देवयानी और राजा ययाति का विवाह
एक बार कि बात है , दैत्यगुरू शुक्रराचार्य की पुत्री देवयानी अपनी सखी और दैत्यराज विषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा के साथ उद्यान घूूूमने निकली । घूमते हुए वे सब उद्यान के सरोवर में अपने-अपने वस्त्र उतारकर स्नान करने लगी । सुंदरता के मामले में देेवयानी की सुंदरता अलौकिक थी दूसरी ओर राजकुमारी शर्मिष्ठा भी अति सुंदर थी । जब वे सब सुुंदरियां स्नान कर रही थी ठीक उसी समय भगवान शिव और पार्वती माता उस जगह से गुजर रहे थे । भगवान शंंकर को देेेखकर सभी युवतियां लज्जावश दौडकर अपने वस्त्र धारण करने लगी । शीघ्ररता में शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र धारण कर लिया जिससे देवयानी अत्यधिक क्रोधित हुई और गुस्से में शर्मिष्ठा को बुरा-भला कहने लगी । देेवयानी ने इसे अपना अपमान समझा ।
देवयानी के अपशब्द सुनकर शर्मिष्ठा भी अपमान से तिलमिला उठी और उसके वस्त्रों को छीनकर उसे एक कुएं में ढकेल दिया और वहां से चली गई । उसी समय राजा ययाति उस जगह आखेेेट करते हुए पहुंचे और पानी की खोज में कुएं तक पहुंच गए । कुुुुएं मेंं उन्होंने देवयानी के सुंदर मुख को देख तो देखते ही रह गए । ययाति ने देवयानी को कुएं से बाहर निकाला । देेवयानी ने राजा ययाति को धन्यवाद दिया उसी समय गुरु शुक्रराचार्य अपनी पुत्री को खोजने वहां पहुंचे । देवयानी ने सारी बातें पिता को कह सुनाई । शर्मिष्ठा पर उन्हें बहुत क्रोध आया और वे दैत्यों से भी विमुख हो गए ।
गुरु शुक्रराचार्य के रुष्ट होने की बात सुनकर दैत्यराज विषपर्वा भयभीत हो गए और गुरु के चरणों में दौड़े चले आए । शुक्रराचार्य ने कहा कि शर्मिष्ठा ने मेरी प्यारी पुत्री देवयानी के साथ बहुत घृणित कार्य किया है मै तो तुम्हें क्षमा कर दूंगा राजन , परंतु देवयानी से पूछों अगर वह शर्मिष्ठा को क्षमा कर दे !
राजा विषपर्वा देवयानी के पास पहुंचे और उनसे अपनी पुत्री के कुकृत्यों की क्षमा याचना की । देवयानी अपना अपमान नहीं भूलती थी और वह शर्मिष्ठा को सबक सिखाना चाहती थी इसलिए उसने आजीवन शर्मिष्ठा को अपनी दासी के रूप मे मांग लिया । राजा बहुत दुुखी होकर गुरु पुत्री का अनुनय-विनय करने लगेे परंतुु वह न मानी ।
अतः में परिवार और कुल पर आए इस घोर संकट को देखकर शर्मिष्ठा ने स्वयं ही अपने अभिमान को त्याग कर देवयानी की दासी बनना स्वीकार कर लिया ।
बृहस्पति पुत्र कच के श्राप के कारणवश बाद में देवयानी का विवाह राजा ययाति के साथ हुआ और शर्मिष्ठा एक दासी के रूप में देवयानी के साथ राजा ययाति के पास रहने लगी ।
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