बाबा बैजनाथ धाम की कथा
Baba baidayanath dham ki katha:-
एक बार शिव भक्त और लंका का राजा रावण भगवान
भोलेनाथ को लंका में लाने के लिए कैलाश पर घोर तपस्या
कर रहा था। तब भी भोलेनाथ खुश न हुए तो वह एक एक
कर अपने सिर काट कर शिवलिंग पर चढ़ाने लगा । नौ सिर
चढ़ाने के बाद जैसे ही वह अपना दसवाँ सिर काटने वाला था
तभी भगवान भोलेनाथ ने उसकी भक्ति से प्रसन्न उसे दर्शन
दिए और उसे दसवाँ सिर काटने से मना करते हुए कहा -
'वत्स कहो , तुम्हारी क्या इच्छा है?'
रावण प्रभु के दर्शन पाकर अपनी तपस्या से जागा और
भोलेनाथ को प्रणाम करके बोला - 'हे प्रभु ! आप तो
अंतर्यामी है, आप से कौन सी बात छुपी हुई है । मै लंका का
राजा रावण, तीनों लोकों का स्वामी । जिसने देवताओं ,
गंधर्व , यक्षो और कितने ॠषि मुनियों को लंका में कैद
करके रखा है। बस मेरी इच्छा अब आपको अपने साथ
लंका ले जाने की है ।'
अब तो शिव जी असमंजस में पड़ गए क्योंकि उनकी इच्छा
कैलाश को छोड़कर कहीं अन्यत्र जाने की नहीं थी लेकिन
वे अपने वचन से भी पीछे नहीं हट सकते थे। इस तरह
भोलेनाथ रावण के साथ चलने के लिए तैयार हो गए लेकिन
उन्होंने रावण के सामने एक सर्त रख दिया ।
भोलेनाथ रावण से कहते हैं - 'वत्स ! मैं तुम्हारी भक्ति से
खुश हूँ लेकिन मैं तुम्हारे साथ लंका इस कामना लिंग के रूप
में ही चलूंगा और अगर तुमने मुझे ले जाने के समय रास्ते में
कहीं रख दिया तो मैं वही स्थापित हो जाऊंगा ।'
रावण ने मन में सोचा कि मेरे जैसे महाबलशाली व्यक्ति के लिए इस लिंग को लंका तक ले जाना कौन सी बड़ी बात है । उसने उत्तर दिया - ' जैसी
आपकी इच्छा। '
इधर जब देवताओं के पास यह बात पहुंची कि महादेव लंका
जा रहे हैं, खलबली मच गई। सभी देवता भगवान विष्णु के
पास गए और उन्हें इस समस्या के बारे में बताया और इसका
समाधान करने के लिए कहा।
दूसरी तरफ रावण कामना लिंग
लिए लंका की ओर चल पड़ा। तभी भगवान विष्णु ने यह
चाल चली । उन्होंने देवी गंगा से याचना कि की वह रावण के
पेट में समा जाए और इस कारण रावण को बहुत जोर की
लघुशंका लग गई । रावण उस समय देवघर ही पहुंचा था,
जब उसे लघुशंका लगी तो वह इधर-उधर देखने लगा कि
कहीं कोई व्यक्ति मिल जाए तो उसे शिवलिंग पकड़ने के लिए
देकर वह लघुशंका कर लेगा ।
चारों तरफ देखने के बाद
उसे एक बालक चरवाहा दिखाई पड़ा जो वही अपनी
गऊओ को चरा रहा था। असल में वह चरवाहा ओर कोई
नहीं साक्षात "श्री हरि विष्णु " थे जो महादेव को लंका ले
जाने से रोकने के लिए बैजू चरवाहे का रूप लेकर अपनी
लीला दिखाने आए थे ।
रावण ने बैजू चरवाहे को बुलाया और
कहा - 'ऐ चरवाहे! सुन मैं लघुशंका के लिए जा रहा हूँ इसलिए
तू इस शिवलिंग को पकड़ और जब तक मैं न आऊ तब तक
इसे पकड़े रखना ।' चरवाहे ने कहा कि ठीक है मैं शिवलिंग
को नीचे नहीं रखुंगा लेकिन आप शीघ्र आइएगा ।
तत्पश्चात रावण कामना लिंग को देकर खुद लघुशंका के लिए
चला गया । अब प्रभु की लीला देखिए रावण ने एक बार
जो लघुशंका करनी शुरू की तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले
रही थी । इधर चरवाहे के रूप में प्रभु बार -बार उसे आवाज़
दे रहे थे कि अगर वह अब नहीं आया तो मैं शिवलिंग
जमीन पर रख दूंगा लेकिन फिर भी रावण की लघुशंका
समाप्त होने का नाम नहीं ले रही थी। यहां तक कि उसने
अपनी लघुशंका से एक तालाब भी भर दिया ।
इधर बैजू चरवाहे ने कामना लिंग को जमीन पर
रखा और उधर रावण की लघुशंका खत्म हुई । वह सब तरह
से निवृत्त होकर आया ही था कि उसने देखा चरवाहे ने
शिवलिंग नीचे रख दिया है तो उसने चरवाहे को बहुत
फटकार लगाई और शिवलिंग को उठाने का प्रयास करने
लगता है । लाख कोशिशों के बावजूद वह शिवलिंग को
टस -से -मस नहीं कर पाता और प्रभु का छल समझकर,
क्रोध से शिवलिंग को लात मारकर अपनी नगरी लंका की ओर
प्रस्थान करता है ।
तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवता
आकर "कामना लिंग " की पूजा -अर्चना करते हैं।
तभी से भगवान भोलेनाथ कामना लिंग के रूप में देवघर में
विराजते है और सभी की कामना पूरी करते हैं ।
यह स्थान "बैजनाथ धाम " के नाम से भी जाना जाता है
क्योंकि एक तरह से इस शिवलिंगको बैजू चरवाहे के रूप में
विष्णु जी ने स्थापित किया था।
यह स्थान शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और
इसकी बड़ी महिमा पुराणों में बताई गई है।
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