रुक्मिणी हरण तथा श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह
विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री देवी रुक्मिणी माता लक्ष्मी का अवतार थीं और उनका विवाह श्रीकृष्ण सेे निश्चित था । रुक्मिणी भी श्रीकृष्ण की प्रशंसा सुनकर उनसे प्रेम करने लगी तथा माता जगदंबा के सामने उन्होंने मन में कृष्ण को ही अपना पति मान लिया था । राजा भीष्मक के पाँच पुत्र तथा एक पुत्री थी । ज्येष्ठ पुत्र का नाम रूक्मि था जिसे ब्रह्मा जी से ब्रह्मास्त्र प्राप्त था । रुक्मिणी की माता पिता तथा चारों भाई चाहते थे कि उसका विवाह कृष्ण के साथ हो क्योंकि वे जानते थे और रुक्मिणी मन ही मन कृष्ण से प्रेम करती है इसलिए उसने अपने लिए आयोजित स्वयंवर में आने से मना कर दिया था परंतु रूक्मि कृष्ण को अपना शत्रु मानता था और इसलिए रुक्मिणी का विवाह अपने परम मित्र शिशुपाल के साथ करने का निर्णय ले चुका था । राजा भीष्मक तथा अन्य चारों रूक्मि की शक्ति से डरते थे अतः वे उसका विरोध न कर सके । परिणामस्वरूप भीष्मक ने शिशुपाल के पास अपनी पुत्री के विवाह के लिए निमंत्रण भेज दिया अतः वह बारात लेकर विदर्भ की राजधानी कुण्डिनपुर के पास पहुंचा । बारात क्या शिशुपाल, जरासंध, पौण्ड्रक ,