भीष्म पितामह के पांच चमत्कारी तीर
महाभारत का युद्ध चल रहा था और गंगा पुत्र भीष्म
पितामह कौरवों की तरफ से युद्ध कर रहे थे । दुर्योधन
युद्ध के परिणाम सोचकर बहुत चिंतित था ।उसे लगता था कि
अगर पितामह चाहते तो यह युद्ध एक दिन में खत्म कर सकतें
थे परंतु वे इस युद्ध में पांडवो को नुकसान पहुंचाना ही नहीं
चाहते हैं । कौरवों की ओर से युद्ध करना उनकी मजबूरी है
मन से तो वे पांडवो को ही चाहते हैं ।
दुर्योधन सायं काल में युद्ध विराम होने के बाद भीष्म पितामह
के पास पहुंचा और उन्हें पांडवो का हितैषी कहा । पितामह
से बोला -' आप इस युद्ध में प्रकट रूप से भले ही कौरवों के
साथ है परंतु आप नहीं चाहते कि कौरवों की विजय हो'।
पितामह बोले - 'यह तुम क्या कह रहे हो दुर्योधन । ऐसा
कहकर तुमने मुझपर गंभीर आरोप लगाए हैं ।'
दुर्योधन बोला - 'यह सच है पितामह । अगर आप चाहते तो
कौरव सेना यह युद्ध कब का जीत चुकी होती । आपने अभी
तक किसी भयंकर अस्त्र का प्रयोग नहीं किया हैं।'
पितामह बोले -'ठीक है ! कल मैं पांच चमत्कारी तीरों का
प्रयोग करूगां । जिससे पांचो पाण्डवों का अन्त हो जाएगा ।'
दुर्योधन बोला -' मुझे आपपर भरोसा नहीं है इसलिए सुबह
तक के लिए वे पांचो तीर आप मुझे दे दीजिये । मैं अपने कक्ष
मे सुरक्षित रखुंगा ।'
भीष्म पितामह ने वे तीर दुर्योधन को दे दिया ।
दुसरी ओर भगवान श्रीकृष्ण को यह बात पता चली तो
उन्होंने अर्जुन को इस बात की जाानकारी दी । अर्जुन यह
सुनकर घबरा गए और श्रीकृष्ण से पूछा कि इस मुसीबत से
कैसे बचा जाए ।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया कि एक बार तुमने गंधर्वो
से दुर्योधन की रक्षा की थी और तब दुर्योधन ने तुमसे कहा था
कि इस अहसान के बदले भविष्य में मुझसे कुछ मांग सकते
हो । यह वही समय है जब तुम दुर्योधन से वे पांचो चमत्कारी
तीर मांग लो । यही एक उपाय है जिससे तुम पांच भाईयों की
जान बच जाएगी ।
अर्जुन को श्रीकृष्ण की यह सलाह सही लगी । उसे दुर्योधन
का वचन याद आया ।
अर्जुन ने दुर्योधन को उसका वचन याद दिलाया और उससे
पांचो चमत्कारी तीरों को मांग लिया । दुर्योधन ने भी अपने
दिए वचन को निभाया और तीर अर्जुन को दे दिया ।
महाभारत की कहानियाँ (stories of mahabharat)
पितामह बोले -'ठीक है ! कल मैं पांच चमत्कारी तीरों का
प्रयोग करूगां । जिससे पांचो पाण्डवों का अन्त हो जाएगा ।'
दुर्योधन बोला -' मुझे आपपर भरोसा नहीं है इसलिए सुबह
तक के लिए वे पांचो तीर आप मुझे दे दीजिये । मैं अपने कक्ष
मे सुरक्षित रखुंगा ।'
भीष्म पितामह ने वे तीर दुर्योधन को दे दिया ।
दुसरी ओर भगवान श्रीकृष्ण को यह बात पता चली तो
उन्होंने अर्जुन को इस बात की जाानकारी दी । अर्जुन यह
सुनकर घबरा गए और श्रीकृष्ण से पूछा कि इस मुसीबत से
कैसे बचा जाए ।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया कि एक बार तुमने गंधर्वो
से दुर्योधन की रक्षा की थी और तब दुर्योधन ने तुमसे कहा था
कि इस अहसान के बदले भविष्य में मुझसे कुछ मांग सकते
हो । यह वही समय है जब तुम दुर्योधन से वे पांचो चमत्कारी
तीर मांग लो । यही एक उपाय है जिससे तुम पांच भाईयों की
जान बच जाएगी ।
अर्जुन को श्रीकृष्ण की यह सलाह सही लगी । उसे दुर्योधन
का वचन याद आया ।
अर्जुन ने दुर्योधन को उसका वचन याद दिलाया और उससे
पांचो चमत्कारी तीरों को मांग लिया । दुर्योधन ने भी अपने
दिए वचन को निभाया और तीर अर्जुन को दे दिया ।
महाभारत की कहानियाँ (stories of mahabharat)
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