चक्रव्यूह रचना और अभिमन्यु का वध

  
महाभारत के युद्ध में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का शौर्य

  
Arjuna son Abhimanyu breaks down the chakarviyuh in Mahabharata war


कुरुक्षेत्र में अपने प्राणों को दांव पर लगा कौरवों के

महारथियों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाला वीर 

अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा का पुुत्र था । वह अर्जुन के

समान ही शूरवीर था । अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ना अपनी

माता के गर्भ में ही सीख लिया था । एक बार जब अभिमन्यु

सुभद्रा के गर्भ में ही थे तो अर्जुन अपनी पत्नी को चक्रव्यूह

रचना और उसे तोड़ने के बारे में बता रहे थे पंरतु चक्रव्यूह से

कैसे निकलते हैं यह बता नही सके क्योंकि सुभद्रा सो चुकी थी


कौरवों-पांडवो के मध्य युद्ध के समय गुरु द्रोणाचार्य कौरवों के

सेनापति थे । वे पांडवो की सेना से निरंतर पराजित होने के

कारण दुखी थे । इस कारण द्रोणाचार्य ने पांडवो को पराजित

करने हेतु चक्रव्यूह की रचना की । द्रोणाचार्य को पता था कि

इस समय अर्जुन बहुत दुर निकल गए हैं युद्ध करते करते और

चक्रव्यूह को सिर्फ अर्जुन ही तोड़ सकते हैं या फिर श्रीकृष्ण ।

परंतु श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली है ।



पांडवो मे चिंता की लहर दौड़ गई कि आखिर चक्रव्यूह तोड़ेगा

कौन ? हममें से किसी को तो चक्रव्यूह भेदना भी नहीं आता ।

उसी समय बालक अभिमन्यु ने युधिष्ठिर से कहा -'तातश्री !

मुझे आज्ञा दे । मुझे चक्रव्यूह भेदना और उसमें प्रवेश करना

भी आता है । आप इसकी चिंता न करें ।'


धर्मराज अभिमन्यु के पराक्रम को जानते थे परंतु एक छोटे

बालक को कैसे युद्ध में अकेले जाने देने की अनुमति देते ।

उस समय अभिमन्यु की आयु सिर्फ सोलह वर्ष की थी परंतु

उसके हठ के आगे धर्मराज को झुकना पड़ा ।

अभिमन्यु के साथ भीम, नकुल और सहदेव के साथ सेना भी

चक्रव्यूह में प्रवेश के लिए उसके साथ गए परंतु अभिमन्यु

आगे बढ़ गए और बाकी लोग चक्रव्यूह में प्रवेश ही नहीं कर

सके ।

चक्रव्यूह में प्रवेश करने  के पश्चात अभिमन्यु ने 6 द्वार

सफलतापूर्वक तोड़ दिया और कई महारथियों को मार

गिराया जिसमें से एक दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण भी था । इसके

बाद दुर्योधन ने अभिमन्यु को मारने के लिए युद्ध के सारे

नियमों को ताक पर रख दिया । दुर्योधन जयद्रथ जैसे सात

महारथियों ने मिलकर अभिमन्यु को चारों ओर से घेर लिया ।


बालक अभिमन्यु और कौरवों के मध्य घमासान युद्ध हुआ ।

अभिमन्यु अकेला कौरवों पर भारी पड़ रहा था परंतु वह बहुत

ही थक चुका था युद्ध करते हुए ।


कर्ण ने उसका धनुष अपने बाणों से तोड़ डाला और उसके

रथ को भी तोड़ दिया गया । अब अभिमन्यु बिलकुल निहत्था

था परंतु फिर भी वह रथ के पहिये को घुमाते हुए शत्रु सेना

पर टूट पड़ा उसी समय जयद्रथ ने निहत्थे अभिमन्यु पर

पीछे से तलवार का जोरदार प्रहार किया । इसके बाद सातो

महारथियों ने उसपर वार पर वार किया । अभिमन्यु वहां

वीरगति को प्राप्त हुआ ।


अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन बहुत क्रोधित

हुए और उन सभी का सर्वनाश करने की शपथ ली । सबसे

पहले उन्होंने जयद्रथ को कल के सूर्यास्त के पहले मारने की

प्रतिज्ञा की ।







                                           - महाभारत कीकहानियाँ (stories of mahabharat)




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