अर्जुन और सुभद्रा का प्रेम विवाह
द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण और बलराम की इकलौती बहन सुभद्रा जब विवाह के योग्य हुु ई तो कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी को उसके विवाह की चिंता हुई । वह अपने पति से बोली -' प्रभु ! आपकी लाडली बहन अब जवान हो गई है और इसलिए आपको अब उसके विवाह के बारे में सोचना चाहिए । कोई अच्छा सा वर ढूंढ कर उसका विवाह कर देना चाहिए ।
रुक्मिणी की बात सुनकर मधुसूदन मुसकुराते हुए बोले - 'इसमें चिंता की क्या बात है, सुभद्रा का विवाह हो जाएगा। '
रुक्मिणी (उत्सुकता से ) - यह आप क्या कह रहे हैं । क्या आपको नहीं पता विवाह कराने के लिए एक वर की आवश्यकता पड़ेगी?
मधुसूदन ( मुसकुराते हुए ) - सुभद्रा के लिए वर ढूँढने की आवश्यकता करनी ही नहीं पड़ेगी वर खुद-व-खुद चला आवेगा ।
तभी कुंती पुत्र अर्जुन के आने की सूचना मिलती है। देवी रुक्मिणी श्रीकृष्ण की तरफ देखकर मुसकुुराती है और उनका इशारा समझती है ।
उधर सुभद्रा अपनी सखियों के साथ रैवतक पर्वत की प्रदक्षिणा करने गई हुई थी ,अर्जुन भी शिकार खेलते हुए उधर जा पहुंचे । वहां पर अर्जुन ने सुभद्रा को देखा और उसकी सुंदरता में मुग्ध हो उससे प्रेम करने लगे । सुभद्रा भी अर्जुन की ओर आकर्षित हुए बिना न रह सकी ।
जब सुभद्रा और अर्जुन दोनों महल वापस लौट कर आएं तो श्रीकृष्ण और रुक्मिणी ने दोनों का परिचय कराया । दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित तो थे ही धीरे-धीरे एक दूसरे से प्रेम करने लगे ।
दूसरी ओर बलरामजी ने सुभद्रा का विवाह दुर्योधन के साथ तय कर लिया था । जब वे हस्तिनापुर से लौटकर वापस आए तो उन्होंने यह खबर श्रीकृष्ण को सुनाई ।
कृष्ण तो पहले से ही अर्जुन और सुभद्रा के प्रेम के बारे में जानते थे अतः वे इस विवाह के पक्ष में न थे परंतु अपने बड़े भाई के आगे कुछ नहीं कहा ।
सुभद्रा को जब दुर्योधन से अपने विवाह का पता चला तो वह बहुत दुखी हुई । अर्जुन दुख से विह्वल हो उठे परंतु अपने सखा कृष्ण की अनुमति के बिना वे कर भी क्या सकते थे । श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वे सुभद्रा का अपहरण कर उससे गंधर्व विवाह कर ले । जब सुभद्रा गौरी मंदिर पुजा के लिए जाए तो वही से उसका अपहरण कर ले और रथ का सारथी सुभद्रा को ही बनाए। कृष्ण के कहे अनुसार ही दोनों प्रेमियों ने किया परंतु जब यह बात बलरामजी तक पहुंची तो उन्होंने कृष्ण से कहा कि "कन्हैया तुम्हारे सखा अर्जुन ने यह अपराध किया और तुम यहां चुपचाप बैठे हो ? क्या तुम्हें अपनी कुल मर्यादा का कोई ख्याल नहीं है ?"
तब श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि अर्जुन और सुभद्रा एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे और इसलिए उन्होंने ऐसा किया क्योंकि आप तो सुभद्रा की मर्जी जाने बिना ही उसका विवाह दुर्योधन के साथ तय कर आएं थे । क्या सुभद्रा को अपने जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता नहीं है ? और वैसे भी इन्द्रप्रस्थ राज्य हस्तिनापुर से श्रेष्ठ है क्योंकि वहां सत्य और न्याय का साम्राज्य है । और फिर अर्जुन कुंती बुआ का पुत्र भी है इसलिए अर्जुन सुभद्रा के लिए श्रेष्ठ वर है। अतः दाऊ भईया आप इस विवाह की अनुमति प्रदान कर दे ।
इस तरह मधुसूदन के समझाने के पश्चात दाऊ भईया अर्जुन और सुभद्रा के विवाह के लिए सहमत हो गए और दोनों को वापस द्वारका बुलाकर अपनी लाडली बहन का विवाह पूरे धूमधाम के साथ किया।
-महाभारत की कहानियाँ (stories of Mahabharata)
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जब सुभद्रा और अर्जुन दोनों महल वापस लौट कर आएं तो श्रीकृष्ण और रुक्मिणी ने दोनों का परिचय कराया । दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित तो थे ही धीरे-धीरे एक दूसरे से प्रेम करने लगे ।
दूसरी ओर बलरामजी ने सुभद्रा का विवाह दुर्योधन के साथ तय कर लिया था । जब वे हस्तिनापुर से लौटकर वापस आए तो उन्होंने यह खबर श्रीकृष्ण को सुनाई ।
कृष्ण तो पहले से ही अर्जुन और सुभद्रा के प्रेम के बारे में जानते थे अतः वे इस विवाह के पक्ष में न थे परंतु अपने बड़े भाई के आगे कुछ नहीं कहा ।
सुभद्रा को जब दुर्योधन से अपने विवाह का पता चला तो वह बहुत दुखी हुई । अर्जुन दुख से विह्वल हो उठे परंतु अपने सखा कृष्ण की अनुमति के बिना वे कर भी क्या सकते थे । श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वे सुभद्रा का अपहरण कर उससे गंधर्व विवाह कर ले । जब सुभद्रा गौरी मंदिर पुजा के लिए जाए तो वही से उसका अपहरण कर ले और रथ का सारथी सुभद्रा को ही बनाए। कृष्ण के कहे अनुसार ही दोनों प्रेमियों ने किया परंतु जब यह बात बलरामजी तक पहुंची तो उन्होंने कृष्ण से कहा कि "कन्हैया तुम्हारे सखा अर्जुन ने यह अपराध किया और तुम यहां चुपचाप बैठे हो ? क्या तुम्हें अपनी कुल मर्यादा का कोई ख्याल नहीं है ?"
तब श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि अर्जुन और सुभद्रा एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे और इसलिए उन्होंने ऐसा किया क्योंकि आप तो सुभद्रा की मर्जी जाने बिना ही उसका विवाह दुर्योधन के साथ तय कर आएं थे । क्या सुभद्रा को अपने जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता नहीं है ? और वैसे भी इन्द्रप्रस्थ राज्य हस्तिनापुर से श्रेष्ठ है क्योंकि वहां सत्य और न्याय का साम्राज्य है । और फिर अर्जुन कुंती बुआ का पुत्र भी है इसलिए अर्जुन सुभद्रा के लिए श्रेष्ठ वर है। अतः दाऊ भईया आप इस विवाह की अनुमति प्रदान कर दे ।
इस तरह मधुसूदन के समझाने के पश्चात दाऊ भईया अर्जुन और सुभद्रा के विवाह के लिए सहमत हो गए और दोनों को वापस द्वारका बुलाकर अपनी लाडली बहन का विवाह पूरे धूमधाम के साथ किया।
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