नहले पर दहला







किसी गांव में सूरज नाम का चालाक आदमी रहता था  । वह

ख्याली पुलाव बनाने में खुब तेज और पेटू था ।  वह एक

किसान था पर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाने में माहिर

था ।


एक दिन की बात है, वह गांव के मशहूर हलवाई अमर की

दुकान पर गया । मिठाई पर नजर डालते हुए उसने कहा कि

- एक किलो बर्फ का क्या दाम है?


"पचास रुपये किलो "- अमर ने कहा ।

"ठीक है एक किलो तोल दो" -सूरज ने कहा ।

अमर ने जैसे ही बर्फ तोलकर सूरज को देना चाहा सूरज झट

से बोला बर्फ रहने दो एक किलो जलेबी दे दो ।

अमर सूरज के मसखरेपन से वाकिफ था इसलिए कुछ नहीं

बोला और बर्फ को एक तरफ करके जलेबी तोलकर सूरज को

देने लगा । ठीक उसी समय सूरज फिर से बोला - "नहीं भाई !

जलेबी मेरी पत्नी को पसंद नहीं है इसलिए एक काम करो

एक किलो लड्डू तोल दो ।

अमर अंदर से झल्लाया और मन-ही-मन सोचा कि अगर इस

बार इसने मना कर दिया तो इसे चलता कर दूंगा।

सूरज इस बार चुप रहा । अमर ने कहा ऐ लू लड्डू और इसके

हुए चालीस रुपए ।

सूरज ने कहा काहे के चालीस रुपए मैंने तो बर्फ मांगा था ।

अमर बोला तो लाओं बर्फ के पैसे ? सूरज बोला - लेकिन मैंने

तो बर्फ लिया ही नहीं तो किस बात के पैसे दूं ?

लड्डू लेकर सूरज चला गया । अमर ने झुंझलाते हुए सोचा

इसे मजा चखाना पडेगा यह खुद को बहुत होशियार समझता

है ।

दूसरे दिन सूरज अमर की दुकान के आगे से निकला तो अमर

ने उसे कहा कि अगर तुम अगर एक बार में चार लड्डू खाकर

दिखा दो तो मैं तुम्हें सौ रुपये दूंगा और अगर न खा पाएं तो

मुझे सौ रुपये देने पडेंगे ।


सूरज ने तिरछी नजर से दुकान में झांका उसे संतरे के  आकार

के लड्डू दिखाई पड़ा । वह मन-ही-मन खुश होकर सोचने लगा

कि अमर शायद मुझे बेवकुफ समझता है उसे पता नहीं कि

मिठाई के मामले में मैं कितना पेटू हूँ ।

मैं इन लड्डुओं को अभी चट कर जाता लेकिन अभी खाना

खाने के वजह से मेरे पेट में जगह नहीं है । वह बोला - अमर

मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है लेकिन मै अभी जरा जल्दी मे हूँ , मै

तुम्हें शाम को मिलता हूँ ।


जैसी तुम्हारी इच्छा ! अमर सूरज की चालाकी समझ गया ।

मन-ही-मन खुश हुआ और बोला - "फंस गया पंछी जाल में"।


शाम को शर्त जीतने के लिए सूरज अमर  की दुकान में आया

और बोला - "लाओ भाई ! हमारे चार लड्डू । बड़ी जोर की

भूख लगी है ।


अमर ने कपडे से ढका एक बड़ा थाल सूरज के सामने रख

दिया । सूरज ने कपड़े उठाकर देखा तो चकरा गया ।

थाल मे नारियल के आकार के चार लड्डू थे ।  वह समझ गया

कि अमर ने उसके साथ चालाकी की है।

अनमने भाव से उसने एक लड्डू उठाया और खाने लगा ।

पर उससे एक लड्डू से ज्यादा खाया न जा सका । उसने

चुपचाप अमर को सौ रुपये पकडाया और वहां से चलता

बना ।

        आज उसे अपनी चालाकी और पेटूपन पर गुस्सा आ

रहा था ।



इसे कहते हैं नहले पर दहला ।





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