बुद्ध और नीलगिरी हाथी
गौतम बुद्ध का चचेरा भाई देवदत्त उनसे बचपन से ही बहुत
जलता था । पहले तो उसने बुद्ध को नीचा दिखाने की हर
कोशिश की परंतु जब वह सफल नहीं हो सका तब वह बुद्ध
को मारने का षडयंत्र रचने में लग गया । एक बार जब बुद्ध
मगध में थे तो देेेेवदत्त भी उनको मारने के इरादे सेे मगध
पहुुंचा । वह हर समय इसी धुन में रहता कि कैसे बुद्ध को
अपने रास्ते से हटाया जाए । एक दिन उसने बुद्ध को भिक्षाटन
करते हुए देखा तभी उसके दिमाग में एक नई तरकीब सूझी।
देवदत्त रात को मगध के अस्तबल में गया और नीलगिरी नाम
के एक विशाल हाथी को बहुत सी मदिरा पिलाई। अगले दिन
सुबह जब बुद्ध भिक्षाटन के लिए निकले तो देवदत्त ने उस
हाथी को बुद्ध के रास्ते में छोड़ दिया । इस तरह एक मदमस्त
हाथी को सड़क पर छोड़ देने से चारों ओर अफरा तफरी मच
गई । सभी अपनी-अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगे
तभी एक स्त्री इस भागदौड़ में अपने छोटे बच्चे को गलती से
हाथी के आगे छोड़ भागने लगी । बच्चा हाथी को अपनी तरफ
आते देख जोर-जोर से रोने लगा । आसपास लोग यह सब
देख रहे थे परंतु किसी में इतनी शक्ति न थी कि वे जाकर उस
बच्चे को बचाए । हाथी बच्चे को अपने पैर से कुचलने ही
वाला था कि गौतम बुद्ध सामने आ गए। उन्होंने नीलगिरी
हाथी के सर को थपथपाया । बुद्ध का स्पर्श पाते ही वह
मदमस्त हाथी खुद-ब-खुद शांत हो गया और उनके सामने
घुटने टेक कर बैठ गया । आसपास मौजूद सभी ने यह दृश्य
देखा और बुद्ध की जयजय कार की । स्त्री ने बुद्ध को
धन्यवाद दिया ।
इस घटना के बाद देवदत्त का अपयश मगध में चारों ओर फैल
गया और उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा ।
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