अढ़ाई दिन की बादशाहत
बक्सर के मैदान में मुग़ल बादशाह हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच घमासान युद्ध हुआ । शेेेरशाह की सेना ने हुमायूं को तीन ओर से घेेर लिया जिसके कारण हुमायूं को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा । वह मैदान से निकलकर गंगा नदी की ओर भागा । नदी के किनारे वह जल्दी से नदी पार करने का प्रयास करने लगा क्योंकि शेरशाह की सेना उसके पीछे थी । तभी वहां निजाम नाम का भिश्ती अपनी मश्क में पानी भरने आया । हुुुमायूूं ने उससे मदद मांगी और उसे उसकी इच्छानुसार इनाम देने का वादा किया । निजाम ने उसे अपनी मश्क में लिटाया और तैरकर नदी पार करवा दिया । अब वक्त आया जब हुमायूं बादशाह को अपना दिया हुआ वादा पूरा करना था । बादशाह ने निजाम को अपना इनाम मांगने के लिए कहा तब उसने मांगा कि उसे अढ़ाई दिन के लिए बादशाहत मिले । बादशाह हुमायूं ने अपना दिया वादा पूरा किया और उसे तख़्त पर बिठा दिया । इस तरह से वह भिश्ती अढ़ाई दिन के लिए बादशाह बना । बाद में इस घटना को अढ़ाई दिन की बादशाहत के नाम से जाना जाने लगा और समय के साथ एक कहावत के रूप में मशहूर हो गई ।