भगवान रणछोड़ और कालयवन का वध


कंस द्वारा बाल श्रीकृष्ण को मारने के लिए कई निष्फल प्रयास
किये गये । एक बार हार कर कंस ने अपने ससुर जरासंध की

मदद ली । जरासंध ने भी कई षडयंत्र रचे लेकिन हर बार उसे
भी असफलता ही हाथ लगी।  तब मगध नरेश जरासंध को

अपने एक मित्र 'कालयवन' की याद आई । कालयवन यवन
देश का राजा था । वह ऋषि शेशिरायण और स्वर्ग की अप्सरा

रंभा का पुत्र था । एक बार ऋषि ने भगवान भोलेनाथ की
तपस्या की थी और उनसे यह वरदान प्राप्त किया था कि

उनका एक पुत्र हो जो अजेय हो सारे अस्त्र-शस्त्र उसके सामने
निस्तेज हो जाए ।भगवान ने उसे यही वरदान प्रदान किया

और कहा तुम्हारा पुत्र अजेय होगा कोई भी चन्द्रवंशी या
सूर्यवंशी राजा उसे हरा नहीं सकता तथा किसी भी अस्त्र-शस्त्र

से उसे मारा नहीं जा सकेगा । इस वरदान के फलस्वरूप ऋषि
एक बार एक झरने के पास से गुज़र रहे थे तो उन्हें वहां एक

अति सुन्दर युवती दिखाई पड़ी जो जल-क्रीड़ा (जलसेखेलना)
कर रही थी । वह युवती ओर कोई नहीं बल्कि अप्सरा रंभा

थी । दोनो ने एक दूसरे को देखा और मोहित हो गए और फिर
उन्होंने विवाह कर लिया । समय के साथ उनका एक पुत्र हुआ

जो कालयवन के नाम से जाना गया ।



                                                उस समय प्रतापी राजा
काल जंग यवन देश पर राज करता था । सभी छोटे-बड़े राजा

उससे डरते थे परंतु वह बहुत दुखी रहा करता था क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी जो उसके बाद उसके साम्राज्य

का राजा बने । एक बार उसका मंत्री उसे आनंद गिरि पर्वत के बाबा के पास ले गया । वहां बाबा ने उसे परामर्श दिया कि वह

ऋषि शेशिरायण से उनका पुत्र मांग ले तत्पश्चात कलजंग ने
ऋषि को उनका पुत्र मांगा परंतु वे न माने । जब उन्होंने बाबा

की वाणी सुनी तब जाकर अपने पुत्र कालयवन को राजा कालजंग को सौंप दिया फलस्वरूप कालयवन यवन देश का

राजा बना ।

जरासंध के कहने पर कालयवन श्रीकृष्ण को मारने के लिए
मथुरा पहुंचा। उसने संपूर्ण मथुरा को घेर लिया और तब

मथुरा नरेश श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा । श्रीकृष्ण
जानते थे कि शिव जी के वरदान के कारण कोई भी उसे नहीं

मार सकता था। इसलिए उन्होंने कालयवन को संदेशा भिजवाया कि युद्ध हम दोनों के बीच हो जाए तो अच्छा है

इसमें पूरी सेना को व्यर्थ मे क्यों शामिल करना । कालयवन ने
उनकी बात मान ली और द्वन्द युद्ध के लिए तैयार हो गया ।

श्रीकृष्ण अपने राजमहल से निकल कर युद्ध भूमि पर आएं।



                                  जब उन दोनों के बीच द्वन्द युद्ध का
जय हो गया तो कालयवन श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा । श्रीकृष्ण

तुरंत ही मुहं घुमाकर रणभूमि छोड़ भागने लगे । उनके इस प्रकार रणभूमि छोड़ कर भागने के कारण ही श्रीकृष्ण का

नाम "रणछोड़" पड़ा । कालयवन उनके पीछे-पीछे दौड़ पड़ा
और वे लीला करते हुए भागते रहे । भागते-भागते श्रीकृष्ण

एक गुफा में घुस गए उनके पीछे कालयवन भी घुसा । वहां
एक व्यक्ति पहले से ही सो रहा था तो कालयवन ने सोचा कि

श्रीकृष्ण ही सो रहे हैं , पहले द्वन्द युद्ध के लिए तैयार किया
फिर रणभूमि छोड़ भागने लगे और अब यहां आकर आराम से

सो रहे हैं । ऐसा सोचकर उसने उस सोए व्यक्ति को एक लात
मारी। पैर के प्रहार से उस व्यक्ति की नींद खुल गई और उसने

धीरे-धीरे अपनी आँखे खोली । जैसे ही उसकी नजर कालयवन पर पड़ी , वह जलकर तुरंत ही भस्म हो गया।

यह महापुरुष जो कालयवन को गुफा में मिले इक्ष्वाकु वंशीय
राजा मुचुकुंद थे । सूर्यवंशी राजा मुचुकुंद को यह वरदान प्राप्त

था कि जो भी उन्हें निद्रा से जगाएगा और उनकी प्रथम दृष्टि
उस व्यक्ति पर पड़ेगी वह उसी समय भस्म हो जाएगा ।
Ranchhod bhagwan shrikrishna and kaalyavan story hindu mythology







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