कच और देवयानी
बात उस समय की है जब देवताओं और दानवों में त्रिलोक विजय के लिए युद्ध हो रहा था । देवताओं के गुरु बृहस्पति थे तथा दानवों के गुरु शुक्रराचार्य थे । दोनों गुरूओं का आपस में बहुत होड़ था।
दैत्य गुरू शुक्रराचार्य संजीवनी विद्या के जानकार थे । वे मरे हुए दैत्यों को अपनी विद्या से दोबारा जीवित कर देते थे जिससे बल और बुद्धि में श्रेष्ठ देवताओं में बहुत आतंक था ।
देवताओं के गुरु बृहस्पति ने देवों को बचाने का उपाय सोचा । सेवा, श्रद्धा और भक्ति से ही दैत्य गुरू शुक्रराचार्य को प्रसन्न किया जा सकता था अतः बृहस्पति ने अपने रूपवान और ब्रहमचारी पुत्र कच को को गुरु शुक्रराचार्य के पास भेजा ।
कच शुक्रराचार्य के आश्रम में रहकर गुरु की सेवा करने लगे । दूसरी ओर कच की मित्रता गुरु शुक्रराचार्य की पुत्री देवयानी से हुई । देेवयानी अत्यंत सुन्दर और बुद्धिमान युवती थी । दोनों को एक दूसरे का साथ बहुत पसन्द था । देवयानी मन-ही-मन में कच से प्रेम करने लगी थी । शुक्रराचार्य भी अपने परम शिष्य की सेवा और भक्ति से गदगद हो गये थे ।
उधर जब यह बात दैत्यों को पता चला कि देवताओं ने कच को संजीवनी विद्या सीखने उनके गुरु शुक्रराचार्य के पास भेजा है तो उन्होंने कच को मारने का षडयंत्र करने लगे और मौका पाकर कच का वध कर दिया । कच की मृत्यु का समाचार सुनकर देवयानी के दुख का ठिकाना न रहा । अपनी पुत्री की यह दशा गुरु शुक्रराचार्य से देखा न गया और उन्होंने कच को अपनी विद्या से जीवित कर दिया । इस तरह दैत्यों ने कई बार कच की हत्या कर दी और गुरु ने उन्हें जीवित कर दिया ।
समय के साथ कच की मेहनत और प्रतिभा रंग लाई उन्हें गुरु शुक्रराचार्य से संजीवनी विद्या सीखा तत्पश्चात उनके वापस स्वर्ग लौटने का समय आ ही गया । कच ने गुरु के चरण स्पर्श कर वंदना किया और उनसे जाने की अनुमति मांगी । गुरु शुक्रराचार्य ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया और भारी मन से जाने की अनुमति प्रदान की ।
देवयानी ने जब कच को वापस लौटते देखा तो अपने प्रेम का खुलासा किया और कच से कहा कि वे उसका पाणिग्रहण करे । परंतु कच ने यह कहकर देवयानी का प्रस्ताव ठुकरा दिया कि आप गुरु पुत्री है और गुरु पुत्री बहन समान होती है अतः यह अधर्म होगा ।
इस तरह देवयानी ने कच को हर तरह से समझा कर प्रेम निवेदन किया परंतु कच न माने फलस्वरूप देवयानी ने कच को श्राप दिया कि तुम्हारी विद्या फलवती न होगी ।
-महाभारत के आदिपर्व में उल्लेखित कथा
दैत्य गुरू शुक्रराचार्य संजीवनी विद्या के जानकार थे । वे मरे हुए दैत्यों को अपनी विद्या से दोबारा जीवित कर देते थे जिससे बल और बुद्धि में श्रेष्ठ देवताओं में बहुत आतंक था ।
देवताओं के गुरु बृहस्पति ने देवों को बचाने का उपाय सोचा । सेवा, श्रद्धा और भक्ति से ही दैत्य गुरू शुक्रराचार्य को प्रसन्न किया जा सकता था अतः बृहस्पति ने अपने रूपवान और ब्रहमचारी पुत्र कच को को गुरु शुक्रराचार्य के पास भेजा ।
कच शुक्रराचार्य के आश्रम में रहकर गुरु की सेवा करने लगे । दूसरी ओर कच की मित्रता गुरु शुक्रराचार्य की पुत्री देवयानी से हुई । देेवयानी अत्यंत सुन्दर और बुद्धिमान युवती थी । दोनों को एक दूसरे का साथ बहुत पसन्द था । देवयानी मन-ही-मन में कच से प्रेम करने लगी थी । शुक्रराचार्य भी अपने परम शिष्य की सेवा और भक्ति से गदगद हो गये थे ।
Kacha and devyani |
उधर जब यह बात दैत्यों को पता चला कि देवताओं ने कच को संजीवनी विद्या सीखने उनके गुरु शुक्रराचार्य के पास भेजा है तो उन्होंने कच को मारने का षडयंत्र करने लगे और मौका पाकर कच का वध कर दिया । कच की मृत्यु का समाचार सुनकर देवयानी के दुख का ठिकाना न रहा । अपनी पुत्री की यह दशा गुरु शुक्रराचार्य से देखा न गया और उन्होंने कच को अपनी विद्या से जीवित कर दिया । इस तरह दैत्यों ने कई बार कच की हत्या कर दी और गुरु ने उन्हें जीवित कर दिया ।
समय के साथ कच की मेहनत और प्रतिभा रंग लाई उन्हें गुरु शुक्रराचार्य से संजीवनी विद्या सीखा तत्पश्चात उनके वापस स्वर्ग लौटने का समय आ ही गया । कच ने गुरु के चरण स्पर्श कर वंदना किया और उनसे जाने की अनुमति मांगी । गुरु शुक्रराचार्य ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया और भारी मन से जाने की अनुमति प्रदान की ।
देवयानी ने जब कच को वापस लौटते देखा तो अपने प्रेम का खुलासा किया और कच से कहा कि वे उसका पाणिग्रहण करे । परंतु कच ने यह कहकर देवयानी का प्रस्ताव ठुकरा दिया कि आप गुरु पुत्री है और गुरु पुत्री बहन समान होती है अतः यह अधर्म होगा ।
इस तरह देवयानी ने कच को हर तरह से समझा कर प्रेम निवेदन किया परंतु कच न माने फलस्वरूप देवयानी ने कच को श्राप दिया कि तुम्हारी विद्या फलवती न होगी ।
-महाभारत के आदिपर्व में उल्लेखित कथा
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें