राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 6 / Stories of Raja Vikramaditya 6
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
छठी पुतली रविभामा ने अपनी कहानी सुनाई -
एक दिन राजा विक्रमादित्य अपनी सभा में बैठा हुआ था कि वहां एक ब्राह्मण आया । उसने बताया कि उत्तर में एक जंगल है , उसमें एक पहाड़ है । उसके आगे एक तालाब है जिसमें स्फटिक का एक खंभा है । जब सूरज निकलता है तब वह भी बढ़ता जाता है । दोपहर को वह खंभा सूरज के रथ के बराबर पहुंच जाता है । शाम को सूरज के अस्त होने के बाद वह भी पानी में लोप हो जाता है ।
यह सुनकर राजा को बड़ा अचरज हुआ । उस ब्राह्मण के चले जाने के बाद राजा ने दोनों वीरों को बुलाया और ब्राह्मण की बताई सब बात बताई और कहा कि मुझे उस तालाब के पास ले चलो ।
वीरों ने तुरंत उसे वहां पहुंचा दिया। राजा ने वहां देखा कि तालाब के चारों ओर पक्का घाट बना है और उसके पानी में हंस , चकोर , पनडुब्बी किलोल कर रहे हैं । राजा बहुत खुश हुआ।। इतने में सूर्योदय हुआ। खंभा दिखाई देने लगा । विक्रमादित्य ने वीरों से कहा कि मुझे खंभे में बिठा दो । उन्होंने उसे वहां बिठा दिया । अब खंभा ऊंचा होने लगा । जैसे जैसे खंभा सूरज के रथ के समीप पहुंचने लगा राजा को गरमी लगने लगी। जब वह सूरज के रथ के बराबर पहुंचा राजा जलकर खाक हो गया । सूरज के रथवाहन ने जब यह देखा तो रथ को रोक लिया । सूरज ने झांक कर देखा तो उसे जला हुआ आदमी दिखाई पड़ा । उसने सोचा जब यहां जला हुआ आदमी पड़ा है तब तक मैं भोजन कैसे करूँ । उसने अमृत लेकर राजा विक्रमादित्य पर छिड़क दिया । राजा जी उठा । उसने सूरज को प्रणाम किया । सूरज ने पूछा तो उसने अपना नाम विक्रमादित्य बताया । सूरज ने अपना कुण्डल उतार कर राजा विक्रमादित्य को देकर उसे विदा किया ।
राजा विक्रमादित्य अपने नगर को लौटा । रास्ते में उसे एक गुसांईं मिला ।
उसने कहा - हे राजन् ! यह कुण्डल मुझे दे दे । राजा विक्रमादित्य ने हंसते हुए वह कुण्डल उसे दे दिया ।
इतना कहकर पुतली रविभामा बोली - राजा अगर आप विक्रमादित्य जैसे हो तो सिंहासन पर बैठो ।
राजा भोज को बड़ा गुस्सा आया । उसने मन-ही-मन सोचा कल तो मैं सिंहासन पर बैठ कर ही रहूँगा ।
अगले दिन जब वह सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़ा तो कोमुदी नामक सातवीं पुतली ने उसे रोक दिया ।
सातवीं पुतली कोमुदी की कहानी अगले पोस्ट में पढें -
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें