शुम्भ-निशुम्भ की कथा

Shumbh-nishumbh katha>mythology >goddess Kali >Navratri 2018

शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों ने अन्न-जल त्याग कर दस हजार

वर्षों तक ब्रह्मा जी की तपस्या की थी और तीनो लोकों पर

राज करने का वरदान प्राप्त किया था।  उन्होंने ब्रह्मा से वर

मांगा कि स्त्रियों से तो उन्हें कोई भय नहीं है और कोई पशु-

पक्षी भी उन्हें न मार पाएं । वरदान प्राप्त करने के फलस्वरूप

ऐ दोनों दुष्ट असुर और ज्यादा उनमादित हो गए । जब यह

बात " दैत्य गुरू शुक्रराचार्य " को पता चली तो उन्होंने

शुम्भ का राज्याभिषेक करा दिया और दोनों भाइयों को पूरे

असुर समुदाय का राजा बना दिया । इसके फलस्वरूप पृथ्वी-

निवासी सभी असुर रक्तबीज, चण्ड-मुण्ड आदि सभी शुम्भ-

निशुम्भ से जा मिलें जिसके कारण असुरों का साम्राज्य दिन-

प्रति-दिन बढ़ता ही जा रहा था ।

निशुम्भ स्वर्ग में अधिकार करने पहुंचा और वहां इंन्द्र के व्रज

प्रहार से अचेत हो गया तब शुम्भ ने इन्द्र से युद्ध किया और

उसे हराकर सारे हथियार छीन लिया।  इन्द्र सहित सभी

देवता किसी प्रकार अपने प्राणों की रक्षा कर वहां से निकल

भागे । तब देव गुरू बृहस्पति की अनुकम्पा से देवताओं ने

" देवी जगदंबा " का आह्वान किया और उन्हें अपना दुख

बताया ।

          तत्पश्चात देवी जगदंबा देवताओं को आश्वासन देकर

सिंहारूढ होकर हिमालय के शिखर पर स्थित हो गई ।

जब चण्ड -मुण्ड असुरों ने "माँ आदि शक्ति " को देखा तो

उन्होंने जाकर यह बात अपने स्वामियों को बताई और कहा

कि वह भव्य कन्या आपके योग्य है , उससे विवाह कर असुरों

की महारानी बनाएं ।

शुम्भ ने पहले सुग्रीव नामक असुर को भेजा देवी को लाने

परन्तु देवी ने कहा कि जो उन्हें युद्ध में पराजित करेगा वह

उसी से विवाह करेंगी । इस प्रकार क्रमश धूम्राक्ष, चण्ड -मुण्ड

रक्तबीज आदि असुर देवी को पराजित करने के लिए गए

परंतु देवी जगदंबा ने क्रोध में आकर "देवी काली " का

अवतार लिया और सभी दुष्टों का संहार करती गई।

                            इतनी बड़ी असुर सेना के  नाश होने का

समाचार  सुनकर शुम्भ-निशुम्भ क्रोध से पागल हो उठे और

अब खुद ही युद्ध में जाने का निश्चय किया ।

अपनी विशाल सेना लेकर सबसे पहले निशुम्भ देवी से युद्ध

करने के लिए गया।  इस समय कई प्रकार के अपशगुन

हुए तो गुरु शुक्रराचार्य ने असुर राजा को आगाह किया

परंतु क्रोध में पागल मूर्ख असुरों ने इस बात पर ध्यान नहीं

दिया ।  निशुम्भ और देवी का भयंकर युद्ध हुआ और वह

मारा गया । भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर शुम्भ

अचम्भित हो गया और देवी पर आक्रमण कर दिया     ।

देवी काली ने शुम्भ को अस्त्र-शस्त्रों से विहीन कर दिया तब

वह उन्मादित असुर देवी की ओर घूँसा तानकर बढ़ा  और

तब देवी रणचंडी ने अपने त्रिशूल से उस पापी असुर शुम्भ

का वध किया ।

                     इतने विशाल असुर समुदाय का नाश करने

के बाद भी देवी काली शांत न हुई तब भोलेनाथ स्वंय समस्त

संसार की रक्षा के लिए और देवी को शांत करने के लिए

उनके आगे सो गए और देवी ने उनके शरीर में पैर रख दिया

तब जाकर देवी शांत हुई ।

शुम्भ -निशुम्भ आदि राक्षसों का वध कर देवी ने पृथ्वी को फिर

से पवित्र और निर्मल बना दिया । सारे संसार में देवी की

जय-जयकार होने लगी । देवताओं ने स्वर्ग से पुष्प बरसाए

और देवी की स्तुति गाई  ।


देवी काली द्वारा शुम्भ-निशुम्भ असुरों का वध





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