अर्जुन ने क्यों मारा जयद्रथ को
महाभारत युद्ध के समय द्रोणाचार्य द्वारा बनाये गए चक्रव्यूह में फंस कर जयद्रथ द्वारा अभिमन्यु का वध किया जाता है । युद्ध से लौटे अर्जुन के लिए उनके पुत्र की मृत्यु असहनीय हो जाता है और वे आवेशित होकर प्रतिज्ञा कर बैठते हैं कि कल के सूर्य अस्त से पहले अभिमन्यु के हत्यारे जयद्रथ का वध करेंगे या फिर आत्मदाह कर लेंगे ।
1 / 1 कैसे सिखा अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदना :-
एक बार जब सुभद्रा गर्भवती थी तो अर्जुन उन्हें चक्रव्यूह कैसे भेदा जाता है और कैसे उससे निकला जाता है बता रहे थे । सुभद्रा ने चक्रव्यूह भेदने की कला तो जान ली परंतु वे बीच में ही सो गई । जिससे उनके गर्भ में अभिमन्यु ने सिर्फ चक्रव्यूह भेदना ही सीखा उससे निकलना न सीख सके ।
1 / 2 अर्जुन का रणक्षेत्र से दूर चले जाना और निहत्थे अभिमन्यु का वध
एक दिन अर्जुन युद्ध करते करते दूर निकल गए या यूँ कहें कि यह एक चाल थी कि अर्जुन को रणभूमि से दूर रखा जाए । कौरवों ने अर्जुन को दूसरी तरफ उलझा कर रखा वही द्रोणाचार्य ने पांडवो को पराजित करने के लिए चक्रव्यूह की रचना की क्योंकि वे बार बार अर्जुन से पराजित होकर परेशान हो गए थे । दुर्योधन भी हतोत्साहित हो रहा था । चूंकि गुरु द्रोणाचार्य यह जानते थे कि पांडवो मे से सिर्फ अर्जुन को ही चक्रव्यूह भेदने की कला के बारे में पता है । द्रोणाचार्य चक्रव्यूह की रचना करते हैं ।
पांडवो के शिविर में युधिष्ठिर निराश बैठे थे वही भीम , नकुल और सहदेव सहदेव भी सिर झुकाए अपने स्थान पर बैठे थे । उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या का हल किस प्रकार निकाला जाए । तभी अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु वहां आते है और कहते हैं कि - आपकी अगर आज्ञा हो तो मैं चक्रव्यूह तोड़ने जाऊं क्योंकि मुझे चक्रव्यूह में प्रवेश करना आता है हालाकि माता के निद्रा में चले जाने के कारण मै उससे निकलना नहीं सुन सका । युधिष्ठिर अभिमन्यु को जाने देने से साफ मना कर देते है परंतु वे उसके शौर्य से भलि भांति परिचित थे और अभिमन्यु की जिद के सामने वे ज्यादा न बोल सके और स्वीकृति प्रदान कर दी । अभिमन्यु के सुरक्षा के लिए भीम , नकुल और सहदेव भी उसके साथ रहेंगे और चक्रव्यूह में प्रवेश करेंगे ऐसा योजना बनाई गई । युद्ध शुरू हुआ और अभिमन्यु के साथ पांडव भी गए । चक्रव्यूह भेदने के बाद अभिमन्यु ने उसमें प्रवेश किया लेकिन बाकी पांडव घुस न सके । अभिमन्यु का रथ चक्रव्यूह को चीरते हुए उसके छः व्यूह को तोडते हुए सातवें व्यूह में प्रवेश करता है । सभी कौरवों सहित द्रोणाचार्य , कर्ण , कृपाचार्य जैसे महारथी अभिमन्यु की वीरता को देखकर दंग रह जाते हैं ।
इसी बीच अभिमन्यु दुर्योधन के बेटे लक्ष्मण का वध कर देता है इससे क्रोधित होकर दुर्योधन युद्ध के सारे नियमों को ताक पर रख देता है और अकेले अभिमन्यु को कौरव घेर लेते है । चूंकि अभिमन्यु अकेला युद्ध करता हुआ चक्रव्यूह में प्रवेश करता है इसलिए वह थोड़ा थक जाता है यद्यपि फिर भी उसके उत्साह में कोई कमी नहीं होती ।
दुर्योधन , कर्ण , जयद्रथ जैसे महारथी अभिमन्यु को चारों तरफ से घेर लेते है । अभिमन्यु इस युद्ध में अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हैं परंतु अकेले कब तक वे पूरी कौरव सेना और महारथियों से लड़ते । उनका धनुष - बाण टुट जाता तब वह अपने रथ के पहिये को घुमाते हुए शत्रुओं का विनाश करता है । अंत मे निहत्थे अभिमन्यु पर जयद्रथ पीछे से वार करता है और उसके वार से अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो जाते है ।
अभिमन्यु वध की सूचना जब पांडवो को मिलती हैं तो उनमें भयानक निराशा घेर लेती हैं । पूरे शिविर में सन्नाटा पसर जाता है । दूसरी तरफ अर्जुन के मन में भी किसी भयंकर अनहोनी के संकेत आते हैं वे श्रीकृष्ण को भी अपनी चिंता प्रकट करते है परंतु कृष्ण उन्हें समझा कर शिविर वापस लौट आए । शिविर में आकर जब अर्जुन को अभिमन्यु की मृत्यु के बारे में पता चलता है तो उन्हें असहनीय पीड़ा होती हैं वे खुद को संभाल नहीं पाते और आवेश में आकर प्रतिज्ञा करते हैं कि कल के सूर्य अस्त से पहले वे अभिमन्यु के हत्यारे जयद्रथ का वध करेंगे या फिर आत्मदाह कर लेंगे ।
1 / 3 अर्जुन की प्रतिज्ञा और कौरवों में हर्ष
जब कौरवों को अर्जुन की प्रतिज्ञा के बारे में पता चला तो उन्होंने अगले दिन के युद्ध में जयद्रथ को छुपा दिया ताकि सूर्य अस्त से पहले जयद्रथ का वध न हो सके और उनके सबसे बड़े शत्रु अर्जुन का काम भी तमाम हो जाए । कौरवों में इस बात का हर्ष व्याप्त हो गया कि अर्जुन कल खुद ब खुद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा और इस प्रकार वे लगभग पूरा युद्ध ही जीत लेंगे । पांडवो मे घोर संकट के बादल छा गए एक तो अभिमन्यु की मृत्यु का दुख और दूसरी अर्जुन की ऐसी प्रतिज्ञा ।
1 / 4 श्रीकृष्ण ने रचा जयद्रथ के लिए मायाजाल
अगले दिन युद्ध शुरू हुआ परंतु अर्जुन को जयद्रथ कहीं नजर नहीं आया । उसे अब निराशा होने लगी परंतु श्रीकृष्ण ऐसे समय में भी मुस्कुरा रहे थे । तब श्रीकृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और सूर्य देव को आदेश दिया कि वह घने बादलों के पीछे छुप जाए । सूर्य देव ने ऐसा ही किया और एक पल में अंधेरा छाने लगा । ऐसा लगा कि माने सूर्य अस्त हो गया और संध्या हो गई । युद्ध बंद होने का समय हो गया । अब अर्जुन आग का घेरा बना कर आत्मदाह के लिए तैयार हो गए । पांडव पक्ष में घोर निराशा छा गई ।
दूसरी ओर कौरवों में प्रसन्नता छाई हुई थी सभी के चेहरे में मुस्कुराहट व्याप्त थी । अर्जुन को आत्मदाह करते हुए देखने के लिए सभी वहां इकट्ठे हो गए । उन सबके लिए यह किसी तमाशे जैसा था । तभी जयद्रथ भी मुस्कुराते हुए अर्जुन को देखने आ पहुंचा । उसने सोचा सूर्य अस्त तो हो ही चुका है अब अर्जुन के सामने आने में हर्ज़ ही क्या है । भला वह अपने दुश्मन को ऐसे मरते हुए देखने से कैसे पीछे रह सकता था ।
जयद्रथ के निकलते ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन की ओर इशारा किया । तभी सबने देखा कि सूर्य देव बादलों के पीछे से निकलकर आसमान में अपने तेज से चमक रहें हैं । सभी आश्चर्य से यह दृश्य देख रहे थे और जयद्रथ घबराकर भागने लगा लेकिन अर्जुन ने अब उसे भागने का मौका नहीं दिया और उसके सर को धड़ से अलग कर दिया ।
Arjuna killed Jayadratha in Mahabharata |
1 / 1 कैसे सिखा अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदना :-
एक बार जब सुभद्रा गर्भवती थी तो अर्जुन उन्हें चक्रव्यूह कैसे भेदा जाता है और कैसे उससे निकला जाता है बता रहे थे । सुभद्रा ने चक्रव्यूह भेदने की कला तो जान ली परंतु वे बीच में ही सो गई । जिससे उनके गर्भ में अभिमन्यु ने सिर्फ चक्रव्यूह भेदना ही सीखा उससे निकलना न सीख सके ।
1 / 2 अर्जुन का रणक्षेत्र से दूर चले जाना और निहत्थे अभिमन्यु का वध
Jayadratha vadh in Mahabharata |
एक दिन अर्जुन युद्ध करते करते दूर निकल गए या यूँ कहें कि यह एक चाल थी कि अर्जुन को रणभूमि से दूर रखा जाए । कौरवों ने अर्जुन को दूसरी तरफ उलझा कर रखा वही द्रोणाचार्य ने पांडवो को पराजित करने के लिए चक्रव्यूह की रचना की क्योंकि वे बार बार अर्जुन से पराजित होकर परेशान हो गए थे । दुर्योधन भी हतोत्साहित हो रहा था । चूंकि गुरु द्रोणाचार्य यह जानते थे कि पांडवो मे से सिर्फ अर्जुन को ही चक्रव्यूह भेदने की कला के बारे में पता है । द्रोणाचार्य चक्रव्यूह की रचना करते हैं ।
पांडवो के शिविर में युधिष्ठिर निराश बैठे थे वही भीम , नकुल और सहदेव सहदेव भी सिर झुकाए अपने स्थान पर बैठे थे । उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या का हल किस प्रकार निकाला जाए । तभी अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु वहां आते है और कहते हैं कि - आपकी अगर आज्ञा हो तो मैं चक्रव्यूह तोड़ने जाऊं क्योंकि मुझे चक्रव्यूह में प्रवेश करना आता है हालाकि माता के निद्रा में चले जाने के कारण मै उससे निकलना नहीं सुन सका । युधिष्ठिर अभिमन्यु को जाने देने से साफ मना कर देते है परंतु वे उसके शौर्य से भलि भांति परिचित थे और अभिमन्यु की जिद के सामने वे ज्यादा न बोल सके और स्वीकृति प्रदान कर दी । अभिमन्यु के सुरक्षा के लिए भीम , नकुल और सहदेव भी उसके साथ रहेंगे और चक्रव्यूह में प्रवेश करेंगे ऐसा योजना बनाई गई । युद्ध शुरू हुआ और अभिमन्यु के साथ पांडव भी गए । चक्रव्यूह भेदने के बाद अभिमन्यु ने उसमें प्रवेश किया लेकिन बाकी पांडव घुस न सके । अभिमन्यु का रथ चक्रव्यूह को चीरते हुए उसके छः व्यूह को तोडते हुए सातवें व्यूह में प्रवेश करता है । सभी कौरवों सहित द्रोणाचार्य , कर्ण , कृपाचार्य जैसे महारथी अभिमन्यु की वीरता को देखकर दंग रह जाते हैं ।
इसी बीच अभिमन्यु दुर्योधन के बेटे लक्ष्मण का वध कर देता है इससे क्रोधित होकर दुर्योधन युद्ध के सारे नियमों को ताक पर रख देता है और अकेले अभिमन्यु को कौरव घेर लेते है । चूंकि अभिमन्यु अकेला युद्ध करता हुआ चक्रव्यूह में प्रवेश करता है इसलिए वह थोड़ा थक जाता है यद्यपि फिर भी उसके उत्साह में कोई कमी नहीं होती ।
दुर्योधन , कर्ण , जयद्रथ जैसे महारथी अभिमन्यु को चारों तरफ से घेर लेते है । अभिमन्यु इस युद्ध में अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हैं परंतु अकेले कब तक वे पूरी कौरव सेना और महारथियों से लड़ते । उनका धनुष - बाण टुट जाता तब वह अपने रथ के पहिये को घुमाते हुए शत्रुओं का विनाश करता है । अंत मे निहत्थे अभिमन्यु पर जयद्रथ पीछे से वार करता है और उसके वार से अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो जाते है ।
अभिमन्यु वध की सूचना जब पांडवो को मिलती हैं तो उनमें भयानक निराशा घेर लेती हैं । पूरे शिविर में सन्नाटा पसर जाता है । दूसरी तरफ अर्जुन के मन में भी किसी भयंकर अनहोनी के संकेत आते हैं वे श्रीकृष्ण को भी अपनी चिंता प्रकट करते है परंतु कृष्ण उन्हें समझा कर शिविर वापस लौट आए । शिविर में आकर जब अर्जुन को अभिमन्यु की मृत्यु के बारे में पता चलता है तो उन्हें असहनीय पीड़ा होती हैं वे खुद को संभाल नहीं पाते और आवेश में आकर प्रतिज्ञा करते हैं कि कल के सूर्य अस्त से पहले वे अभिमन्यु के हत्यारे जयद्रथ का वध करेंगे या फिर आत्मदाह कर लेंगे ।
Abhimanyu vadh in Mahabharata |
1 / 3 अर्जुन की प्रतिज्ञा और कौरवों में हर्ष
जब कौरवों को अर्जुन की प्रतिज्ञा के बारे में पता चला तो उन्होंने अगले दिन के युद्ध में जयद्रथ को छुपा दिया ताकि सूर्य अस्त से पहले जयद्रथ का वध न हो सके और उनके सबसे बड़े शत्रु अर्जुन का काम भी तमाम हो जाए । कौरवों में इस बात का हर्ष व्याप्त हो गया कि अर्जुन कल खुद ब खुद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा और इस प्रकार वे लगभग पूरा युद्ध ही जीत लेंगे । पांडवो मे घोर संकट के बादल छा गए एक तो अभिमन्यु की मृत्यु का दुख और दूसरी अर्जुन की ऐसी प्रतिज्ञा ।
1 / 4 श्रीकृष्ण ने रचा जयद्रथ के लिए मायाजाल
अगले दिन युद्ध शुरू हुआ परंतु अर्जुन को जयद्रथ कहीं नजर नहीं आया । उसे अब निराशा होने लगी परंतु श्रीकृष्ण ऐसे समय में भी मुस्कुरा रहे थे । तब श्रीकृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और सूर्य देव को आदेश दिया कि वह घने बादलों के पीछे छुप जाए । सूर्य देव ने ऐसा ही किया और एक पल में अंधेरा छाने लगा । ऐसा लगा कि माने सूर्य अस्त हो गया और संध्या हो गई । युद्ध बंद होने का समय हो गया । अब अर्जुन आग का घेरा बना कर आत्मदाह के लिए तैयार हो गए । पांडव पक्ष में घोर निराशा छा गई ।
दूसरी ओर कौरवों में प्रसन्नता छाई हुई थी सभी के चेहरे में मुस्कुराहट व्याप्त थी । अर्जुन को आत्मदाह करते हुए देखने के लिए सभी वहां इकट्ठे हो गए । उन सबके लिए यह किसी तमाशे जैसा था । तभी जयद्रथ भी मुस्कुराते हुए अर्जुन को देखने आ पहुंचा । उसने सोचा सूर्य अस्त तो हो ही चुका है अब अर्जुन के सामने आने में हर्ज़ ही क्या है । भला वह अपने दुश्मन को ऐसे मरते हुए देखने से कैसे पीछे रह सकता था ।
जयद्रथ के निकलते ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन की ओर इशारा किया । तभी सबने देखा कि सूर्य देव बादलों के पीछे से निकलकर आसमान में अपने तेज से चमक रहें हैं । सभी आश्चर्य से यह दृश्य देख रहे थे और जयद्रथ घबराकर भागने लगा लेकिन अर्जुन ने अब उसे भागने का मौका नहीं दिया और उसके सर को धड़ से अलग कर दिया ।
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