जनमजेय का सर्प यज्ञ
जनमजेय अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पुत्र थे ।
जनमजेय को जब पता चला कि मेरे पिता की मृत्यु तक्षक नाग
के डसने से हुई है तो उन्होंने संपूर्ण विश्व के सर्पो को मारने
के लिए नागदाह यज्ञ करवाया । विशिष्ट मंत्रोउच्चारण सेे
सभी नाग खुद यज्ञ की बेदी मे आकर गिर जाते थे ।
जब लाखो सर्प एक साथ यज्ञ में मरना प्रारंभ हो गए तब
भयभीत तक्षक नाग ने इन्द्र की शरण ली । वह इन्द्रलोक मे
रहने लगा । ऋत्विको ने जब तक्षक नाग का नाम लेकर
आहुति डालनी शुरू कर दी तब मजबूर होकर इन्द्र को अपने
उत्तरीय में छुपाकर तक्षक नाग को जनमजेय के यज्ञ में लाना
पड़ा । वहां वे तक्षक को अकेले छोडक़र स्वर्ग चले गए ।
इधर वासुकी नाग की प्ररेणा से आस्तीक नामक एक ब्राह्मण
जनमजेय के यज्ञ स्थल में पहुंचकर ऋत्विको और यजमान की
स्तुति करने लगा । विद्वान ब्राह्मण बालक आस्तीक से प्रसन्न
होकर जनमजेय ने उसे एक वरदान मांगने के लिए कहा ।
आस्तीक ने यज्ञ को तुरंत रोकने का वर मांगा । जनमजेय
ने तत्काल यज्ञ रोक दिया और तक्षक नाग भी बच गया जो
बस कुछ ही क्षणों में यज्ञ कुंड में गिरने ही वाला था ।
जनमजेय के पिता राजा परीक्षित को मिला था श्राप :-
एक बार कि बात है , राजा परीक्षित आखेट के लिए वन में
गए थे । वन्य जीवों के पीछे-पीछे दौडते हुए वे प्यास से
व्याकुल हो उठे । जलाशय की खोज में इधर-उधर भटकने
के बाद वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे । ऋषिवर उस
समय ध्यान में लीन थे । राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा
परंतु वे ध्यानमग्न होने के कारण कुछ न बोले ।
सिर पर स्वर्ण मुकुट मे कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित
को क्रोध आ गया उन्हें लगा कि यह ऋषि मेरा अपमान कर
रहे हैं । ध्यानमग्न होने का बस दिखावा कर रहे हैं ।
उन्होंने क्रोध में आकर पास ही में पड़े एक मृत सर्प को उनके
गले में डाल दिया और वहां से वापस लौट गए ।
जब ऋषि शमीक ध्यान से जागे तो उन्होंने अपने गले में उस
मृत सर्प को देखा । उन्हें यह समझ नहीं आया कि राजा ने
ऐसा क्यों किया । उसी समय शमीक ऋषि के पुत्र ऋंगी
ऋषि वहां आ पहुंचे । जब उन्हें राजा परीक्षित द्वारा अपने
पिता के अपमान के बारे में पता चला तो उन्होंने क्रोध में
आकर अपने कमंडल से जल अपनी अंजुली में लेकर श्राप
दिया कि आज से सातवें दिन तुझे तक्षक नाग डस लेगा ।
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