का शरीर देखा और निरंतर घंटे के बजने की ध्वनि ही सुनी। तब से यह प्रचलित हो गया कि उस वन में घंटाकर्ण नाम का कोई राक्षस रहता हैं और वह मनुष्यों को मारकर खा जाता है। वही निरंतर घंटा बजाता रहता है। जब यह अफवाह फैल गई तो नगरवासी भयभीत हो उठे और धीरे-धीरे उस नगर को छोड़ दूसरे स्थानों को जाने लगे।      उस नगर में कराला नाम की एक कुटनी भी रहा करती थी। उसने

उपाय से सब कुछ संभव है

ब्रह्मवन में कर्पूर तिलक नाम का एक हाथी रहता था। उसको देखकर एक बार कुछ सियारों ने सोचा कि यदि किसी तरह इस हाथी को मार डाला जाए तो इसके मांस से कई महीने के भोजन का जुगाड़ किया जा सकता है। सब इस बात पर विचार करने लगे। तभी एक बूढ़े सियार ने सोचकर कहा-'मैं वादा करता हूं कि अपने बुद्विबल से इस हाथी को मार डालूंगा।'                                 यह वचन देकर वह धूर्त सियार कर्पूर तिलक के पास पहुंचा और साष्टांग प्रणाम करके बोला-'देव!मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए।मैं आपसे कुछ निवेदन करने के लिए यहां आया हूं।'                                       'कहो। क्या कहना चाहते हो?' हाथी ने पूछा। 'देव! जंगल के सम्स्त पशुओं ने मिलकर यह निर्णय किया है कि आपको इस जंगल का राजा बना दिया जाए।उनके अनुसार राजा होने के समस्त गुण आपके अंदर मौजूद हैं।' यह सुनकर हाथी खुश हो गया। सियार ने जब उसे यह बताया कि राजा बनने का शुभ मुहूर्त बस आंरभ ही होने वाला है तो वह तत्काल उस धूर्त सियार के साथ चल पड़ा। राजा का लोभ होता ही ऐसा है। उस मूर्ख प्राणी ने यह भी न सोचा कि उसे बुलाने के

अधिक संचय अहितकर

कल्याण कटक नाम की एक बस्ती में भैरव नाम का एक बहेलिया रहता था।एक बार वह मृगों की खोज करता हुआ विंध्याचल के घने जंगल मे चला गया। वहां उसने एक हिरण का शिकार किया और जब वह उसे अपने कंधे पर लादे वापस अपने घर की ओर लौट रहा था, तभी रास्ते में उसे एक बहुत बड़ा सूअर दिखाई दे गया।       अधिक शिकार प्राप्त करने के लालच में बहेलिए ने हिरण को तो धरती पर पटक दिया और अपने धनुष पर तीर चढ़ाकर सूअर को निशाना बना लिया। लेकिन सूअर भी कुछ कम न था। तीर खाकर भी वह बहेलिए पर झपटा और उसके संधिभाग(जांघों के बीच) मे इतने जोरों की टक्कर मारी कि बहेलिया वहीं ढेर हो गया। बहेलिए के गिरते ही सूअर भी जमीन पर गिर पड़ा। निकट से ही एक सर्प वहां से गुजर रहा था। जैसे ही सूअर उस पर गिरा वह भी वहीं ढेर हो गया।      संयोग कहिए अथवा दुदैव, तभी एक गीदड़ अपने शिकार की खोज करता हुआ वहां आ पहुंचा। उसने जो दृष्टि घुमाई तो जमीन पर पडे़ हुए मृत बहेलिया, सूअर, हिरण और सर्प उसे दिखाई दे गए।यह देखकर वह मन-ही-मन खुश हो गया और सोचने लगा कि आज तो ईश्वर ने बिना परिश्रम किए ही उसके लिए इतना ढेर सारा भोजन भेज दिया है। इतने ढेर सारे मांस से त