सोने की लंका
मोह माया से दूर रहने वाले भगवान भोलेनाथ और माता
पार्वती कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं । बहुत ही सादा
जीवन और तपस्या में लीन रहने वाले भगवान भोलेनाथ को
स्वर्ण से अधिक भस्म प्रिय है ।
एक बार कि बात है, भोलेनाथ
और माता पार्वती से मिलने के लिए भगवान विष्णु और माता
लक्ष्मी आए । कैलाश पर्वत पर अधिक ठंड होने के कारण
माता लक्ष्मी ठंड से ठिठुरने लगीं । उन्होंने माता पार्वती से व्यंग
मे कहा कि आप एक राजकुमारी होते हुए इस प्रकार का
जीवन कैसे जी सकतीं हैं । जब वे जाने लगीं तो उन्होंने
भोलेनाथ और पार्वती जी को बैकुंठ आने का न्योता दिया ।
कुछ दिनों बाद भोलेनाथ और माता पार्वती भी बैकुंठ गए ।
माता पार्वती ने जब बैकुंठ के वैभव को देखा तो उनके मन
मे भी लालसा हुई कि उनका भी एक वैभवशाली महल हो ।
कैलाश पहुंचने के बाद माता भोलेनाथ से हठ करने लगीं कि
उनके लिए भी एक वैभवशाली महल का निर्माण करवाया
जाए ।
भोलेनाथ मान गए और विश्वकर्मा जी को बुला कर कहा कि
माता के लिए एक अति सुन्दर स्वर्ण महल का निर्माण करें ।
विश्वकर्मा जी ने लंका में सोने का दिव्य महल बनाया जो उस
समय सबसे भव्य था ।
माता पार्वती के निमंत्रण पर सभी देवी-देवता और ऋषि मुनि
लंका में पधारे ।
महर्षि विश्रवा ने उस नगरी की वास्तुप्रतिष्ठा की और भोलेनाथ
से दान रूप में वह महल ही मांग लिया ।
इस तरह से अपने महल को दान में जाते देख माता पार्वती को
क्रोध आ गया और उन्होंने विश्रवा ऋषि को यह श्राप दे दिया
कि यह नगरी एक दिन जलकर भस्म हो जाएगी ।
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