भगवान शिव का अर्धनारीश्वर अवतार / Bhagwan Shiva ka aradhnariswar avatar
बहुत पहले की बात है जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का कार्य समाप्त किया था, तो उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनायी है उसमें तो विकास की गति है ही नहीं । जितने पशु-पक्षी, मनुष्य और कीट-पतंग की रचना उन्होंने की है, उनकी संख्या में वृद्धि तो हो ही नहीं रही है।
इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए कि अगर सृष्टि में विकास न होगा तो उन्हें बार-बार इनकी रचना करनी पड़ेगी। इस तरह तो यह पृथ्वी विरान हो जाएगी।
तब ब्रह्मदेव अपनी चिंता लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि- 'ब्रह्मदेव! आप शिव की आराधना करें वहीं कोई उपाय बताएंगे और आपकी चिंता का निदान करेंगे।
ब्रह्मा जी ने शिव जी की तपस्या शुरू कर दी। ब्रह्मदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का उपाय बताया।
तब ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा- 'प्रभु ! यह मैथुनी सृष्टि कैसी होगी, कृपया बताइए।
इस प्रकार ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए शिव जी ने अपने शरीर के आधे भाग को नारी के रूप में प्रकट कर दिया और अर्धनारीश्वर कहलाए।
बाद में इसी नारी शक्ति ने माता सती तथा माता पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव की अर्धांगिनी बनी।
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