मलिक मुहम्मद जायसी

अवधी भाषा में लिखी प्रसिद्ध पुस्तक 'पद्मावत' के लेखक और लोकप्रिय सूफ़ी संत मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म आधुुुनिक उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जायस नामक गांव में 1397ईसा से 1494ईसा के बीच हुआ था । इनके पिता एक मामूूूली किसान थे और खुद मलिक साहब भी खेती ही करते थे । आरंभ से ही इनका झुकाव सूफ़़ी मत की ओर था और बेटे की आकस्मिक मृत्यु से दुुखी होकर फकीर बन गए ।
मलिक साहब के गुरु चिश्ती वंश के सैयद अशरफ थे जिन्होंने उनकों अपना चेला बनाकर सच्चाई की राह दिखाई।


जायसी एक उच्चकोटि के विद्वान और सरल ह्रदय संत थे लेकिन वे देखने में बहुत ही कुरूप और काने थे । एक बार दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी ने मलिक साहब के बारे में काफ़ी कुछ सुन रखा था, उनसे मिलने पहुंचे ।
शेरशाह मलिक साहब का कुरूप चेहरा देखकर हंसने लगा तब उन्होंने बहुत ही शांत भाव से पूछा कि 'तुम मुझ पर हंस रहे हो या मुझे बनाने वाले कुम्हार (ईश्वर ) पर हंस रहे हो ?'

                           शेरशाह मलिक साहब की बात सुनकर बहुत लज्जित हुआ और उनसे माफी मांगी।


जायसी ने तीस वर्ष में काव्य रचना की शुरुआत की और उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं :- अखरावट, साधना , आखिरी कलाम, कारनामा, चित्ररेखा और पद्मावत । कबीर की तरह ही जायसी भी प्रेम को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते थे । उन्होंने अपने जीवन में 20 रचनाएँ लिखी परंतु उन्हें प्रसिद्धि अपने महाकाव्य पद्मावत से मिली । यह 57 खंडो में लिखी पुस्तक है जिसकी रचना उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में की थी ।
Madhyakalin writer Malik Muhammad jayasi writer of padmawat



अपने जीवन के अंतिम दिनों में जायसी अमेठी (वर्तमान उत्तर प्रदेश)में निवास करते थे । अमेठी के राजा उनका बहुत सम्मान किया करते थे । एक बार जायसी ने राजा से कहा कि वे योगबल से पशुओं का रूप धारण कर सकते हैं और उनकी मृत्यु एक शिकारी के तीर लगने से होगी फलस्वरूप राजा ने उस जंगल में शिकार की मनाही कर दी परंतु एक बार एक शिकारी को उस जंगल में बाघ की आवाज़ सुनाई दी और डरकर उसने उसी दिशा में तीर चला दिया।  जब उसने देखा तो वहां बाघ की जगह मलिक साहब मरे पड़े थे । यह बात सन् 1542 की है जब उनकी मृत्यु हुई ।







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