महाप्रजापति गौतमी
बात उस समय की है जब बौद्ध भिक्षुक संघ में स्त्रियों को जाने की अनुमति प्राप्त नहीं थी । एक बार गौतम बुद्ध शाक्यों के देश कपिलवस्तु के नियोग्राधराम में विहार कर रहे थे तभी महाप्रजापति गौतमी वहां आई और बुद्ध से निवेदन किया -"भन्ते ! अच्छा होता अगर स्त्रियाँ भी आपके दिखाए धर्म-विनय में शामिल हो ।"
गौतमी ने तीन बार प्रार्थना की परंतु बुद्ध ने अस्वीकार कर दिया और वहां से वैशाली चले गए । कुछ समय पश्चात गौतमी अपना सिर मुंडवाकर पांच सौ शाक्य स्त्रियों के साथ वैशाली पहुंची । वह बहुत उदास थी तो बुद्ध के शिष्य आनंद ने उनसे दुख का कारण पूछा । गौतमी ने कहा कि वह बौद्ध धर्म में स्त्रियों को प्रव्रज्या दिलवाना चाहती है परंतु बुद्ध इसके लिए सहमति नहीं दे रहे हैं ।
फलस्वरूप आनंद ने बुद्ध से तीन बार विनती की परंतु बुद्ध ने फिर भी अस्वीकार कर दिया। तब आनंद ने कहा - "भन्ते !
क्या आपके द्वारा प्रवेदित धर्म घर से बेघर प्रव्रजित हो कर स्त्रियाँ अर्हत्व का साक्षात कर सकती हैं "
बुद्ध ने कहा -"बिलकुल साक्षात कर सकती हैं आनंद!"
तब आनंद ने पुनः कहा -"भन्ते ! अगर आपके द्वारा दिखाए गए धर्म मार्ग पर चलकर स्त्रियाँ साक्षात करने योग्य है तो फिर महाप्रजापति गौतमी तो आपकी पालिका है आपकी माता के मरने के पश्चात आपकी अभिभाविका है और परम उपकारी और सदाचारी स्त्री है । भन्ते, अगर आप स्त्रियों को भी प्रव्रज्या की आज्ञा देते तो बहुत अच्छा होता ।"
आनंद की बात सुनकर बुद्ध ने स्त्रियों को भी प्रव्रज्या देने की अनुमति प्रदान की तत्पश्चात उन्होंने उत्तरदायित्वपूर्ण नियमों के साथ महाप्रजापति गौतमी तथा अन्य पांच सौ शाक्य स्त्रियों को दीक्षा प्रदान किया ।
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क्या आपके द्वारा प्रवेदित धर्म घर से बेघर प्रव्रजित हो कर स्त्रियाँ अर्हत्व का साक्षात कर सकती हैं "
बुद्ध ने कहा -"बिलकुल साक्षात कर सकती हैं आनंद!"
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