भगवान विष्णु के दशावतार


हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव  त्रिदेव माने जाते हैंं । ब्रह्मा को सृष्टि का सृजनकर्ता तथा शिव को संहारक माना गया है। विष्णु सृष्टि के पालनहार देवता हैं ।

विष्णु जी की धर्मपत्नी माता लक्ष्मी  है और इनका निवास स्थान क्षीर सागर है जहां वे शेषनाग  पर विश्राम करते हैं ।
विष्णु जी की नाभि से ही ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई है ।
अपने ऊपरी दाएँ हाथ में विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र धारण कर रखा है तथा नीचे के दाएँ हाथ में गदा लिए है। बाएं हाथ में क्रमश कमल और शंख धारण किये हुए हैं ।
Ten forms of lord Vishnu

भगवान विष्णु के अवतार लेने का कारण उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता  मेंं बताया है । उन्होंने स्वयं कहा है कि " संसार में जब जब धर्म की हानि और पाप की जय होगी तब तब मैं इस संसार को पाप और पापियोंं से बचाने और फिर सेे धर्म की स्थापना करने के लिए अवतरित होता रहूँगा ।"

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतार होंगे - मत्स्यावतार , कूर्मावतार , वराहवतार, नरसिंहवतार, वामनावतार, परशुरामवतार, रामवतार,कृष्णावतार,बुद्धवतार और कल्कि अवतार ।

 मत्स्यावतार :-  प्रलय के ठीक पहले जब ब्रह्माजी के मुख सेे वेेदों का ज्ञान निकल गया तो हयग्रीव नामक असुर ने उस ज्ञान को निगल लिया तब विष्णु जी ने अपना पहला अवतार मत्स्य अवतार लिया  और राजा मनु के पास पहुंचे । उस समय मनु सूर्य देव को जल दे रहेे थे तो मत्स्य (मछली ) ने कहा कि मुझे अपने कमंडल में रख लो । दयालु राजा मनु ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया और घर पहुंचे तो मछली ने कमंडल का आकार ले लिया। जब मनु जी ने मछली को पात्र में रखा तो वह उसी आकर की हो गई तत्पश्चात उन्होंने उसे सागर में डाल दिया तो उसने पूरा सागर ढ़क लिया। तब उस सुुुनहरी मछली ने अपनी वास्तविक पहचान मनु जी को बताई और कहा कि आज से सातवें दिन प्रलय आएगा और नई सृष्टि का सृजन होगा इसलिए वे सभी औषधियोंं, जीव-जंतु ,पक्षियों और सप्त ऋषि इत्यादि को भगवान द्वारा भेजी गई नाव में रख लें । तत्पश्चात उस दिव्य मछली ने हयग्रीव असुर का संहार किया और वेदों को बचाकर ब्रह्मा जी को देे दिया ।

कूर्मावतार :- असुुुरों के राजा बलि ने जब स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और देवताओंं को वहां से निकाल दिया तो भगवान विष्णु ने दानवों और देवताओं को समुद्र मंथन करनेे के लिए कहा । जब मंंथन के समय मथानी डूूूबने लगा तो विष्णु जी ने कूूर्म (कच्छप) रूप धारण कर उसे अपनी पीठ पर स्थित कर लिया ।
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वराहवतार :- भगवान वराह ने हिरण्याक्ष नामक असुर का वध किया और रसातल (महासागर) मे डूूबी पृथ्वी को निकाल कर पुनः स्थापित किया ।
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नरसिंहावतार :- हिरण्याक्ष के भाई हिरण्यकशिपु का वध करने और अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णुु ने नरसिंह अवतार लिया ।

वामनावतार  :- दानवराज बलि द्वारा स्वर्ग पर अधिकार कर लिए जाने पर भगवान विष्णु वमान अवतार लेकर बलि की यज्ञशाला मेंं जाते हैै और तीन पग भूमि मांगने पर विराट रूप लेकर दो पग मे पूरी धरती और स्वर्ग नाप लेते हैं और तब बलि को तीसरे पग के लिए अपना सर देना पड़ता है ।

परशुरामवतार :- अत्याचारी क्षत्रियों का नाश करने के लिए भगवान विष्णुु परशुराम का अंशावतार लेतेे है और पूरी पृथ्वी को 21बार क्षत्रिय विहीन कर ब्राहमणों को शासन सौंपते है ।

रामावतार :- भगवान विष्णु ने अपना सातवाँ अवतार त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ के पुुत्र राम के रूप में लिया ।
राम अवतार लेने का मुख्य उद्देश्य अत्याचारी रावण को  मारना तथा मनुष्यता का आदर्श दिखलाना था ।

कृष्णावतार :- द्वापर युग में भगवान विष्णु ने देवकी और वासुदेव के घर कृष्ण अवतार लिया और दुष्ट असुर कंस का सर्वनाश किया । महाभारत केे युद्ध में महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपने जीवन में अनेक असुरों का नाश किया ।

बुद्धावतार :- वैसे तो बुद्ध अवतार के बारे मे महाभारत में कहींं वर्णन नहींं है परंतु सनातन धर्म में हिंसा इतनी बढ़ गई थी कि भगवान को बुद्ध अवतार लेकर हिंसा बलि को रोकना ही पड़ा।

कल्कि अवतार  :- यह भगवान विष्णु का दसवाँ और अंतिम अवतार होगा । यह अवतार विष्णु जी कलयुग केे आखिरी चरण में लेेंगे और पृृथ्वी को पापमुुुक्त कर धर्म  की स्थापना  करेेंगे तत्पश्चात सतयुग का प्रारंभ होगा।

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