धैर्य की परीक्षा


एक बार महात्मा बुद्ध किसी सभा में प्रवचन देने गए। उस

समय वहां करीब सौ डेढ़ सौ लोगों की भीड़ होगी और लोग

तो आ ही रहे थे । उस दिन बुद्ध ने कुछ खास नहीं बोला और

जल्द ही वहां से चले गए। अगले दिन कुछ लोग कम दिखाई

पड़े । पिछले दिन की तरह ही बुद्ध आज भी बिना कुछ बोले

ही वहां से चल दिए। वहां मौजूद सभी लोग बहुत मायूस हो

गए और बुद्ध के शिष्यों को भी उनके इस व्यवहार से बहुत

आश्चर्य हुआ । ऐ सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा।

लोग आते और मायूस होकर चले जाते फलस्वरूप दिन

प्रतिदिन लोगों ने आना कम कर दिया ।

                                          अंततः एक दिन ऐसा हुआ

कि बस चौदह लोग आए । उन चौदह लोगों को बुद्ध ने गौर

किया था कि वे शुरू से ही आते हैं और आज भी रोज की

तरह आकर बैठे थे।  उस दिन बुद्ध ने अपना प्रवचन उन

चौदह लोगों को दिया और वे सभी बुद्ध के अनुयायी बन गए ।
Lord Buddha gives blessings to his devotees


महात्मा बुद्ध के शिष्यों ने जब उनसे इस बात का कारण पूछा

तो बुद्ध बोले - "मुझे भीड़ इकट्ठी करके क्या करना है?उतने ही

लोगों को मैं शिक्षा दूंगा जो उसे ग्रहण कर सके। धर्म के मार्ग

पर चलने के लिए धैर्य चाहिए । जिन लोगों में धैर्य था वे रोज

आते रहे मेरा प्रवचन सुनने के लिए जब तक मैंने उन्हें अपना

उपदेश न सुनाया । बाकी सब तो बस भीड़ थे जो लोग कही

भी जा सकते हैं तमाशा देखने सुनने के लिए। "


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