मुमताज और शाहजहाँ की अमर प्रेम कहानी

                 
Love symbol of shahjaha and mumtaj


मुमताज महल मुगल बादशाह शाहजहाँ की प्रिय बेेेगम का

जन्म 1593 मे आगरा शहर में अर्जुमंद बानो बेगम के नाम से

हुआ था मुमताज महल की उपाधि बाद में शाहजहाँ ने दी ।

मुमताज महल आसफ खां  की पुत्री थी जो कि बादशाह

जहाँगीर के वज़ीर हुआ करते थे । नूरजहाँ जहाँगीर की खास

बेगम मुमताज की बुआ थी । 



मुमताज उर्फ अर्जुमंद बानो बहुत खुबसूरत थी और मुगल

हरम से जुड़े मीना बाजार में कांच और रेशम के मोती बेचा 

करती थी । वही 1607 में अर्जुमंद बानो को शाहजहाँ ने 

अपना सामान बेचते हुए देखा था । उसकी उम्र महज 14

साल की थी । जब वह जाने लगीं तो शहजादे खुर्रम (शाहजहाँ)

ने उसका पीछा किया कुछ ही देर में शहजादे को पता चला 

कि उसका नाम अर्जुमंद बानो है और वह वज़ीर आसफ खां

की लडकी है ।

धीरे धीरे उन दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा और फिर

बादशाह जहाँगीर के इजाजत से खुर्रम और अर्जुमंद बानो

की सगाई हो गई साथ ही साथ खुर्रम को अगला होने वाला

बादशाह भी घोषित कर गया ।

लेकिन नूरजहाँ चाहती थी कि खुर्रम का निकाह उसकी और

शेर अफगान की बेटी लाडली बानों से हो ताकि वह अगली

मल्लिका बन सके । नूरजहाँ ने जहाँगीर को अपने मोहब्बत

का वास्ता देकर अपनी बात मनवा ली लेकिन लाडली बानों

से निकाह के लिए खुर्रम नहीं माने ।


नूरजहाँ के बातों मे आकर खुर्रम की जगह शहजादे शहरयार

को दिल्ली का तख्त देने के लिए बादशाह जहाँगीर तैयार हो

गए । लाडली बानों का निकाह शहरयार के साथ कर दिया

गया । नूरजहाँ  खुर्रम के खिलाफ जहाँगीर के कान भरने लगी

और अपने दामाद शहरयार को तख़्त दिलाने के लिए षडयंत्र

करने लगी । खुर्रम का ध्यान तख्त से हटाने के लिए लगातार

उसे विभिन्न सैनिक अभियानों में भेजती रही ।



शाहजहाँ और अर्जुमंद बानो का निकाह सगाई के पांच साल

बाद 1612 ई में हुआ । शाहजहाँ का और भी निकाह हुआ

परंतु वे सब राजनीतिक विवाह थे । 1607 ई में नूरजहाँ ने

विश्वासघात कर उनका विवाह कंधारी बेगम के साथ करवाया

अतः अर्जुमंद खुर्रम की दूसरी बेगम बनी । निकाह के बाद

खुर्रम ने अर्जुमंद बानो को मुमताज महल का खिताब दिया

जिसका मतलब होता है 'महल का सबसे खुबसूरत नगीना' ।

शाहजहाँ अपनी बेगम मुमताज से इतनी मोहब्बत रखते थे


कि उन्हें अपने साथ कठिन सैनिक अभियानों में भी ले जाया

करते थे । शाहजहाँ और मुमताज के 14 बच्चे हुए जिसमें से

जिंदा बचे दाराशिकोह , औरंगजेब , जहां आरा , रोशनआरा ,

मुराद बख्श , शाह शुजा और गौहर आरा ।



नूरजहाँ शहरयार को बादशाह बनाना चाहिए थी लेकिन उसे

पता था कि शहरयार कमजोर है इसलिए वह खुर्रम को

सल्तनत से दूर भेजती रहती इस सब को समझ कर खुर्रम ने

1622 में विद्रोह कर दिया जिसमें उसके ससुर आसफ खां ने

मदद की। 1927 ई मे जहाँगीर के मरने के बाद शाहजहाँ

आसफ खां की मदद से अपने दूसरे भाईयों को मरवा दिया

जो तख्त पर बैठने के उसके इरादे के बीच आए ।

तत्पश्चात वह फरवरी 1628 ई मे तख़्त पर शाहजहाँ नाम से

बैठा ।

शाहजहाँ ने मुमताज महल को मरियम जमानी का भी खिताब

दिया । वह बादशाह को राजनीतिक फैसले लेने मे भी मदद

करती थी ।  अपनी लगातार गर्भावस्था के बावजूद मुमताज

ने सैनिक अभियानों और विद्रोहों को दबाने के लिए अपने

शौहर के साथ यात्रा की । वह बादशाह की निरंतर साथी

और विश्वसनीय सहयोगी बनी रही । अपने उन्नीस वर्षों की

शादी में वह 14 बार गर्भवती हुई ।


अपनी बुआ नूरजहाँ के विपरीत मुमताज महल को

राजनीतिक सत्ता की कोई अभिलाषा न थी परंतु शाहजहाँ ने

उसे बहुत से अधिकार दिए । मुमताज भी शाहजहाँ की सच्ची

जीवनसाथी बनी ।


साल 1631 ई की बात है जब मुमताज नौ महीने की गर्भवती

थी । उस समय दक्षिण मे शाहजहाँ के खिलाफ विद्रोह हुआ

जिसे दबाने के लिए मुमताज हकीमों के मना करने के

बावजूद 787 किलोमीटर की दूरी तय करके शाहजहाँ के

साथ बुरहानपुर गई । इतनी लंबी यात्रा के बाद उनकी हालत

बहुत खराब हो गई और वह अपनी मौत तक दर्द से तडपती

रही । मरने के पहले उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया ।


मरने के कुछ समय पहले मुमताज ने शाहजहाँ से दूसरी शादी

न करने और अपनी मोहब्बत की निशानी के तौर पर एक

खूबसूरत मकबरा बनाने के लिए कहा । वह चाहती थी कि

उसकी सच्ची और बेपनाह मोहब्बत को सदियों तक दुनिया

याद रखें ।

       
Love story of mumtaj and shahjaha


शाहजहाँ अपनी प्यारी बेगम के मौत से इतने टूट गए कि वे

दो साल तक अपने कमरे में ही कैद हो गए । न शाही लिबास

पहना न शाही भोजन किया । इन वर्षों में उनके बाल सफ़ेद

हो गए और कमर भी झुक गई । चेहरे पर झुर्रियां ही झुर्रियां

नजर आने लगी । इस गम से उबरने में उनकी मदद उनकी

बड़ी बेटी जहांआरा बेगम ने की जो हुबहू अपनी माँ मुमताज

की तरह थी । शाहजहाँ उसे अपनी मोहब्बत का सही

अंजाम कहा करते थे।

शाहजहाँ ने अपनी प्यारी बेगम के इच्छानुसार ताजमहल

बनवाया  जो आज भी खड़ा दो महान प्रेमियों की दास्तान

बयां करता है ।







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