अर्जुन सुभद्रा प्रेम मिलन / Arjun shubhadra prem milan
सुभद्रा से कितना प्रेम करते थे अर्जुन
महाभारत में अर्जुन की चार पत्नियों का जिक्र मिलता है - द्रौपदी , उलूपी , चित्रांगदा और सुभद्रा । परंतु अपनी चारों पत्नियों मे से द्रौपदी और सुभद्रा के साथ रहे । सुभद्रा श्रीकृष्ण और बलराम की बहन थी । बलराम और सुभद्रा का जन्म वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से हुआ था ।
जब अर्जुन द्रोणाचार्य से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तभी उनकी भेंट सुभद्रा के चचेरे भाई गदा से हुई थी जो अक्सर सुभद्रा के रूप व गुणों की चर्चा अर्जुन से किया करते थे । अर्जुन को सुभद्रा से मन ही मन प्रेम हो जाता है । एक बार कि बात है , अर्जुन को बारह साल की लंबी यात्रा पर जाना पडता है इसी क्रम में उनकी मुलाकात उलूपी और चित्रांगदा से होती हैं । अर्जुन अपनी यात्रा जारी रखते हैं और इसी क्रम में द्वारका पहुँचते हैं जहाँ अपने परम मित्र श्रीकृष्ण से उनकी मुलाकात होनी है । अर्जुन के मन मे अपने वर्षों पुराने प्रेम सुभद्रा को देखने की इच्छा होती है । अर्जुन यति का रूप धारण कर द्वारका पहुंच गए । यद्यपि उनकों किसी ने वहां नहीं पहचाना परंतु श्रीकृष्ण को पता चल जाता है कि अर्जुन आ चुके हैं ।
श्रीकृष्ण अपने मित्र अर्जुन से मिलने चल देते है । अर्जुन कृष्ण से कहते हैं कि वह जिससे प्रेम करते हैं उससे मिलने में क्या वह मेरी सहायता करेंगे । कृष्ण जानते हैं कि अर्जुन और सुभद्रा के विवाह में सबसे बड़ी बाधा बलराम है क्योंकि वे सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करवाना चाहते हैं । कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मै तुम्हारी मुलाकात सुभद्रा से करवाता हूँ अगर सुभद्रा भी तुमसे प्रेम करती होगी तो तुम दोनों को भागकर विवाह करने मे तुम्हारी सहायता करूंगा । अर्जुन कहते हैं कि क्या यह नीच कर्म क्षत्रिय को शोभा देता है । कृष्ण ने जबाब दिया कि अगर सुभद्रा अपनी रज़ामंदी देती है तो क्षत्रियों में दुल्हन का अपहरण करना गलत नहीं हैं ।
दूसरी ओर सुभद्रा ने पांडवो की और खासकर धनुर्धर अर्जुन की बड़ी प्रंशसा सुनी थी और मन ही मन उससे मिलने के लिए लालायित थी । योजना के अनुसार कृष्ण ने सुभद्रा और अर्जुन की भेंट करवाई। दोनों बिना एक दूसरे को देखें वर्षों से एक दूसरे से प्रेम करते थे अतः मिलने के बाद उन्हें और कुछ नहीं दिख रहा था । अतः कृष्ण और रुक्मिणी ने अर्जुन और सुभद्रा को भागने मे सहायता की । पहले तो बलराम जी ने इसका विरोध किया परंतु कृष्ण के समझाने पर विवाह के लिए मान गए तत्पश्चात अर्जुन और सुभद्रा का विवाह द्वारका में सम्पन्न हुआ ।
विवाह के पश्चात् अर्जुन ने सुभद्रा को द्रौपदी के बारे में बताया और कहा कि तुम जानती होगी कि द्रौपदी कौन है और जब तक वह जीवित है तब तक कोई और पांडव पत्नी इन्द्रप्रस्थ में नहीं रह सकतीं । हम दोनों तभी साथ रह सकते है जब द्रौपदी इसकी स्वीकृति प्रदान करें ।
अर्जुन ने सुभद्रा और द्रौपदी की भेंट करवाई जब सुभद्रा द्रौपदी से मिली तो उसने बड़े सरल तरीके से अपना परिचय दिया । सुभद्रा से मिलने के बाद द्रौपदी को यह एहसास हुआ कि अर्जुन की खुशी सुभद्रा में है। द्रौपदी ने सुभद्रा को अपनी छोटी बहन मानकर दोनों को आशीर्वाद दिया और तत्पश्चात अर्जुन और सुभद्रा साथ मे रहने लगे ।
Arjun shubhadra prem milan |
अर्जुन सुभद्रा प्रेम मिलन | Arjuna and shubhadra love story
महाभारत में अर्जुन की चार पत्नियों का जिक्र मिलता है - द्रौपदी , उलूपी , चित्रांगदा और सुभद्रा । परंतु अपनी चारों पत्नियों मे से द्रौपदी और सुभद्रा के साथ रहे । सुभद्रा श्रीकृष्ण और बलराम की बहन थी । बलराम और सुभद्रा का जन्म वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से हुआ था ।
जब अर्जुन द्रोणाचार्य से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तभी उनकी भेंट सुभद्रा के चचेरे भाई गदा से हुई थी जो अक्सर सुभद्रा के रूप व गुणों की चर्चा अर्जुन से किया करते थे । अर्जुन को सुभद्रा से मन ही मन प्रेम हो जाता है । एक बार कि बात है , अर्जुन को बारह साल की लंबी यात्रा पर जाना पडता है इसी क्रम में उनकी मुलाकात उलूपी और चित्रांगदा से होती हैं । अर्जुन अपनी यात्रा जारी रखते हैं और इसी क्रम में द्वारका पहुँचते हैं जहाँ अपने परम मित्र श्रीकृष्ण से उनकी मुलाकात होनी है । अर्जुन के मन मे अपने वर्षों पुराने प्रेम सुभद्रा को देखने की इच्छा होती है । अर्जुन यति का रूप धारण कर द्वारका पहुंच गए । यद्यपि उनकों किसी ने वहां नहीं पहचाना परंतु श्रीकृष्ण को पता चल जाता है कि अर्जुन आ चुके हैं ।
श्रीकृष्ण अपने मित्र अर्जुन से मिलने चल देते है । अर्जुन कृष्ण से कहते हैं कि वह जिससे प्रेम करते हैं उससे मिलने में क्या वह मेरी सहायता करेंगे । कृष्ण जानते हैं कि अर्जुन और सुभद्रा के विवाह में सबसे बड़ी बाधा बलराम है क्योंकि वे सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करवाना चाहते हैं । कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मै तुम्हारी मुलाकात सुभद्रा से करवाता हूँ अगर सुभद्रा भी तुमसे प्रेम करती होगी तो तुम दोनों को भागकर विवाह करने मे तुम्हारी सहायता करूंगा । अर्जुन कहते हैं कि क्या यह नीच कर्म क्षत्रिय को शोभा देता है । कृष्ण ने जबाब दिया कि अगर सुभद्रा अपनी रज़ामंदी देती है तो क्षत्रियों में दुल्हन का अपहरण करना गलत नहीं हैं ।
महाभारत की कहानियाँ यहाँ :- महाभारत की अनसुनी कहानियाँ / Mahabharat stories in hindi
दूसरी ओर सुभद्रा ने पांडवो की और खासकर धनुर्धर अर्जुन की बड़ी प्रंशसा सुनी थी और मन ही मन उससे मिलने के लिए लालायित थी । योजना के अनुसार कृष्ण ने सुभद्रा और अर्जुन की भेंट करवाई। दोनों बिना एक दूसरे को देखें वर्षों से एक दूसरे से प्रेम करते थे अतः मिलने के बाद उन्हें और कुछ नहीं दिख रहा था । अतः कृष्ण और रुक्मिणी ने अर्जुन और सुभद्रा को भागने मे सहायता की । पहले तो बलराम जी ने इसका विरोध किया परंतु कृष्ण के समझाने पर विवाह के लिए मान गए तत्पश्चात अर्जुन और सुभद्रा का विवाह द्वारका में सम्पन्न हुआ ।
विवाह के पश्चात् अर्जुन ने सुभद्रा को द्रौपदी के बारे में बताया और कहा कि तुम जानती होगी कि द्रौपदी कौन है और जब तक वह जीवित है तब तक कोई और पांडव पत्नी इन्द्रप्रस्थ में नहीं रह सकतीं । हम दोनों तभी साथ रह सकते है जब द्रौपदी इसकी स्वीकृति प्रदान करें ।
अर्जुन ने सुभद्रा और द्रौपदी की भेंट करवाई जब सुभद्रा द्रौपदी से मिली तो उसने बड़े सरल तरीके से अपना परिचय दिया । सुभद्रा से मिलने के बाद द्रौपदी को यह एहसास हुआ कि अर्जुन की खुशी सुभद्रा में है। द्रौपदी ने सुभद्रा को अपनी छोटी बहन मानकर दोनों को आशीर्वाद दिया और तत्पश्चात अर्जुन और सुभद्रा साथ मे रहने लगे ।
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