बिम्बिसार
मगध के राजा बिम्बिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़ेे
प्रश्रयदाता और अनुयायीयों में से एक थे । जब बुद्ध को ज्ञान
की प्राप्ति नहीं हुई थी उसी समय बिम्बिसार ने सन्यासी गौतम
को एक बार देखा था और उन्हें अपने राजमहल में आमंत्रित
भी किया था परंतु उस समय गौतम बुद्ध ने अस्वीकार कर
दिया । बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद बिम्बिसार ने फिर से उन्हें
अपनी राजधानी राजगीर आने का निमंत्रण भेजा तो इस बार
बुद्ध ने स्वीकार कर लिया।
बुद्ध अपने कुछ अनुयायियों के साथ
राजकीय अतिथि बनकर राजगीर आते हैं । बिम्बिसार बुद्ध की
बहुत आवभगत करते हैं और अपने जीवन के अंतिम दिनों
तक बुद्ध के उपदेशों को मानते थे परंतु उनकी मृत्यु बहुत ही
दुखद हुई थी । जिस पुत्र को उन्होंने इतने लाड-प्यार से पाला
था उसी ने उन्हें इतनी दर्दनाक मृत्यु दी थी।
बुद्ध का भाई देवदत्त राजा बिम्बिसार द्वारा बुद्ध को प्रश्रय देने
के कारण उनसे बहुत क्रोधित था और इसलिए उसने
अजातशत्रु को अपने पिताा के ही खिलाफ भड़का कर
उनकी मृत्यु का षड़यंत्र रचा ।
बिम्बिसार को जब उनको
मारने के षड़यंत्र और अपने पुत्र की राज्य-लिप्सा का पता
चला तो उन्होंने खुद ही राज्य त्याग किया और अजातशत्रु
को नया राजा घोषित किया। परंतु इससे देवदत्त की इच्छा
पूर्ण न हुई और उसने अजातशत्रु को ओर भी उकसाया ।
फलस्वरूप पुत्र ने अपने पिता को बंदी बना लिया और उन्हें
गर्म कारागार में रखा गया ताकि उनकी मृत्यु वहां भूख-प्यास
से हो जाए । सिर्फ अजातशत्रु की माता को उनके पास जाने
की अनुमति प्राप्त थी परंतु जब महारानी उनके लिए खाने का
सामान लिए गई तब से उन्हें भी जाने की मनाही कर दी गई।
बिम्बिसार फिर भी ध्यान योग के जरिए बिना खाए पीए भी
जीवित रहे । अंततः जब अजातशत्रु को लगा कि वह इतनी
जल्दी अपने प्राण नहीं त्यागने वाले है तो उसने कुछ नाइयों
को कारावास में भेजा । वृद्ध राजा को लगा कि अब उनके
पुत्र को अपनी गलती का पश्चाताप हो रहा है । उन्होंने नाइयों
से कहा कि वे उनकी दाड़ी और बाल काट दे ताकि वे भिक्षुकों
की तरह अपना जीवन-यापन कर सके परंतु उन्हें नहीं पता था
कि असल मे वे नाई उनके दाड़ी और बाल काटने नहीं बल्कि
उनके पैरों को काटने आए हैं।
अपने राजा की आज्ञानुसार पहले
उन नाइयों ने बिम्बिसार के पैर काटे तत्पश्चात उनके घावों मे
नमक और सिरका डाल दिया और अंतिम में घाव जला दिया।
इस प्रकार वृद्ध राजा बिम्बिसार का ध्यान योग रोक दिया
गया और उनकी दुखद मृत्यु हुई ।
अपने पिता की निर्मम हत्या करने के कारण उसका मन
अशांत हो गया और उसे कहीं शांति न मिलती थी ।जिस बुद्ध
की उसने इतनी उपेक्षा की थी अततः उसे उसी महात्मा बुद्ध
के शरण में जाकर शांति पाईं और अपने पिता की भांति ही
बुद्ध का परम अनुयायी बन गया।
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