बेहद दर्दनाक थी मुमताज की मौत
मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने जिस मुमताज के लिए सातवें
अजूबों में से एक ताजमहल बनवा दिया उस मुमताज की
मौत बहुत दर्दनाक थी । अपने चौंदहवे बच्चे को जन्म देने के
समय 30 घंटे की प्रसव पीड़ा झेलते हुए उनकी मौत हो गई
थी ।
शाहजहाँ अपनी बेगम मुमताज से बेहद मुहब्बत करता था
और उसे छोड़कर कहीं दूर नहीं जाता था । एक बार डेक्कन
मे खान जहां लोदी के विद्रोह को दबाने के लिए शाहजहाँ को
बुरहानपुर जाना था । उस समय मुमताज नौ महीने की
गर्भवती थी लेकिन फिर भी शाहजहाँ उसे आगरा से 787
किलोमीटर दूर धौलपुर , ग्वालियर से होता हुआ बुरहानपुर
ले गया ।
गर्भावस्था का नौवां महीना और इतनी लंबी यात्रा मुमताज
बुरी तरह से थक गई और इसका असर उसके गर्भ पर भी
हुआ । मुमताज को दिक्कत होनी शुरू हो गई ।
मुमताज प्रसव पीड़ा के कारण तड़प रही थी दूसरी तरफ
शाहजहाँ विद्रोह को दबाने के लिए रणनीति बना रहा था ।
दासियाँ आकर पल-पल का ब्यौरा दे रहीं थीं । उसे मुमताज
की खराब हालत की सूचना मिली लेकिन उसने दासियों को
जाने का आदेश दिया ।
वह मंगलवार की सुबह से बुधवार की आधी रात तक दर्द से
बुरी तरह तड़प रही थी । इतनी लंबी जद्दोजहद के बाद आधी
रात को कहीं जाकर एक बेटी का जन्म हुआ जिसका नाम
गौहर आरा रखा गया । लेकिन फिर भी मुमताज बेहाल थी
उसकी तकलीफ कम न हुई ।
बच्ची के जन्म के बाद वह बुरी तरह से कांपने लगी और
उसकी पिंडलिया ठंडी पड़ने लगी । दाईया और शाही हकीम
उसके शरीर से रक्तस्राव रोक ही नहीं पा रहे थे । वह तड़प
रही थी ।
आधी रात से ज्यादा वक्त हो रहा था शाहजहाँ खुद हरम में
मुमताज को देखने आने वाला था तभी एक दासी ने आकर
सूचना दी कि बेगम अभी ठीक है और काफी थक जाने से
सो रही है । शाहजहाँ ने सोचा तब उन्हें परेशान न किया
जाए परंतु जैसे ही शाहजहाँ सोने के लिए जाने वाला था
उसकी बेटी जहां आरा वहां आ पहुंची । आख़िरी वक्त में
मुमताज ने शाहजहाँ को बुलवाया था ।
शाहजहाँ के मुमताज के कमरे में पहुचते ही शाही हकीम को
छोडक़र सभी बाहर चले गए ।
अपने शौहर की आवाज़ सुनकर मुमताज ने आँखे खोली ।
उसकी आखों में आंसू थे । शाहजहाँ अपनी बेगम के सर के
पास बैठ गया ।
आख़िर वक्त में मुमताज ने शाहजहाँ से दो वादे लिए पहला
दूसरा निकाह नहीं करने का और दूसरा एक ऐसा मकबरा
बनवाने का जो अनोखा हो ।
मुमताज की मौत से सिर्फ शाहजहाँ ही नहीं पुरा बुरहानपुर
गमगीन हो गया । क़िले की दीवारें औरतों के रोने की आवाज
से भरभरा उठी ।
मुमताज महल के शव को ताप्ती नदी के किनारे जैनाबाद मे
जमानती तौर पर दफनाया गया । मौत के बारह साल बाद
शव को निर्माणाधीन ताजमहल मे दफना दिया गया ।
Bahut achi Kahani hai
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