नल और दमयंती की कथा


प्राचीन समय में नल नामक राजा निषद देश में राज्य करते थे। नल बहुत ही सुंदर , वीर और प्रतापी राजा थे । मगर उन्हें जुआ खेलने की बुरी लत थी ।
                                       उन्हीं दिनों विदर्भ (पूर्वी महाराष्ट्र) में भी एक बड़े प्रतापी राजा हुआ करते थे जिनका नाम भीमक था । राजा भीमक ने ऋषि दमन को प्रसन्न करके चार संतानें प्राप्त की थी । तीन पुत्र और एक पुत्री । पुत्री का नाम दमयंती था जो लक्ष्मी के समान सुंदर और गुणवती थी ।

दमयंती के रूप की चर्चा दूर-दूर तक थी । राजा नल ने भी दमयंती के बारे मे सुना और उससे प्रेम करने लगे। एक बार वे जब अपने बगीचे में घूम रहे थे तो वहां उन्होंने कुछ हंसो को देखा और उनमें से एक को पकड़ लिया ।

हंस ने राजा से कहा कि आप मुझे छोड़ दीजिए तो हम सभी दमयंती के पास जाकर आपकी ऐसी प्रंशसा करेंगे कि वह आपसे विवाह कर लेगी । नल ने हंस को छोड़ दिया और वे सभी उडकर विदर्भ देश की ओर चले।  वहां वे सभी दमयंती के बगीचे में गए । दमयंती ने हंसो को देखा तो वह बहुत खुश हुई और उन्हें पकड़ने का प्रयास करने लगी ।

                                      दमयंती जिस भी हंस को पकड़ने का प्रयास करती वह हंस कहने लगता कि निषद देश का राजा नल अश्विनी कुमार के समान सुंदर है । उसके राज्य का प्रताप दूर-दूर तक फैला हुआ है अगर तू उससे विवाह कर ले तो तेरा रूप और जीवन सफल हो जाएगा । तुम दोनों की जोड़ी बहुत सुन्दर होगी। हंस की बात सुनकर दमयंती भी नल की तरफ आकर्षित हुई और उसने अपना संदेश राजा नल को हंसो द्वारा भिजवाया।

दमयंती ने जब से नल के बारे मे सुना था तभी से वह उनके बारे में ही सोचती रहती थी और धीरे-धीरे उसका अनुराग बढता ही जा रहा था । अब वह हर समय खोई सी रहती थी । जब यह बात राजा भीमक को पता चली तो उन्होंने कहा कि उनकी पुत्री अब विवाह योग्य हो गई है और इसलिए  उसका स्वयंवर करना चाहिए ।

चारोंओर दमयंती के स्वयंवर की घोषणा कर दी गई । दूर-दूर को राजाओं, युवराजों यहां तक कि देवताओं को भी स्वयंवर में बुलाया गया ।

देवताओं ने जब राजा नल को भी स्वयंवर में जाते हुए देखा तो उन्हें नल से ईर्ष्या हुई और तब देवताओं ने नल से अपना दूत बनने के लिए कहा । नल ने कहा ठीक है मैं आपका दूत अवश्य बनूगां । तब देवताओं ने उन्हें अपना दूत बनाकर दमयंती के पास जाने की बात कही जिसे सुनकर नल ने कहा कि वे खुद दमयंती को अपनी पत्नी बनाना चाहते हैं इसलिए वह उनका काम नहीं कर सकते । परंतु तब देवताओं ने उन्हें उनके वचन की बात याद दिलाई । नल को भी बाध्य होकर देवताओं की बात स्वीकार करनी पड़ी परंतु उन्होंने कहा कि वह महल के अंदर जाएँगे कैसे वहां तो पहरा देने वाले सैनिक होंगे ? इन्द्र की माया से राजा नल बेखटके दमयंती के महल में प्रवेश कर गए ।


जब महल में नल को दमयंती और उसकी सहेलियों ने देखा तो वे सब देखती ही रह गई । नल ने दमयंती को अपना परिचय दिया और कहा कि वह इस वक्त देवताओं का दूत बनकर यहां आया है । इन्द्र आदि देवताओं ने उन्हें अपना संदेश भेजा है कि जो भी देवता उन्हें स्वयंवर में पंसद आए उसके गले में वरमाला डाल दे ।


दमयंती ने कहा - "परंतु मैं तो आपको अपना स्वामी मान चुकी हूँ । जब से मैंने आपके बारे में हंसो से सुना है तब से ही मै आपके लिए व्याकुल हूँ और अब आप ही ऐसी बातें कर रहे हैं?"

नल -"देवी ! मैं तो यहाँ देवताओं का दूत बनकर आया हूँ अगर मैं अपने स्वार्थ की बात करनें लगा तो यह गलत बात होगी ।"

दमयंती (खुश होकर)-ठीक है फिर भी मैं स्वयंवर में आपके गले में ही सबके सामने वरमाला डालूंगी ।

स्वयंवर की शुभ घड़ी आई । सभी राजा , राजकुमार , देवता और आमत्रिंत अतिथि यथास्थान बैठे । तभी राजकुमारी दमयंती वहां आई । सभी राजाओं का परिचय दिया जाने लगा ।  वह एक-एक का परिचय पाकर आगे बढती जा रही थी । तभी एक विचित्र घटना देखी गई । एक साथ छः लोग राजा नल की तरह दिखाई पड़े । दमयंती दुविधा में पड़ गई कि इन सबमें असली राजा नल कौन है । फलस्वरूप दमयंती ने मन ही मन देवताओं की स्तुति की और कहा कि वह नल को पहले ही पति मान चुकी है और अतः उसकी मदद करे तत्पश्चात देवताओं ने उसकी विनती सुनी और उसे दृष्टि प्रदान की जिससे दमयंती ने असली राजा नल को पहचान लिया और उनके गले में वरमाला डाल दिया । बड़ी धूमधाम से नल और दमयंती का विवाह संपन्न हुआ । दोनों सुखपूर्वक रहने लगे समय आने पर उनकी संतानें हुई ।

परंतु समय कहा हमेशा एक जैसा रहता है। उन दोनों के जीवन में भी दुख की घड़ी आई । एक बार राजा नल से गलती हो गई और इसके परिणामस्वरूप कलयुग ने राजा नल के शरीर में प्रवेश किया। वे अपना सब कुछ जुए में अपने  एक भाई पुष्कर के हाथों हार गए।  उन्हें अपना सारा राज-पाट छोड़कर जंगलों में अपनी पत्नी के साथ भटकना पड़ा। एक बार नल और दमयंती जब घने जंगल में विश्राम कर रहे होते हैं तो उन्हें सोने के पंख वाला पक्षी दिखाई देता है । नल सोचते हैं कि इन्हें वे अगर पकड़ ले और बेच देंगे तो कुछ समय तक उनका अच्छे से निर्वाह हो जाएगा । ऐसा सोचकर उन्होंने अपने पहने हुए वस्त्र खोलकर उन पक्षियों पर फेंक दिया ।

पक्षी उन वस्त्रों के साथ ही उड़ गए । नल के पास अब तन ढकने के लिए भी वस्त्र नहीं बचा । अब वे ओर भी व्याकुल हो उठे क्योंकि उनके साथ दमयंती को भी दुख झेलना पड रहा था । थकावट के कारण दमयंती वहां पेड़ के नीचे ही सो रही थी । नल ने सोचा कि मेरे कारण दमयंती को भी दुख झेलना पड रहा है अंततः उन्होंने विचार किया कि अगर मै इसे इसी प्रकार यहां सोता हुआ छोडकर चला जाऊं तो यह किसी प्रकार अपने पिता के घर पहुंच ही जाएगी वरना अपनी मर्जी से तो दमयंती मेरा साथ छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली है चाहे उसे कितना भी दुख क्यों न उठाना पड़े । यह सब विचारकर वह अपनी पत्नी को वही सोता छोड़ चले गए । दैवयोग से दमयंती भटकते हुए अपने पिता के घर पहुंच ही गयी।
Nal and damyanti story in hindi


दमयंती महान सती साध्वी थी अततः उसके प्रभाव से एक दिन राजा नल के भी दुखों का अंत हुआ ।




                           -महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार 





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