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मधु-कैटभ कथा / Madhu-kaitav katha

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अति प्राचीन काल में मधु-कैटभ नामक दो असुर हुए । जब संसार में चारों ओर जल-ही-जल था तो भगवान विष्णु अपनी शेषनाग शैय्या में निद्रा में लीन थे तो उनके कान के मैंल से मधु-कैटभ का जन्म होता है ।                                   एक बार कि बात है , उन्हें आकाश में एक स्वर  सुनाई दिया जिसके बारे में उन्हें भ्रम हुआ कि यह देवी का महामंत्र है । उस दिन के बाद से ही दोनों भाइयों ने मंत्र का जाप शुरू कर दिया । अन्न जल त्याग कर हजारों बर्षों तक कठिन तपस्या की । भगवती उनसे प्रसन्न हुई  और उनसे कहा -"मैं तुम दोनों की तपस्या से प्रसन्न हूँ , मांगों क्या चाहिये तुम्हें? " स्वर सुनकर मधु-कैटभ असुरों ने कहा - "हे देवी हमें इच्छा मृत्यु का वरदान प्रदान करें ।" देवी ने कहा -"जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा " भगवती के वरदान का उन दोनों को बहुत अभिमान हो गया और वे जल में रहने वाले जीवों को परेशान कर लगे । एक दिन उनकी नजर ब्रह्मा जी पर पड़ी जो कमल के पुष्प पर विराजमान थे ।  उन्हें शरारत सूझी और दैत्यों ने ब्रह्मा जी से कहा कि अगर हिम्मत है त

शुम्भ-निशुम्भ की कथा

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Shumbh-nishumbh katha>mythology >goddess Kali >Navratri 2018 शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों ने अन्न-जल त्याग कर दस हजार वर्षों तक ब्रह्मा जी की तपस्या की थी और तीनो लोकों पर राज करने का वरदान प्राप्त किया था।  उन्होंने ब्रह्मा से वर मांगा कि स्त्रियों से तो उन्हें कोई भय नहीं है और कोई पशु- पक्षी भी उन्हें न मार पाएं । वरदान प्राप्त करने के फलस्वरूप ऐ दोनों दुष्ट असुर और ज्यादा उनमादित हो गए । जब यह बात " दैत्य गुरू शुक्रराचार्य " को पता चली तो उन्होंने शुम्भ का राज्याभिषेक करा दिया और दोनों भाइयों को पूरे असुर समुदाय का राजा बना दिया । इसके फलस्वरूप पृथ्वी- निवासी सभी असुर रक्तबीज, चण्ड-मुण्ड आदि सभी शुम्भ- निशुम्भ से जा मिलें जिसके कारण असुरों का साम्राज्य दिन- प्रति-दिन बढ़ता ही जा रहा था । निशुम्भ स्वर्ग में अधिकार करने पहुंचा और वहां इंन्द्र के व्रज प्रहार से अचेत हो गया तब शुम्भ ने इन्द्र से युद्ध किया और उसे हराकर सारे हथियार छीन लिया।  इन्द्र सहित सभी देवता किसी प्रकार अपने प्राणों की रक्षा कर वहां से निकल भागे । तब द

रक्तबीज का संहार / Raktabij ka sanhar

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पौराणिक कथा > दुर्गा सप्तसति >रक्तबीज >देवी काली एक बार शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों ने पृथ्वी पर प्रलय मचा रखा था , धीरे-धीरे उन्होंने स्वर्ग को भी जीत लिया और वहां भी अपनी विनाश लीला मचा रखी थी फलस्वरूप देवता स्वर्ग से निष्कासित हुए । सभी देवता दुखी होकर जगतजननी माँ जगदंबा की शरण में गए और माता को अपनी व्यथा कह सुनाई।  देवताओं को इस समस्या से मुक्त कराने का आश्वासन देकर देवी दुर्गा सिंह पर सवार हो हिमालय के शिखर पर पहुंची ।                         शुम्भ-निशुम्भ के दो राक्षसों चण्ड-मुण्ड ने जब देवी को देखा तो इसकी जानकारी अपने स्वामियों को दी । देवी की  सुंदरता का वर्णन कर कहा , वह कन्या आपके योग्य है और इसलिए आप उसका वरण करे। चण्ड-मुण्ड की बात सुनकर शुम्भ-निशुम्भ ने देवी को लाने के लिए सुग्रीव नामक असुर को भेजा । देवी ने दूत से कहा कि मैं सिर्फ उसी का वरण करूंगी जो मुझे युद्ध में हरा देगा । जब दूत ने यह बात अपने स्वामियों को बताई तो दोनों असुर क्रोध से फडफडा उठे और धूम्राक्ष नामक राक्षस को भेजा देवी दुर्गा को

कैसे बना शेर माँ आदि शक्ति की सवारी / kaise bana sher maa aadishakti ki sawari

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                  Maa Aadishakti ki sawari sher कथा अनुसार , भगवान भोलेनाथ को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने हजारों वर्षों तक तपस्या की थी । इतनी कठिन तपस्या करने के पश्चात देवी पार्वती सांवली हो गई थी । एक बार विवाह के बाद भगवान भोलेनाथ ने माता को काली कह दिया । देवी पार्वती को यह बात चुभ गई और वे कैलाश छोडक़र तपस्या करने में लीन हो गई ।  शेर कैसे बना माता की सवारी  जब देवी अपनी तपस्या मे लीन बैठी थी तो वहां एक भूखा शेर देवी को खाने की इच्छा से पहुंचा । परंतु माता को तपस्या में देख चुपचाप वहां बैठ गया । वह सोचने लगा कि माता कब अपनी तपस्या से उठेंगी और वह उन्हें अपना आहार बनाएगा । इस बीच कई वर्ष बीत गए लेकिन शेर वही डटा रहा । जब देवी की तपस्या पूरी हुई तो भगवान भोलेनाथ वहां प्रकट हुए और माता पार्वती को गौर वर्ण का होने का वरदान प्रदान किया ।  इसके पश्चात माता पार्वती ने गंगा में स्नान किया और उनके शरीर में से एक सांवली देवी प्रकट हुई जो कौशिकी कहलाई और गौर वर्ण होने के कारण माता पार्वती को गौरी कहा जाने लगा ।  चूंकि शेर वहां भले ही देवी को खाने बैठा थ

बाबा बैजनाथ धाम की कथा

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Baba baidayanath dham ki katha:- एक बार शिव भक्त और लंका का राजा रावण भगवान भोलेनाथ को लंका में लाने के लिए कैलाश पर घोर तपस्या कर रहा था।  तब भी भोलेनाथ खुश न हुए तो वह एक एक कर अपने सिर काट कर शिवलिंग पर चढ़ाने लगा । नौ सिर चढ़ाने के बाद जैसे ही वह अपना दसवाँ सिर काटने वाला था तभी भगवान भोलेनाथ ने उसकी भक्ति से प्रसन्न उसे दर्शन दिए और उसे दसवाँ सिर काटने से मना करते हुए कहा - 'वत्स कहो , तुम्हारी क्या इच्छा है?' रावण प्रभु के दर्शन पाकर अपनी तपस्या से जागा और भोलेनाथ को प्रणाम करके बोला - 'हे प्रभु ! आप तो अंतर्यामी है, आप से कौन सी बात छुपी हुई है । मै लंका का राजा रावण, तीनों लोकों का स्वामी । जिसने देवताओं , गंधर्व , यक्षो और कितने ॠषि मुनियों को लंका में कैद करके रखा है।  बस मेरी इच्छा अब आपको अपने साथ लंका ले जाने की है ।' अब तो शिव जी असमंजस में पड़ गए क्योंकि उनकी इच्छा कैलाश को छोड़कर कहीं अन्यत्र जाने की नहीं थी लेकिन वे अपने वचन से भी पीछे नहीं हट सकते थे।  इस तरह भोलेनाथ रावण के साथ चलने के लिए तैयार हो गए  ल

माता वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर की कथा / Mata vaishno devi ke Bhakt shridhar ki katha

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Bhakt shridhar ki katha in hindi                  Mata vaishno devi yatra त्रिकुट पर्वत के तराई में बसा हुआ एक गांव था हंसली। इस गांव में एक गरीब ब्राहमण श्रीधर रहा करते थे , माँ जगदंबा के परम भक्त।  वैसे तो श्रीधर और उनकी पत्नी निर्धन होते हुए भी अपना जीवन यापन संतुष्टि से कर रहे थे  लेकिन निसंतान होने के कारण वे दोनों बहुत दुखी रहा करते थे ।                                       एक बार कि बात है श्रीधर ने सपने में देखा कि साक्षात देवी जगदंबा उनसे कह रही है कि नौ कुवांरी कन्याओं की पूजा कर के उन्हें भोजन कराने जिससे  तुम्हारी इच्छा जल्द ही पूरी होगी।  सुबह श्रीधर ने यह बात अपनी पत्नी को बताई जिसे सुनकर वह बहुत खुश हुई और  माता रानी को प्रणाम किया और अपने पति से बोली -' अगर माँ जगदंबा ने इशारा किया है तो हमें  जरूर कुमारी कन्याओं का पूजन करना चाहिए। आप गांव की नौ बालिकाओं को जाकर कल कन्या- पूजन के लिए न्योता देकर आइये ।' पत्नी की बात सुनकर श्रीधर चिंता में पड़ गए और कहा-'कुमारी कन्याओं का पूजन तो करना

महिषासुर का वध / Mahisasur ka vadh

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महिषासुर का वध करने वाली माँ आदि शक्ति देवी कात्यायनी  उस समय समस्त पृथ्वी, जल, थल, आकाश और पाताल में महिषासुर ने हाहाकार मचा रखा था । सभी देवता, गण, मनुष्य तथा जीव -जंतु उसके अत्याचार से पीड़ित थे । सभी परेशान और दुखी थे। चारों ओर भय का माहौल बना हुआ था।  इस मुसीबत से बचाने वाला कोई नहीं था क्योंकि महिषासुर को स्वंय सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था।                                        उसी समय किसी वन में महर्षि कात्यायन भगवती दुर्गा की तपस्या में लीन थे । वे देवी को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करना चाहते थे।  उनकी इच्छा थी कि देवी आदि शक्ति उनकी पुत्री के रूप में उनके घर में जन्म लें। अत्यंत कठोर तपस्या के पश्चात देवी दुर्गा ने ॠषि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान देकर अंतर्ध्यान हुई।  तत्पश्चात देवी ने उनके घर में जन्म लिया । कात्य गोत्र और कात्यायन ॠषि की कन्या होने का कारण देवी दुर्गा कात्यायनी के नाम से जानी गई ।देवी जगदंबा को अपना पुत्री के रूप में प्राप्त कर वे अत्यंत प्रसन्

भस्मासुर का वरदान / Bhasmasur ka wardan

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एक बार की बात है भस्मासुर नामक एक राक्षस को संपूर्ण विश्व पर राज करने की इच्छा हुई ।तब वह सोचने लगा कि संपूर्ण जगत पर राज करने के लिए तो उसे देवताओं के समान अमर होना चाहिए और अगर उसे अमर होना है तो उसे भगवान शिव की तपस्या करनी चाहिए क्योंकि भगवान शिव सबसे जल्दी अपने भक्तों पर प्रसन्न होते है।  भस्मासुर ने भगवान शिव की कठिन तपस्या शुरू कर दी । भगवान शिव भस्मासुर की तपस्या से खुश हुए और भस्मासुर को दर्शन दिया और कहा कि उसे जो चाहिए वह मांग सकता है।  भस्मासुर बहुत प्रसन्न होकर बोला- 'हे प्रभु! आप तो अंतर्यामी है , आपको तो पता है कि मैं संपूर्ण जगत पर राज करना चाहता हूं इसलिए मुझे अमर होने का वरदान प्रदान करे।  भगवान शिव ने कहा - 'हे वत्स! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं पर यह वरदान मैं नहीं दे सकता । क्योंकि यह संसार के नियमों के विरूद्ध है , जिसने इस संसार में जन्म लिया है उसका मरना निश्चित है।  भस्मासुर फिर भी अपनी बात पर अडिग रहा पर जब उसने देखा कि भगवान शिव इस बात के लिए राजी नहीं हो रहे तो उसने कहा कि -प्रभु आप मुझे ऐसा वरदान दे कि मैं जिसके माथे पर

शिव-पार्वती विवाह / Shiva Parvati vivah

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भगवान शिव और माता पार्वती की शादी संसार की सबसे अनोखी शादी थी क्योंकि इस शादी में देवताओं के अलावा असुर और मानव, भूत-प्रेत, गण आदि सभी मौजूद थे। शिव को पशुपति भी कहा जाता है, इसलिए सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी बारात में शामिल होने पहुंचे थे। जहां देवता जाते हैं, वहां असुर नहीं जाते क्योंकि उनकी आपस में बिलकुल नहीं बनती। मगर भोलेनाथ के विवाह में उन्होंने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक-साथ मेहमान बनकर पहुंचे। बारात आने का समाचार सुनकर सभी लोगों मे हलचल मच गई। बारात का स्वागत करने वाले  बनाव-श्रृंगार करके और विभिन्न प्रकार की सवारियों को लेकर पहुंचे।देवताओं को देखकर तो सभी खुश हुए परंतु शिवजी के रूप को देखकर सभी डरकर भाग गए।यह कैसी बारात है, दूल्हा बैल पर सवार होकर आया है उसपर इतना भयावह रूप। साँप, कपाल और राख से श्रृंगार किया है। पार्वतीजी की माँ मैना रानी ने आरती की थाल सजाई और स्त्रियां मंगलगीत गाने लगी। मैना बड़ी प्रसन्न और उत्सुकता के साथ शिवजी को परछने जा रही थी पर जब मैना ने शिवजी को देखा तो वे मूर्छित हो गई। जब उनको होश आया तो रोते हुए बोली-'मैं अपनी पुत्र

भगवान शिव का अर्धनारीश्वर अवतार / Bhagwan Shiva ka aradhnariswar avatar

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बहुत पहले की बात है जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का कार्य समाप्त किया था, तो उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनायी है उसमें तो विकास की गति है ही नहीं । जितने पशु-पक्षी, मनुष्य और कीट-पतंग की रचना उन्होंने की है, उनकी संख्या में वृद्धि तो हो ही नहीं रही है। इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए कि अगर सृष्टि में विकास न होगा तो उन्हें बार-बार इनकी रचना करनी पड़ेगी। इस तरह तो यह पृथ्वी विरान हो जाएगी। तब ब्रह्मदेव अपनी चिंता लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि- 'ब्रह्मदेव! आप शिव की आराधना करें वहीं कोई उपाय बताएंगे और आपकी चिंता का निदान करेंगे। ब्रह्मा जी ने शिव जी की तपस्या शुरू कर दी। ब्रह्मदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का उपाय बताया। तब ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा- 'प्रभु ! यह मैथुनी सृष्टि कैसी होगी, कृपया बताइए। इस प्रकार ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए शिव जी ने अपने शरीर के आधे भाग को नारी के रूप में प्रकट कर दिया और अर्धनार

प्रथम पूज्य गणेश / Prathama pujya Ganesh

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एक बार की बात है, सभी देवताओं में इस बात पर विवाद हो गयी कि धरती पर सबसे पहले किसकी पूजा हो ? सबसे पहले भगवान विष्णु ने कहा कि-'मैं सृष्टि का पालन करता हूं और यह समस्त ब्रह्मांड मेरे बलबूते पर टिका हुआ है। मेरी इजाजत के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता इसलिए सबसे पहले मेरी पूजा होनी चाहिए।' तब ब्रह्मा जी ने कहा कि-'इस समस्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति मुझसे हुई है इसलिए सबसे पहले मेरी पूजा होने चाहिए।' जब इस बात पर विवाद बहुत ज्यादा बढ़ गया तो देव ऋषि नारद ने इस स्थिति को देखते हुए सभी देवताओं को 'भगवान भोलेनाथ' की शरण में जाने का सुझाव दिया और उनसे इस समस्या का निवारण करने को कहा। देवताओं को नारद जी की बात सही लगी और सभी देवता भोलेनाथ की शरण में पहुंचे। जब शिव जी ने सारी बात सुनी तो उन्होंने देवताओं के बीच इस झगड़े को सुलझाने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें सभी देवताओं को संपूर्ण ब्रह्मांड का एक चक्कर लगाना था और जो भी सबसे पहले चक्कर लगाकर वापस उनके पास लौटता है उसे ही प्रथम पूज्यनीय माना जाएगा।     सभी देवता खुश होकर अप

भगवान विष्णु के वराह और नरसिंह अवतार की कथा / Bhagwan Vishnu ke varah aur narsingh avatar ki katha

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भगवान विष्णु को क्यों लेना पड़ा वराह और नरसिंह अवतार : कश्यप ऋषि तथा उनकी पत्नी दीति के दो पुत्र हुए। हिरणायक्ष और हिरण्यकशिपु। दीति असुर कुल की थी अतः उसके दोनों पुत्रों में प्रबल आसुरी शक्तियां थी। जब इनका जन्म हुआ तो तीनों लोकों में भयंकर उत्पाद होने लगा । भयंकर आंधियां चलने लगीं। बिजलियाँ गिरने लगीं। नदियां और जलाशय सूख गए। दोनों दैत्य जन्म लेते ही आकाश तक बढ़ गए और उनका शरीर फौलाद के समान हो गया । हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या की और वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु न तो धरती मे होगी और न आकाश मे, न दिन में और न रात में, न घर में और न बाहर । न कोई मनुष्य न कोई जानवर। इस तरह वह ब्रह्मदेव के वरदान के पश्चात पूरी धरती पर राज्य करने लगा। भगवान वराह के हाथों हिरणायक्ष का वध  अपने भाई हिरण्यकशिपु के आदेश पर हिरणायक्ष हर तरफ उत्पाद मचाता हुआ वरुण देव की नगरी मे पहुंचा और वरूण देव को अपने साथ युद्ध करने के लिए चुनौती दी।वरूण देव को क्रोध तो बहुत आया पर अपने क्रोध को दबाते हुए उन्होंने कहा-'मैं तुमसे युद्ध करने का सामर्थ्य नहीं रखता अगर तुम्हें

पार्वती पुत्र गणेश, पौराणिक कथा, hindu mythological stories

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एक बार तारकासुर नामक असुर ने ब्रह्मदेव से वरदान पाने के लिए कठोर तपस्या की। कठिन तपस्या के बाद ब्रह्मदेव प्रसन्न होकर तारकासुर के सामने प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने के लिए कहा । तब तारकासुर ने अमृत्व का वरदान मांगा। पर ब्रह्मदेव ने तारकासुर से कहा-'वत्स ! अमर होने का वरदान मैं तुम्हें नहीं दे सकता क्योंकि यह सृष्टि के नियमों के विरूद्व है, स्वयं महादेव भी तुम्हें यह वरदान नहीं दे सकते। तुम कुछ और मांग लो।' तब तारकासुर ने ब्रह्मदेव से कहा-'ब्रह्मदेव मुझे ऐसा वर दे कि सिर्फ शिव की उर्जा से उत्पन्न पुत्र ही मेरा वध कर सके। इस पर ब्रह्मदेव ने त्थासतु कहा और अंतर्धान हो गए। ब्रह्मदेव से वरदान पाकर तारकासुर और शक्तिशाली हो गया। उसने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली और स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस पर सभी देवता भयभीत हो महादेव के पास जा पहुंचे और ब्रह्मदेव के वरदान का स्मरण कराते हुए महादेव से विनती की कि अब हम सभी की रक्षा आप ही कर सकते है। जब यह बात देवी पार्वती ने सुनी तो उन्हें बहुत दुःख पहुंचा। महादेव भी चिंतित हो गए। अततः संसार की रक्षा हेतु महादे

मूर्खता

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प्राचीन काल में सुन्द और उपसुन्द नाम के दो बलशाली दैत्य हुए हैं। एक बार उनके मन में तीनों लोकों का एक छत्र सम्राट बनने का विचार आया। इसकी प्राप्ति के लिए उनको एक उपाय सूझा। उन्होंने सोचा कि भगवान आशुतोष को प्रसन्न किया जाना चाहिए क्योंकि समस्त देवों में भगवान शंकर ही ऐसे देव हैं जो जल्दी ही प्रसन्न होकर अपने भक्त की मनोकामना पूरी कर देते हैं। यह सोचकर उन्होंने भगवान शंकर की आराधना आरंभ कर दी। बहुत समय तक जब वे शिव शंकर की आराधना करते रहे तो देवाधिदेव महादेव उन पर प्रसन्न हुए और प्रकट होकर उनसे कहा-'मांगों, क्या वर मांगते हो?' न जाने उस समय उन दोनों को क्या हुआ कि जो वर वह मांगना चाहते थे, वह तो न मांग सके अपितु उससे विपरीत उनके मुख से निकल गया कि हमें आपकी प्रियतमा पार्वती चाहिए। यह सुनकर शिव शंकर को क्रोध तो आया किन्तु वह देने का वचन दे चुके थे। अतः उन्होंने पार्वती उन्हें सौंप दी। पार्वती का अनुपम सौंदर्य देखकर दोनों उनके रूप पर मोहित हो गए और इस बात पर झगड़ा करने लगे कि पार्वती को अपने पास कौन रखे। दोनों ही उसे अपने पास रखना चाहते थे। तब उन दोनों ने निर्णय किया क