भोलेनाथ के वाहन नंदी की कथा
भगवान भोलेनाथ की घोर तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने
नंदी को अपने पुत्र केे रूप में पाया । शिलाद ऋषि ने अपने
पुत्र को संपूर्ण वेदों का ज्ञान दिया । एक बार कि बात है , ऋषि
शिलाद के आश्रम में मित्र और वरूण नाम के दो दिव्य ऋषि
पधारें । नंदी ने अपने पिता की आज्ञानुसार उनकी बड़ी सेवा
की । जब वे जाने लगे तो उन्होंने ऋषि शिलाद को तो लंबी
आयु और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया परंतु नंदी
को नहीं ।
यह देखकर शिलाद ऋषि ने उन दिव्य ऋषियों से पूछा कि
आपने मुझे आशीर्वाद दिया परंतु मेरे पुत्र को क्यों नहीं तो उन
दिव्य ऋषियों ने कहा कि नंदी अल्पायु है । यह सुनकर शिलाद
ऋषि चिंतित हो गए । तब नंदी ने अपने पिता से कहा कि
आप मेरी चिंता क्यों करते हैं मेरा जन्म तो महादेव की कृपा से
हुआ है और वही मेरी रक्षा आगे भी करेंगे ।
इतना अपने पिता से कहकर नंदी भुवन नदी के किनारे
भगवान भोलेनाथ की तपस्या करने के लिए चले गए । कठोर
तप के बाद भोलेनाथ प्रकट हुए और कहा वरदान मांगो वत्स!
तब नंदी ने कहा कि प्रभु मै हमेशा आपके सानिध्य में रहना
चाहता हूँ । नंदी की अनन्य भक्ति भावना देखकर पहले तो
भोलेनाथ ने उन्हें गले लगाया फिर बैल का चेहरा देकर उन्हें
अपना वाहन , अपने परम मित्र और गणों में श्रेष्ठ नंदी को
अपना लिया ।
जिस तरह से गायों मे कामधेनु श्रेष्ठ है उसी प्रकार बैलों मे
नंदी श्रेष्ठ है ।
नंदी द्वारा भोलेनाथ का साथ प्राप्त करने के बाद समुद्र मंथन
हुआ जिसमें हलाहल निकला । यह हलाहल संपूर्ण विश्व को
खत्म कर सकता था अगर भोलेनाथ ने इसका पान नहीं किया
होता । यह विष भोलेनाथ के लिए भी हानिकारक था इसलिए
माता पार्वती ने इसे भोलेनाथ के गले में ही रोक दिया । इस
विष की कुछ बूंदे जमीन पर भी गिरी जिसे स्वयं नंदी ने अपनी
जीभ से साफ किया । यह देख सभी देवताओं को आश्चर्य
हुआ कि भोलेनाथ तो साक्षात ईश्वर है परंतु नंदी ।
नंदी ने कहा कि जब यह विष मेरे भोलेनाथ ने ग्रहण किया तो
मुझे तो करना ही था । नंदी का यह समर्पण देख भोलेनाथ
गदगद हो गए और कहा कि नंदी मेरे परम भक्त है मेरी ताकतें
नंदी की भी है ।
इस घटना के बाद भोलेनाथ और नंदी का साथ अधिक गहरा
हो गया । भोलेनाथ और नंदी के बीच इसी संबध के वजह से
भोलेनाथ की मूर्ति या शिवलिंग के पास नंदी जी की प्रतिमा
भी होती है ।
कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ तो हमेशा तपस्या में लीन रहते
है इसलिए उनके भक्तों की आवाज़ नंदी ही उन तक पहुचाते
हैं ।
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