शांतनु और गंगा / shantanu aur Ganga
बात उस समय की है जब हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे ।
एक बार कि बात है, महाराज अकेले शिकार के लिए गए
उनके साथ कोई भी सैनिक या मंत्री नहीं था। वे हिरणों का
शिकार करते करते काफी दूर तक निकल पड़े ।
अचानक उन्हें गंगा नदी के
किनारे सफेद वस्त्र धारण किये एक परम सुंदरी घूमती हुई
दिखाई पड़ी । महाराज शांतनु का ध्यान उस ओर गया तो
वे भूल गए कि वह हिरणों का शिकार करने आए थे और
एकटक उस युवती को निहारने लगते हैं । धीरे-धीरे वे उस
युवती के नजदीक आ जाते हैं जिससे उस युवती का ध्यान
शांतनु की ओर जाता है जो अब तक उनकी उपस्थिति से
अनजान अपने विचारों में ही लीन थी ।
जब युवती ने अपने सामने एक
राजपुरूष को खुद को ऐसे निहारते हुए देखा तो संकोच से
वहां से जाने लगी । तभी महाराज शांतनु ने पीछे से कहा -
'संकोच न करें देवी! मैं हस्तिनापुर का राजा शांतनु हूँ और इस
वन में शिकार करने आया था पंरतु आपको देखकर मेरा
ध्यान नहीं लगा और मैं आपके समीप चला आया । '
युवती बिना कुछ बोले वहां से जाने लगी पंरतु तभी फिर से
शांतनु बोले - 'हे देवी ! अगर मेरे इस तरह आपके समीप आ
जाने से आपके मन को दुख हुआ तो मुझे क्षमा करे। '
यह सुनकर युवती ने कहा -
'हस्तिनापुर के महाराज को गंगा का प्रणाम ! इसमें आपकी
कोई गलती नहीं है , यह प्रदेश तो आपके राज्य का भाग है
और आप तो यहां शिकार के लिए आए थे । कृपया क्षमा
मांग कर मुझे लज्जित न करें ।'
युवती का परिचय पाकर और उसके मुख से ऐसी बातें
सुनकर शांतनु का मन प्रसन्न हो गया ।
धीरे-धीरे शांतनु और गंगा उसी जगह
रोज मिलने लगे और उन दोनों में प्रेम हो गया। एक दिन
महाराज शांतनु ने गंगा के सामने विवाह प्रस्ताव रखा जिसे
देवी गंगा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया परंतु एक वचन मांग
लिया ।
शांतनु बोले - 'देवी आप जो भी वचन मांगना
चाहती है, नि:संकोच होकर कहिए। आपकी इच्छा का पालन
किया जाएगा ।'
तब देवी गंगा ने कहा - 'महाराज विवाह के बाद आप मेरे
किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और न मुझसे इसका
कारण पूछेंगें ।'
महाराज शांतनु ने गंगा को वचन दिया और
दोनों का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ । देवी गंगा अपने
ससुराल हस्तिनापुर में अपने पति के साथ सुख से रहने लगी
समय के साथ उनका एक पुत्र हुआ जिसे गंगा ने ले जाकर
गंगा नदी में बहा दिया । इस प्रकार और छः पुत्र हुए जिन्हे
भी गंगा नदी में बहा दिया । महाराज शांतनु वचन से बंधे हुए
थे इसलिए न तो गंगा को रोक सके और न ही इसका
कारण पूछा ।
जब दोनों का आठवां पुत्र पैदा हुआ तो पहले
की तरह ही देवी गंगा उसे भी गंगा नदी में बहाने के लिए ले
जाने लगी तो महाराज शांतनु से यह पीड़ा और सहन न हो
सकी । वे अपने सात पुत्रों को इस तरह बहा दिए जाने से
पहले से ही दुखी थे , अब आठवीं बार उनसे देखा न गया
तब उन्होंने अपनी पत्नी से कहा - 'गंगे, तुमने हमारे सात
पुत्रों को इस तरह बहा दिया पंरतु मैं अपनी वचनबद्धता के
कारण कुछ बोल नहीं सका । परंतु आज मैं यह अनर्थ नहीं
होने दूंगा फिर चाहे मुझे अपनी प्रतिज्ञा ही क्यों न तोड़नी
पड़े । यह मेरा पुत्र है और मै इसे तुम्हें बहाने कदापि न दूंगा ।'
यह सुनकर देवी गंगा बोली- 'महाराज आपने आज अपना
दिया हुआ वचन भंग कर दिया । अब मैं आपके साथ नहीं
रह सकती ।'
Ganga shantanu image
इतना ही कहकर देवी गंगा अपने आठवें पुत्र के
साथ अंतर्ध्यान हो गई । महाराज शांतनु इस पीड़ा को सहन
न कर सके और इस कारण उन्होंने छत्तीस बर्ष अकेले व्यतीत
कर दिया ।
छत्तीस बर्ष पश्चात महाराज शांतनु गंगा को के
किनारे गए और देवी गंगा से याचना कि की वह अपने आठवें
पुत्र को, जिसे वहां अपने साथ लाई थी उसे देखना चाहते हैं ।
देवी गंगा एक बालक के साथ प्रकट हुई और उसे शांतनु को
देते हुए कहा - 'लीजिए महाराज आपका पुत्र देवव्रत । इसे
ग्रहण कीजिए । आपका पुत्र परम शक्तिशाली और विद्वान
है । '
महाराज शांतनु अपने पुत्र को पाकर बहुत खुश हुए और
हस्तिनापुर ले जाकर उसका लालन-पालन खुद किया और
उसे युवराज घोषित कर दिया । यही बालक देवव्रत आगे
अपनी अखंड प्रतिज्ञा के कारण भीष्म पितामह के नाम से
जानें गए ।
महाभारत की कहानियाँ / Tales of
Mahabharata
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