बिना शस्त्र के महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले उडुपी नरेश

           
Udupi naresh prepares food for soldiers in Mahabharata

महाभारत युद्ध की शुरुआत से पहले आर्यावर्त के सभी राजा

महाराजा इसमें भाग लेने के लिए हस्तिनापुर पहुंच रहे थे ।

कौरव और पांडव इन सभी को अपना लक्ष्य और प्रयोजन

बताकर अपनी ओर करने के प्रयास में लगे हुए थे । तब

दक्षिण भारत के उडुपी नरेश अपनी सेना लेकर इस धर्म-युद्ध

मे शामिल होने के लिए हस्तिनापुर पहुंचे । कौरवों और पांडवो

ने अपनी-अपनी ओर से युद्ध करने के लिए उडुपी नरेश को

मनाना शुरू कर दिया ।

दोनों पक्षों की बातें सुनकर वह निर्णय नहीं ले पा रहे थे कि

किसकी तरफ से लड़े और वहां उन्हें समस्त आर्यावर्त की

सेना के भोजन की चिंता हुई ।


उडुपी नरेश पांडवो के शिविर में जाकर श्रीकृष्ण से मिले ।

उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि वह भाइयों के बीच युद्ध से

सहमत नहीं है परंतु इस यद्ध को अब टाला भी नहीं जा

सकता है । यद्यपि वे युद्ध में भाग लेने के इच्छुक हैं परंतु अस्त्र

शस्त्रों से नही ।


श्रीकृष्ण उडुपी नरेश का प्रयोजन समझ गए और पूछा कि

तब आप क्या चाहते हैं ? उडुपी नरेश ने दोनों ओर की सेना

के लिए भोजन का प्रबंध करने  का प्रस्ताव रखा ।

श्रीकृष्ण ने उनका प्रस्ताव मान लिया और इस तरह से उडुपी

नरेश ने बिना शस्त्र उठाएं महाभारत युद्ध में भाग लिया और

अठारह दिन तक चले इस युद्ध में दोनों ओर की सेनाओं को

कभी भोजन की कमी न होने दी ।



धर्मराज युधिष्ठिर ने राज सिंहासन पर बैठने के समारोह के

समय उडुपी नरेश की प्रशंसा की । युधिष्ठिर ने उडुपी नरेश

से कहा कि 'सभी तरफ पांडवो की जयकार हो रही है , कि

कैसे कम सेना के बावजूद भी पांडवो ने भीष्म पितामह,

द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथियों के विरुद्ध लड़ने के बाद

भी विजय प्राप्त की । जबकि मैं अनुभव करता हूँ कि सबसे

अधिक प्रंशसा के पात्र तो आप है जिन्होंने न केवल इतनी

विशाल सेना के भोजन का प्रबंध किया बल्कि एक दाना भी

व्यर्थ होने न दिया । इस कुशलता का क्या रहस्य है ?'


इसपर उडुपी नरेश ने पूछा - 'युधिष्ठिर अपनी जीत का श्रेय

किसे देंगे ?'


युधिष्ठिर ने कहा - 'यह सब श्रीकृष्ण का प्रताप है जो हम इस

युद्ध को जीत सकें । उनके बिना कुछ भी सम्भव नहीं था ।'



तब उडुपी नरेश ने कहा - 'तो भोजन का कुशल प्रबंध भी

श्रीकृष्ण का ही प्रताप है।'

वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए और उडुपी नरेश से रहस्य

को स्पष्ट करने के लिए कहा।



उडुपी नरेश ने स्पष्ट करते हुए बताया कि - ' श्रीकृष्ण प्रतिदिन

 रात्रि में  मूंगफली खातें थे । वे प्रतिदिन गिन के मूंगफली

भेजते थे और उनके खाने के पश्चात गिन कर देखते थे कि

उन्होंने कितनी मूंगफली खाई है । कृष्ण जितनी मूंगफली

खाते थे उससे ठीक हजार गुना सैनिक अगले दिन युद्ध में

मारे जाते थे । मतलब कि अगर उन्होंने 50 मूंगफली खाई है

तो अगले दिन युद्ध में 50000 सैनिक मारे जाऐंगे ।

उडुपी नरेश ने कहा कि वे बस इसी अनुपात में भोजन बनवाते

थे जिससे अन्न का एक दाना भी व्यर्थ नहीं जाता था ।



सभा में उपस्थित सभी लोग श्रीकृष्ण के इस चमत्कार के बारे

में जानकर आश्चर्यचकित हुए ।





                            - महाभारत की कहानियाँ ( stories of mahabharat)





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