रानी लक्ष्मीबाई का बचपन
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था इसलिए सभी उन्हें प्यार से मनु कहा करते थे। बचपन में ही मनु की माता चल बसी थी इसलिए उनके पिता मोरोपंत ने नन्हीं बालिका को बड़े ही लाड-प्यार से पाला था। चूूंकि वे मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेवा में थे इसलिए अपने साथ वे मनु को भी दरबार मेंं ले जाया करतेे थे क्योंकि उतनी छोटी बच्ची को वे अकेले नहींं छोड़ना चाहते थे ।
दरबार में मनु अपनी सुंदरता और चंचलता के कारण सबकी प्रिय बन गई थी और पेशवा तो प्यार से मनु को "छबीली" कहा करते थे ।
मनु को बचपन से ही अस्त्र-शस्त्रों और घुड़सवारी का शौक था और चूंकि वह अपने पिता के साथ दरबार आया जाया करती थी इसलिए उसे तलवारबाजी और घुड़सवारी सिखने का मौका भी मिला। वैसे भी अन्य बालिकाओं के मुकाबले मनु को ज्यादा स्वतंत्रता मिली हुई थी । बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब मनु के बचपन के साथी हुआ करते थे ।
एक बार नाना साहब हाथी की सवारी करने निकले जब मनु ने उन्हें देखा तो वह भी हाथी की सवारी करने के लिए मचल उठी और नाना साहब से कहा कि वह भी उनके साथ हाथी पर चढ़ना चाहती है लेकिन नाना ने मनु को डांट दिया और कहा कि लड़कियों को लड़को के जैसे हर काम नहीं करना चाहिए और वैसे भी तुम गिर जाओगी तत्पश्चात नाना वहां से चले गए परंतु मनु रोती रही ।
बच्ची को इस प्रकार रोते और हठ करते देख पिता मोरोपंत झुंझलाहट में बोले कि तेरे भाग्य में हाथी की सवारी नहीं लिखी है । तुम एक सामान्य सेवक की संतान हैं किसी राजा की पुत्री नहीं है , इस पर मनु ने बड़े ही मासूमियत के साथ अपने पिता को जवाब दिया कि "उसके भाग्य में एक नहीं दस-दस हाथी है।"
मनु के पिता ने कभी सोचा भी न होगा कि जिस बालिका की बात को उन्होंने अनसुनी कर दिया था वह सच में एक दिन दस-दस हाथियों की मालकिन होगी और पेशवा से भी बड़े राज्य की महारानी बनेगी ।
- रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से प्रेरित
मनु को बचपन से ही अस्त्र-शस्त्रों और घुड़सवारी का शौक था और चूंकि वह अपने पिता के साथ दरबार आया जाया करती थी इसलिए उसे तलवारबाजी और घुड़सवारी सिखने का मौका भी मिला। वैसे भी अन्य बालिकाओं के मुकाबले मनु को ज्यादा स्वतंत्रता मिली हुई थी । बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब मनु के बचपन के साथी हुआ करते थे ।
एक बार नाना साहब हाथी की सवारी करने निकले जब मनु ने उन्हें देखा तो वह भी हाथी की सवारी करने के लिए मचल उठी और नाना साहब से कहा कि वह भी उनके साथ हाथी पर चढ़ना चाहती है लेकिन नाना ने मनु को डांट दिया और कहा कि लड़कियों को लड़को के जैसे हर काम नहीं करना चाहिए और वैसे भी तुम गिर जाओगी तत्पश्चात नाना वहां से चले गए परंतु मनु रोती रही ।
बच्ची को इस प्रकार रोते और हठ करते देख पिता मोरोपंत झुंझलाहट में बोले कि तेरे भाग्य में हाथी की सवारी नहीं लिखी है । तुम एक सामान्य सेवक की संतान हैं किसी राजा की पुत्री नहीं है , इस पर मनु ने बड़े ही मासूमियत के साथ अपने पिता को जवाब दिया कि "उसके भाग्य में एक नहीं दस-दस हाथी है।"
मनु के पिता ने कभी सोचा भी न होगा कि जिस बालिका की बात को उन्होंने अनसुनी कर दिया था वह सच में एक दिन दस-दस हाथियों की मालकिन होगी और पेशवा से भी बड़े राज्य की महारानी बनेगी ।
Rani laxmibai |
- रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से प्रेरित
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