विक्रमादित्य का सिंहासन और राजा भोज

प्राचीन काल में लगभग 1010 से 1055 ईसा की बात है, तब
अति प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी में परमारवंशीय राजा राजा भोज का शासन था । राजा भोज अपनी न्याय प्रियता और कुशल शासन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने उज्जयिनी की जगह धार को अपनी नई राजधानी बनाया था । उनके कार्यों के वजह से उन्हें 'नव विक्रमादित्य '  भी कहा जाता है।
King of ujjain raja vikramaditya

                                       उनकी नगरी में एक ऊँचा टीला था जिसपर बैठकर एक बालक बड़ी चतुराई से न्याय करता था । एक बार कि बात है, राजा भोज उस टीले के पास से गुज़र रहे थे, तब भी वह बालक वहां बैठकर अपने मित्रों के झगड़े का समाधान बड़ी गंभीरता के साथ कर रहा था। उसने ऐसे चतुराई के साथ न्याय किया कि राजा देखकर आश्चर्यचकित हो गए । एक छोटा बच्चा कैसे इतनी सहजता से उचित न्याय कर सकता है ।

राजा भोज अपने राजमहल पहुंचे और दरबार के विद्वानों और ज्योतिषियों को यह अनोखी बात बताई । उन्होंने अपनी विद्या से इस बात का पता लगाया कि उस टीले के नीचे राजा विक्रमादित्य का सिंहासन दबा हुआ है । वह देवताओं द्वारा बना सिंहासन है इसलिए उसपर बैठने वाला व्यक्ति हमेशा सच्चा न्याय करता है ।


राजा भोज ने उसी समय आदेश दिया कि उस टीले की खुदाई की जाएं । काफ़ी खुदाई के पश्चात सच में एक सिंहासन निकला ,जिसके चारों ओर आठ-आठ कुल बत्तीस पुतलियां थी । सभी विस्मित थे इस प्रकार के सिंहासन को देखकर ।


राजा ने मजदूरों को आदेश दिया कि सिंहासन को तुरंत निकाला जाए परंतु काफी कोशिशों के बावजूद भी वह सिंहासन टस से मस न हुआ । तब ज्योतिषियों ने राजा को सुझाव दिया कि यह देवताओं के द्वारा बनाया सिंहासन है इसलिए पहले राजा भोज को इसकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए और तब इसपर बैठना उचित होगा।

राजा ने ठीक वैसा ही किया फलस्वरूप सिंहासन ऐसे बाहर निकला जैसे फूलों का हो। सिंहासन में अनगिनत रत्न जड़े थे। राजा भोज ने सिहासन को दुरूस्त करने का आदेश दिया और ऐलान किया कि शुभ मुहूर्त में वे इसमें बैठेंगे ।

सिंहासन के दुरूस्त होने में पाँच महीनों का वक़्त लगा परंतु इसके बाद उसकी भव्यता अत्यधिक बढ़ गई । पुतलियां इतनी सजीव लगने लगी मानों अब बोल उठेगी ।


राजा ने पंडितों को कहकर सिंहासन पर बैठने के लिए शुभ मुहूर्त निकालने को कहा ।  दिन तय किया गया । चारो ओर खुशियां मनाई जा रही थी । महल को भी सजाया गया और उत्सव के सारे इंतजाम किया गया ।

समयानुसार राजा ने सिंहासन में बैठने के लिए पैर बढाया ही था कि सभी पुतलियां खिलखिलाकर हंसने लगी। दरबार में मौजूद सभी लोग अचरज में पड़ गए कि बेजान पुतलियां कैसे
हंस सकती हैं?

राजा भोज ने पुतलियों से पूछा कि वे क्यों हंस रही हैं? तो पहली पुतली जिसका नाम रत्नमंजरी था ने जवाब दिया- "हे राजन! यह सिंहासन परम दयालु और न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य का सिंहासन है अगर आप उनके जैसे है तो ही इस सिंहासन पर बैठने के योग्य है ।"

राजा भोज ने कहा - "मै कैसे मान लूं कि राजा विक्रमादित्य मुझसे ज्यादा न्यायप्रिय और दयालु है "

इसपर वह पुतली हंसने लगी और कहा - "मैं तुम्हें उनकी एक कहानी सुनाती हूँ ।"  इस प्रकार जब भी राजा सिंहासन पर बैठने के लिए पैर बढ़ाते सारी पुतलियां हंसने लगती और राजा विक्रमादित्य के न्यायप्रियता की कहानियाँ सुनाती । एक एक कर बत्तियों पुतलियों ने विक्रमादित्य की महानता की कहानियाँ कह सुनाई ।


अंत में राजा भोज ने विक्रमादित्य को परम ज्ञानी और पराक्रमी राजा माना और उनकी कहानियों से शिक्षा ग्रहण कर सिंहासन पर बैठे ।
King bhoj parmar of ujjain

 


                                                       - सिंहासन बत्तीसी        

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