जनपद कल्याणी नंदा और बुद्ध


गौतम बुद्ध के सौतेले भाई और महाप्रजापति गौतमी के पुत्र का नाम नंद था। नंंद कुमार का विवाह उस समय की अपूर्ण सुुंदरी जनपद कल्याणी नंदा के साथ होने वाली थी । वह भी नंंद कुमार को बहुत पसंद करती थी और इस विवाह से बहुत खुुुश थी ।

जिस दिन उन दोनों का विवाह होने वाला था जनपद कल्याणी नंदा बहुत रोमांचित थी और अपने विवाह की तैयारियों को देखकर फूली न समा रही थी, उसी समय उसने नंद कुमार को बुद्ध के साथ देखा।  उनके हाथ में भिक्षाटन का कटोरा था और वे दोनों महल से बाहर जा रहे थे।


शाम के समय विवाह मुहूर्त से पहले उन्हें यह सूचना मिली कि नंद ने भी गृहस्थ जीवन त्याग दिया है और बौद्ध भिक्षुक बन गए हैं। इस समाचार से जनपद कल्याणी नंदा को गहरा आघात लगा और वह मूर्छित हो गई।


धीरे-धीरे वह इस घटना से उबरने लगी परंतु अब उन्हें अपना जीवन व्यर्थ लगने लगा और उन्होंने भी बौद्ध भिक्षुणी बनने की ठान ली । यद्यपि उसने सारी मोह माया त्याग दिया परंतु अपनी सुंदरता और यौवन पर उन्हें अभी भी गर्व था। उनका मोह कम नहीं हुआ था और वे कभी इस बात को न सोचती कि यह सुंदरता एक दिन धूमिल हो जाएगी ।




एक दिन वह मठ की स्त्रियों के साथ बुद्ध का प्रवचन सुनने के लिए गई । बुद्ध जनपद कल्याणी के मन की बात जानते थे और इसलिए उन्होंने उस दिन कायाविच्छन्दिक सुत्त ( शरीर के क्षरण की प्रक्रिया पर प्रवचन ) दिया । प्रवचन सुनते समय भी उनके मन में अपने सौंदर्य के प्रति सजगता थी परंतु जैसे-जैसे बुद्ध का प्रवचन आगे बढ़ता गया उसने अपने आपको बुढ़ापे में परिवर्तित होते हुए पाया ।


अपने चेहरे पर झुर्रियां , सफेद बाल , लटकी हुई काया और अंत में अपने मृत शरीर को मल समान देखकर जनपद कल्याणी नंदा की आध्यात्मिक उन्नति हुई और अंत में उन्हें अर्हत्व की प्राप्ति हुई ।




                 
                   -stories from lord Buddha's life


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