राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 16 / Stories of Raja Vikramaditya 16
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
सोलहवीं पुतली सत्यवती ने कहना प्रारंभ किया -
उज्जयिनी नगरी में चार जात बसते थे । वहां एक बड़ा सेठ था जो सबकी सहायता करता था । जो भी उसके पास जाता खाली हाथ न लौटता था। उस सेठ का एक पुत्र था जो बड़ा ही रूपवान और गुणवान था । सेठ ने सोचा कि अब एक अच्छी लड़की मिल जाए तो इसका ब्याह कर दूं । उसने ब्राह्मणों को बुलाकर लडकी की खोज में इधर-उधर भेजा। एक ब्राह्मण ने सेठ को खबर दी कि समुद्र पार एक सेठ रहता है, जिसकी लड़की बड़ी ही रूपवती और गुणवती है । सेठ ने उसे वहां जाने के लिए कहा । ब्राह्मण जहाज मे बैठकर वहां गया । सेठ से मिला । सेठ ने सब पूछकर अपनी मंजूरी दे दी और आगे कि रस्म करने के लिए अपना एक ब्राह्मण उसके साथ भेज दिया । दोनों ब्राह्मण कई दिनों की दूरी तय कर उज्जयिनी नगरी पहुंचे ।
सेठ को समाचार मिला तो वह बहुत खुश हुआ । दोनों ओर से ब्याह की तैयारी होने लगी । ब्याह का दिन पास आया तो चिंता हुई कि इतने दूर देश इतने कम दिनों में कैसे पहुंचा जा सकता है । सब हैरान हुए तब किसी ने सेठ को बताया कि एक बढ़ई ने राजा विक्रमादित्य को एक उड़न-खटोला दिया है । वह उसे मिल जाए तो ब्याह में लग्न से पहले पहुंचा जा सकता हैं।
सेठ राजा विक्रमादित्य के पास गया तो उसने तुरंत वह उड़न-खटोला सेठ को दे दिया और कहा कि ओर किसी चीज की जरूरत हो तो ले जाओ । सेठ ने कहा - महाराज कि दया से सब कुछ है ।
उड़न-खटोला लेकर बारात समय पर पहुंची और बड़ी धूमधाम से विवाह हुआ । बारात लौटी तो सेठ ने वह उड़न-खटोला राजा विक्रमादित्य को वापस करने के लिए गया । परंतु राजा विक्रमादित्य ने कहा कि वह दी हुई चीज वापस नहीं लेता। इतना कहकर राजा विक्रमादित्य ने सेठ को बहुत सारा धन दिया और कहा कि अपने बेटे और बहू को दे दे।
पुतली बोली - राजा विक्रमादित्य की बराबरी तो इन्द्र भी नहीं कर सकता तो तुम किस गिनती में हो ।
अगले दिन राजा भोज जब सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़ा तो सत्रहवीं पुतली ने उसे रोक दिया और अपनी कहानी सुनाने लगी ।
सत्रहवीं पुतली की कहानी अगले पोस्ट में पढें-
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